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वर्ल्ड कप की जीत का हासिल यह है कि दर्शकों ने एम्बापे को अश्वेत के बजाय एक फुटबॉलर के रूप में देखा

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आनंद वसु
भले कोई कट्टर फुटबॉल फैन ना हो, फिर भी वह फीफा कप के फाइनल में हार ना मानने वाली फ्रांसीसी टीम पर अर्जेंटीना की सनसनीखेज जीत से अप्रभावित नहीं रह सकता। उस एक मैच में आठ एपिसोड वाली नेटफ्लिक्स सीरीज के लिए पर्याप्त कहानियां हैं। लियोनेल मेसी ने वर्ल्ड कप ट्रोफी अपने हाथ में ली, तो लगा कि जो भी वह करते हैं, उसे ट्रोफियों में नहीं नापा जा सकता है। फिर भी यह अच्छा हुआ कि उन्होंने अपने करियर को अपने चहेते पुरस्कार के बिना खत्म नहीं किया।

आगामी विजेता
किलियन एम्बापे ने अपने 24वें जन्मदिन से पहले इतना कुछ हासिल कर लिया है, जितने की उम्मीद लोग अपनी पूरी लाइफ में नहीं कर सकते। वह जो जादू पैदा करते हैं और जिस तरह से फुटबॉल में ही अपना जवाब देते हैं, वह वैसी ही सुंदरता है जो मेसी नियमित रूप से पैदा करते हैं। उस रात उन्हें अपना सेकंड बेस्ट देना था, लेकिन यही खेल की प्रकृति है। कहने की जरूरत नहीं कि वह आने वाले सालों में वर्ल्ड कप में शानदार खेल दिखाते रहेंगे।

आईना दिखाता आयोजन
इसके अलावा भी इस वर्ल्ड कप में बहुत कुछ आईना दिखाने वाला था। मसलन, फाइनल में एक समय फ्रांस की ओर से ह्यूगो लोरिस इकलौते श्वेत खिलाड़ी थे। यह चरम दक्षिणपंथियों के साथ ही उन लोगों को भी परेशान करता है, जो मानते हैं कि फ्रांस के कुछ खिलाड़ी पर्याप्त फ्रेंच नहीं हैं। आमतौर पर जब कोई टीम हार जाती है तो ऐसे सवाल और उठते हैं। लेकिन वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचना और आखिरी मिनट तक विजेताओं को रोके रखना, शायद ही इसे हार कहा जा सके। बहरहाल, फ्रांस के 10 अश्वेत खिलाड़ी यह सवाल नए सिरे से उठाते हैं कि फ्रेंच होना आखिर है क्या?

टेबिट टेस्ट
एक उम्मीद की जाती है कि फलां देश के लोग एक निश्चित तरीके से दिखेंगे, क्योंकि हमें पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा ही बनाया गया है। पर यह सब इतना आसान नहीं है। हाल ही में रेहान अहमद पाकिस्तान के खिलाफ कराची में इंग्लैंड के लिए टेस्ट डेब्यू पर पांच विकेट लेने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने। महज 18 वर्ष के रेहान इंग्लैंड में पैदा हुए, जबकि उनके पिता नईम पाकिस्तान में पैदा हुए थे और इंग्लैंड जाने से पहले वहीं से खेले थे। शुक्र है कि कंजरवेटिव ब्रिटिश राजनेता नॉर्मन टेबिट और उनके कुख्यात टेबिट टेस्ट का दौर पीछे छूट चुका है। टेबिट ने यह भी कहा था कि ब्रिटेन आने वाले एशियाई प्रवासी जो अपने मूल देश के पक्ष में थे, वह यहां खुद को पूरी तरह आत्मसात नहीं कर पाए। मगर आज किसी के लिए दूसरे देश का समर्थन करना अटपटा नहीं लगता।

वर्चस्व बनाम खेल
फुटबॉल में अभी भी यूरोपीय वर्चस्व है। इसी वर्ल्ड कप में देखें तो अंतिम 16 में आने वाली आठ टीमें, अंतिम आठ की पांच और अंतिम चार में से दो टीमें यूरोपीय देशों की थी। अगर यहां टेबिट टेस्ट लागू करते तो फुटबॉल देखने वाली अधिकांश आबादी के पास वर्ल्ड कप में समर्थन करने के लिए अपनी कोई टीम ही न होती। जिस तरह से सेमीफाइनल में पहले अफ्रीकी-अरब देश मोरक्को ने जगह बनाई, यह बताता है कि यह खेल कितना वैश्विक है। मोरक्को के खिलाड़ियों में से सात यूरोपीय मूल के थे, यूरोपीय क्लबों से निकले थे। उन्हें यूरोपीय की तरह नहीं देखा गया।

किक और गोल
यह सबूत है कि बहुसंख्यकवाद और रूढ़िवादी सोच से प्रेरित दुनिया में विकास का इकलौता मॉडल इंटीग्रेशन और एक्सेप्टेंस का ही है। वर्ल्ड कप की जीत का हासिल यह है कि ऐसे काफी लोग थे, जिन्होंने एम्बापे को अश्वेत के बजाय एक फुटबॉलर के रूप में देखा। खेल से जाति, राष्ट्र और पहचान गहराई से जुड़े हुए हैं, लेकिन जब किक लगती है और बॉल गोल में जाती है तो कम से कम उस पल में हम अपनी सारी अवधारणाओं से अलग इस दुनिया को वैसे ही देखते हैं, जैसे हमें देखना चाहिए।

(लेखक दो दशक से स्पोर्ट्स कवर कर रहे हैं)

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