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प्रत्याशी के हलफनामे और हलफनामों का झूठ …..

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राकेश अचल

भारत के नेता कितना झूठ बोल सकते हैं ,इसकी कल्पना दुनिया का कोई मनोवैज्ञानिक,चिकित्स्क या वैज्ञानिक नहीं कर सकता । भारत के नेताओं की पोल उस वक्त खुलती है जब देश में चुनाव होते है। देश में इस समय लोकसभा के चुनाव चल रहे है। इन चुनावों में जो प्रत्याशी हैं उनके सम्पत्ति के बाबद दिए जा रहे हलफनामें देखकर हंसी आती है। लेकिन केंचुआ के पास ऐसी कोई दूरबीन नहीं है जो इन हलफनामों की जांच कर सके। इस मामले में सभी दलों के नेता एक से बढ़कर एक हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा का नेतृत्व करने वाले देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह के हलफनामे से ही बात शुरू करते हैं। गांधीनगर से भाजपा उम्मीदवार और गृह मंत्री अमित शाह के पास 20 करोड़ की चल और 16 करोड़ की अचल संपत्ति है लेकिन शाह के पास खुद की कार नहीं है। आयोग में दाखिल चुनावी हलफनामे के अनुसार, उनके पास 72 लाख के गहने हैं। इनमें उनके खरीदे हुए सिर्फ 8.76 लाख के हैं। पत्नी के पास सोने के 1620 ग्राम और हीरे के 63 कैरेट के गहने हैं।गृह मंत्री के पास 24,164 रुपये नकद, 42 लाख का लोन भी। शाह साहब करोड़पति होकर भी कार क्यों नहीं खरीद पाए ये एक रहस्य है। इसका उद्घाटन वे खुद कर सकते हैं या राम जी। कहते हैं कि राजनीति में आने से पहले वे मनसा में प्लास्टिक के पाइप का पारिवारिक व्यवसाय संभालते थे। वे बहुत कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। 1982 में उनके अपने कॉलेज के दिनों में शाह की भेंट नरेंद्र मोदी से हुई। 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह उनका छात्र जीवन में राजनीतिक रुझान बना।शाह साहब 1997 सेचुनाव लड़ रहे है। पहले वे विधायक हुआ करते थे,अब देश के गृहमंत्री है। उनका खानदानी पेशा दलाली [ब्रोकरेज ] का है। शाह जी ने अब तक 5 विधानसभा चुनाव लाडे और जीत। लोकसभा का पहला चुनाव उन्होंने 2019 में लड़ा और जीते,जीते ही नहीं सीधे गृहमंत्री भी बनाये गए ,लेकिन बेचारे 27 साल में एक कार नहीं खरीद पाए। अब आपको मै पूरे 543 नेताओं के हलफनामे तो दिखा नहीं सकता किन्तु जो दिलचस्प हैं उनकी बात अवश्य करता हूँ । अल्पसंख्यकों के नेता औबेसी का चुनावी हलफनामा औबेसी की सम्पत्ति का खुलासा करता है। चुनाव आयोग में भरे अपने हलफनामे में असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी संपत्ति को लेकर खुलासा किया है. इसके मुताबिक उनके पास 2.80 करोड़ रुपए की चल संपत्ति हैं. इसमें कैश, सोना, बीमा जैसे चीजें शामिल हैं। ओवैसी की पत्नी के नाम पर 15.71लाख रुपए की चल संपत्ति दर्शाई गई है , जबकि उनके पास 16.01 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति भी है। 1994 से चुनावी राजनीति में सक्रिय औबेसी ओवैसी पर 7 करोड़ रुपए का लोन भी है। उन्होंने एक घर लोन पर लिया है जिसकी कीमत 3.85 करोड़ रुपए है। सबसे दिलचस्प हलफनामा मध्य्प्रदेश के 18 साल मुख्यमंत्री रहे मामा शिवराज सिंह चौहान का है।