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भारी प्रत्याशियों की छवि ने गड़बड़ाएं जीत के अनुमान

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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023: भाजपा लाड़ली बहना और कांग्रेस एंटी इन्कम्बेंसी के दम पर चुनाव जीतने की बात कर रही हैं. लेकिन जनता ने पार्टियों से ज्यादा प्रत्याशियों की छवि और काम पर ज्यादा रुचि ली है. इसी वजह से कोई भी जीत का सटीक अनुमान नहीं बता पा रहा है…

भोपाल. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 अंतिम दौर में पहुंच चुका है. प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में बंद है जो 3 दिसंबर की काउंटिंग में खुलेगा. हालांकि 17 नवंबर को हुई वोटिंग के बाद से तरह-तरह के रुझान सामने आ रहे हैं.

सत्ताधारी भाजपा की पूरी उम्मीद लाड़ली बहना पर टिकी हुई है. जबकि विपक्षी एंटी इंकम्बेंसी पर सवार है. हालांकि, अब तक सबसे बड़ा रुझान जो जनता की तरफ से निकलकर आया है, वो यह है कि इस बार पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी देखकर जनता ने वोट दिया है. यह लोकतंत्र की बेहतरी के लिए जनता की ओर से उठाया गया एक बेहतरीन कदम भी कहा जा सकता है. जनता अब जागरुक हो चुकी है. यही वजह रही कि आचार संहिता के दौरान मतदाता पूरी तरह खामोश रहा. उसने प्रत्याशियों का व्यवहार और जाति पर सबसे ज्यादा फोकस किया गया है. लिहाजा, प्रदेश का वोटिंग प्रतिशत भी बहुत अधिक गया है.

अकड़ से जनता नाराज, सहज, सरल और आसानी से उपलब्ध प्रत्याशी पसंद
चाहे बड़े नेता हो या छोटे. लोग अब उनके व्यवहार की चर्चा कर रहे हैं. भाजपा ने नरसिंहपुर से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को मैदान में उतारा है. यहां चर्चा है कि पटेल बड़े नेता है तो उनकी समस्या कौन सुनेगा? जबकि कांग्रेस प्रत्याशी सहज रूप से उपलब्ध है. यह सिर्फ एक बानगी नहीं है, बल्कि अधिकांश सीटों पर प्रत्याशी इस खतरे को भांप रहे हैं.

मतदान ज्यादा होने पर दोनों पार्टियों के अपने-अपने दावे
प्रदेश का औसत मतदान प्रतिशत करीब 78 प्रतिशत रहा है. अधिकांश विधानसभाओं में मतदान का प्रतिशत 80 फीसदी से ज्यादा रहा है. इसमें महिलाओं का मतदान प्रतिशत भी अच्छा खासा रहा है. इस मतदान प्रतिशत को लेकर दोनों प्रमुख दलों के अपने-अपने दावे हैं. भाजपा जहां इसे लाड़ली बहना का असर बता रही है. कांग्रेस इसे नारी सम्मान योजना और 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने का असर बता रही है. वैसे शुरू में इस बात की पुरजोर चर्चाएं थी कि भाजपा गुजरात मॉडल लागू करेगी. इसी तरह 70 साल पार वालों को टिकट नहीं देने की बात थी. लेकिन प्रत्याशियों की मजबूत स्थिति को देखते बीजेपी ने दोनों ही बातें लागू नहीं की. पार्टी ने सिर्फ जीतने के फैक्टर को देखते हुए टिकट दिए. कुछ इसी तर्ज पर कांग्रेस ने भी टिकट बांटे हैं.

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