अग्नि आलोक

क्रांतिकारी महान लेनिन जिन्होंने किसानों मजदूरों को अपना भाग्य विधाता बनाया

Share

मुनेश त्यागी

     दुनिया के सबसे बड़े क्रांतिकारियों में से एक जिन्होंने 1917 में रूस में मार्क्सवादी सिद्धांतों के हिसाब से क्रांति की, मार्क्सवादी विचारधारा को आगे बढ़ाया, समाज को बदला, समाज में  दुनिया में सबसे पहले किसान और मजदूरों का राज्य कायम किया, और इतिहास में सबसे पहले किसान और मजदूरों को अपना भाग्य विधाता बनाया। इस राज्य ने औरतों और आदमी को बराबर के अधिकार दिए, इसने अपनी सारी जनता को रोटी, कपड़ा, मकान, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य और सबको रोजगार उपलब्ध कराएं। आज उन्हीं महान क्रांतिकारी कामरेड व्लादीमीर इल्यिच उल्यानोव की जन्मतिथि है।

   अपने जीवन काल में व्लादीमीर इल्यिच रूस की लेना नदी के किनारे रहे थे, इसलिए लोग उन्हें “लेनिन” कहने लगे और बाद में भी रूस और दुनिया में यही लेनिन, “महान लेनिन” के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे 22 अप्रैल अट्ठारह सौ सत्तर को रुस में पैदा हुए थे।

     लेनिन बचपन के दिनों से ही रूस में फैली जारशाही के खिलाफ थे। लेनिन पढ़ने में बहुत होशियार थे। उन्होंने 1891 में वकालत की डिग्री प्राप्त की और कुछ समय तक गरीब किसानों और मजदूरों की वकालत की, मगर बाद में वे मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित हुए और क्रांतिकारी बन गए और इसके बाद उन्होंने क्रांति को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाकर, वे प्रोफेशनल रिवॉल्यूशनरी बन गए। वे अपने बचपन के दिनों से ही शोषण, अन्याय, असमानता और गैर बराबरी का विरोध करने लगे थे। इनके विरोध करने के कारण, उन्हें कई बार देश निकालें दे गए। देश निकालने के कारण उन्हें साइबेरिया भेज दिया गया और उसके बाद उन्हें लगभग 20 साल तक यूरोप में देश निकाले में रहना पड़ा। 

     लेनिन एक बड़े लेखक थे। उन्होंने कई क्रांतिकारी सिद्धांत पेश किए। उनकी लिखी किताबों में प्रमुख रूप से, “जनता के मित्र कैसे लड़ते हैं,” “क्या करें”, “एक कदम आगे दो कदम पीछे”, “साम्राज्यवाद पूंजीवाद की अंतिम अवस्था है”, “वामपंथी कम्युनिज्म एक बचकाना मर्ज”, “राज्य और क्रांति”, जैसी महत्वपूर्ण और मौजूं अनेकों किताबें और बहुत सारे लेख लिखे। लेनिन द्वारा लिखी गई ये किताबें आज भी दुनिया भर के कम्युनिस्टों और समाजवादियों का और समाज में समुचित और आमूलचूल बदलाव करने वालों का मार्गदर्शन कर रही हैं। 

    लेनिन ने किसानों और मजदूरों के लिए, छात्रों और नौजवानों के लिए, महिलाओं के लिए अनेक परिचयात्मक और छोटी छोटी पुस्तक मालांए लिखीं।  उनकी मान्यता थी कि “क्रांतिकारी विचार ही क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं । उन्होंने कहा कि समाज की दशा बदलने के लिए और समाज में आमूलचूल परिवर्तन करने के लिए, समाज को एक क्रांतिकारी पार्टी की जरूरत है, इस क्रांतिकारी पार्टी के बिना कोई क्रांति नहीं हो सकती।” उन्होंने कहा था कि “क्रांति करने के लिए जरूरी है कि इसमें पेशेवर क्रांतिकारी शामिल हों, इन पेशेवर क्रांतिकारियों के बिना, क्रांति को सफल नहीं बनाया जा सकता।”

    लेनिन ने स्थापित किया और दिखाया कि सत्ता का इस्तेमाल कैसे किया जाता है। एक तरफ पूंजीवादी सत्ता है, दूसरी तरफ किसानों और मजदूरों की सत्ता है जो किसानों, मजदूरों और आम जनता के हित में काम कर सकती है। एक सत्ता वह है जिसका इस्तेमाल आदमी अपना घर भरने के लिए, अपने परिवार वालों का घर भरने के लिए और अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए करता है। लेनिन ने इसी सत्ता  का इस्तेमाल किसानों और मजदूरों और आम जनता के कल्याण के लिए किया। लोगों को रोजी ,रोटी, शिक्षा, कपडा, स्वास्थ्य, जर जमीन, रोजगार, उपलब्ध कराया। हजारों साल पुराने अभावों, भूख, गरीबी, अन्याय, शोषण और तमाम तरह की महरूमियों का खात्मा कर दिया और दुनिया में नए क्रांतिकारी युग की शुरुआत की जिसे समाजवादी क्रांति और रूस की महान अक्टूबर क्रांति के नाम से जाना गया। यानी उन्होंने पूरी दुनिया के सामने प्रदर्शित किया कि एक सत्ता, पूंजीपतियों और स्वार्थी शासकों के निजी स्वार्थ साधती है तो वही किसानों और मजदूरों की सत्ता, किसानों और मजदूरों यानी समस्त आम जनता के कल्याण के लिए काम करती है।

     इसके अलावा लेनिन “सतत क्रांति” की बात करते थे। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि क्रांति हो जाने के बाद भी, इसे जड यानि ठहरे नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसको लगातार क्रांतिकारी बने रहना चाहिए। क्रांति एक आग की तरह है। जिस तरह आग जलाने के लिए लगातार इंधन की जरूरत होती है, उसी तरह क्रांति को जिंदा रहने के लिए, सतत क्रांति की जरूरत पड़ती है, यानी क्रांतिकारियों को सतत क्रांतिकारी बने रहने की जरूरत है। जो लोग अपनी जिंदगी में सतत क्रांतिकारी प्रक्रिया में नहीं रहते, वे लोग बाद में क्रांतिकारी नहीं बने रह सकते और लगातार गलतियां करते रहते हैं और बाद में एक दिन क्रांति दम तोड़ देती है। लेनिन द्वारा 1917 में की गई रूसी क्रांति ने आते-आते 1991 में दम तोड़ दिया क्योंकि स्टालिन के बाद, रूस की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में आए कम्युनिस्ट नेताओं ने सतत क्रांति का रास्ता छोड़ दिया, उसका त्याग कर दिया और वो गलतियों पर गलतियां करते रहे और 1991 में सोवियत यूनियन यानी दुनिया के सबसे पहले क्रांतिकारी मुल्क का खात्मा हो गया।

      लेनिन ने धर्म और बुद्धिजीवियों आदि पर अपने विचार व्यक्त किए। राज्य के बारे में वे कहते हैं कि राज्य एक  हथियारबंद, क्रूर और दमनकारी दस्ता है। इसका स्वरूप वर्गीय होता है यानी सामंतों और पूंजीपतियों का राज्य  और किसान और मजदूरों का राज्य। सामंतो और पूंजीपतियों का राज्य और सरकार, सामंतों और पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करती है, पूंजीपतियों की संपत्ति को बढ़ाती है, उनके मुनाफे को बढ़ाती है। जबकि किसानों और मजदूरों का राज्य, आम जनता का कल्याण कर सकता है और किसानों और मजदूरों का राज्य ही किसानों, मजदूरों, नौजवानों, विद्यार्थियों, छात्रों, महिलाओं और जनता के वंचित शोषित गरीब और अभावग्रस्त तबकों का कल्याण कर सकता है। लेनिन ने रूस में क्रांति के बाद यही किसानों मजदूरों का राज्य कायम किया था और किसानों मजदूरों की सत्ता, दुनिया में, पहली बार और सबसे पहले, रूस में कायम की थी।

     वे कहते हैं कि जब पूरी दुनिया में समाजवाद आ जाएगा तो कुछ समय बाद, राज्य की और कानून की जरूरत नहीं रहेगी। सब लोग पढ़ लिख जाएंगे, सब लोग समझदार बन जाएंगे, किसी राज्य, किसी कानून की जरूरत नहीं रहेगी यानी कि किसी को दबाकर रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। समाज “वर्ग-विहीन” और “राज्य-विहीन”  हो जाएगा, यानी समाज में कोई शोषणकारी वर्ग नही रहेगा और ना ही शोषणकारी वर्ग की रक्षा करने के लिए किसी राज्य की जरूरत नहीं पड़ेगी। सारा समाज मिलजुल कर रहेगा जिसमें आपसी भाईचारा कायम होगा और सभी लोग आपसी सहयोग, सम्मान और आपसी भाईचारे से अपनी जिंदगी व्यतीत करेंगे, सब लोग मिलजुल कर रहेंगे।

     यह साम्यवादी व्यवस्था होगी, जिसमें पूरे समाज से शोषण, अन्याय, असमानता और भेदभाव खत्म हो जायेंगे, कोई हरामखोर नही रहेगा, शोषक और रक्तपिपासु व शोषित नही रहेंगे, चारों तरफ भाईचारा और बराबरी व आपसी सहयोग और सम्मान कायम हो जाएगा। हरेक व्यक्ति पूरे समाज के बारे में सोचेगा और इसके लिए काम करेगा और पूरा समाज हरेक व्यक्ति के कल्याण के लिए जिये मरेगा। यहां सब कुछ समाज का हो जाएगा। तमाम तरह के शोषण, अन्याय और वर्ग समाप्त हो जायेंगे, राज्य “मुर्झा कर गिर जायेगा।” पूरा समाज “वर्ग-विहीन” और “राज्य-विहीन” हो जाएगा। सारी दुनिया में साम्य सथापित हो जाएगा। इस व्यवस्था को ही “साम्यवादी व्यवस्था” कहा जाएगा।

      लेनिन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मार्क्सवादी विचारधारा को रूस में लागू किया और किसानों और मजदूरों  के सहयोग से रूस की सत्ता जारशाही से छीन ली और इसके स्थान पर मजदूरों किसानों की राजसत्ता और सरकार कायम की। इसी राजसत्ता और सरकार ने रूस के अंदर तमाम क्रांतिकारी परिवर्तन लागू किए, क्रांतिकारी कानून बनाए, समाज में क्रांतिकारी बदलाव पैदा किए। इसी क्रांति ने रूस में जारशाही का खात्मा किया।

    आज हमें महान लेनिन को समझने और वर्तमान में समझने की जरुरत है। लेनिन तमाम जिंदगी शोषण और अन्याय से युद्धरत रहे और जनता को संगठित करके क्रांति करने में सफल रहे, जिसे “१९१७ की महान रूसी क्रांति” कहा जाता है। लेनिन इसी क्रांति के नेता और प्रणेता थे। हमें इस दुनिया को बदलने के लिए लेनिन से बहुत कुछ सीखने की जरुरत है। महान लेनिन अमर रहें। उनके जन्मदिन पर उनको शत शत नमन। इंकलाब जिंदाबाद।

      हमारा मानना है कि लेनिन इतने महान क्रांतिकारी राजनेता और कार्यकर्ता थे कि अगर कोई क्रांतिकारी आदमी लेनिन के समस्त विचारों का अध्ययन कर लेगा और उन्हें अपने राजनीतिक क्रांतिकारी संघर्ष और आंदोलन में उतारेगा, तो वह अपने क्रांतिकारी जीवन में, संघर्ष में, देश में, समाज में, दुनिया में और अपने परिवार में कोई गलती नहीं करेगा, वह अपनी सारी गलतियों और नाकामियों को हल कर लेगा, गलती करने से बचेगा और दूसरों को गलती करने से बचाएगा।

     लेनिन के इन्हीं विचारों को दुनिया के महान क्रांतिकारियों स्टालिन, माओ त्से तुंग, हो ची मिन्ह, फिदेल कास्त्रो, ज्योति बसु, ईएमएस नम्बूदरीपाद, बी टी रणदीवे, ऐ के गोपालन, हरिकिशन सिंह आदि क्रांतिकारियों ने अपने जीवन में उतारा और दुनिया और देशों के क्रांतिकारी संघर्षों को आगे बढ़ाया और दुनिया के कई देश में वहां की जनता को, वहां के किसानों मजदूरों को हजारों साल से हो रहे शोषण अन्याय और जुल्मों सितम से बचाया और उन्हें जीवन की बुनियादी सुविधाएं मोहिया कराईं। सच में आज हमें लेनिन को बार-बार पढ़ने की, उनसे सीखने की और जीवन में उतारने की बहुत जरूरत है, तभी एक बेहतर और सुंदर दुनिया का निर्माण किया जा सकता है। महान लेनिन को शत-शत नमन, वंदन और अभिनंदन।

Exit mobile version