विदिशा लोकसभा के बीजेपी प्रत्याशी नामांकन दाखिल करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में बताया है कि उनके पास 1,24,85,475 रुपये की चल और 2,17,60,000 रुपये की अचल संपत्ति है. शिवराज की पत्नी साधना सिंह की संपत्ति भी 5 महीनों में 15 लाख रुपए बढ़ी है. अगर नकदी की बात करें तो शिवराज सिंह चौहान के पास कुल 2 लाख 5 हजार रुपये नकद हैं, वहीं उनकी पत्नी साधना सिंह के पास करीब 1 लाख 65 हजार रुपये नकद हैं. शिवराज सिंह चौहान के पास कोई कर्ज भार नहीं है, वहीं उनकी पत्नी साधना सिंह के ऊपर करीब 64 लाख रुपये का कर्ज है। मजे की बात ये की हमारे मामा के पास भी कोई कार नहीं है। मामा कार लेकर करते भी क्या।? उन्होंने तो पूरे १८ साल सरकारी हवाई जहाज और हैलीकाप्टर को स्कूटर की तरह जोता था। हमारे देश में गरीबी अभिशाप और अमीरी वरदान है । लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों के हलफनामे देखकर आप चौंक सकते है। लेकिन मै आपको अभी तक आये हलफनामों के आधार पर बता सकता हूँ कि सबसे अमीर और सबसे गरीब प्रत्याशी कौन रहा । केंचुआ के आंकड़ों के मुताबिक सबसे अमीर उम्मीदवार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से मौजूदा सांसद और कांग्रेस नेता नकुल नाथ हैं। वे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे हैं और उनके पास 716 करोड़ रुपये की सम्पत्ति है। 2019 के लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ मध्य प्रदेश से जीतने वाले इकलौते उम्मीदवार थे। दूसरी ओर, तमिलनाडु के थूथुकुडी से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे पोनराज के सबसे गरीब उम्मीदवार हैं, क्योंकि चुनावी हलफनामे के अनुसार, उनके पास सिर्फ 320 रुपये की संपत्ति है। भारतीय लोकतंत्र की यही विशेषता है कि यहां गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। लोग बेकार ही चुनाव लड़ने के लिए इलेक्टोरल बांड के फेर में पड़ते हैं। हमारे शहर ग्वालियर से चाय बेचने वाले एक सज्जन सिर्फ इसलिए लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं कि कहीं उन्हें भी मोदी जी की तरह कोई मौक़ा मिल जाये। जाहिर है कि जितने भी प्रत्याशी हैं वे चुनाव आयोग की ही नहीं बल्कि देश की जनता की आँखों में धुल झौंकते हुए अपनी समपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करते हैं। लेकिन इन हलफनामों की न किसी ने शिकायत की और न कभी किसी ईडी या किसी अदालत ने स्वयं संज्ञान लेकर इनकी जांच करने की जरूरत समझी। इस मामले में अज्ञानी रहने में ही समझदारी है। हमारे यहां झूठी हलफ उठाने की पुरानी रिवायत है । लोग चुनाव लड़ते हैं तो संविधान की हलफ उठाते हैं और जब पंचायतों में जाते हैं तो गंगाजल को हाथ में लेकर हलफ उठाते हैं ,लेकिन सच कभी नहीं बोलते । नेताओं का सच तो लाइ डिटेक्टर मशीन भी नहीं उगलवा पाती । हलफनामें केवल देने के लिए होते हैं और गंगाजल हलफ उठाने के लिए। अदालतों में पवित्र गीता के नाम पर हलफ उठाई जाती है। इसके पीछे भी यदि सरकार खोज कराये तो पाएगी कि किसी सनातनी का दिमाग होगा ,अन्यथा अदालतों में हलफ उठाने के लिए गीता के साथ ही रामायण,कुरान ,बाइबल और गुरु ग्रन्थ साहिब को भी सूची में शामिल न किया जाता। लेकिन कहते हैं न कसमें,वादे, प्यार ,वफ़ा सब बातें हैं ,बातों का क्या ? सरकार खोज करके पहले ये बता ही चुकी है कि देश का संविधान बनाने में बाबा साहेब आम्बेडकर से ज्यादा सनातनियों का हाथ था। बहरहाल मेरा सुझाव है कि केंचुआ को प्रत्याशियों के हलफनामे आँखें बंदकर स्वीकार नहीं कर लेना चाहिये । बाकायदा इनका सत्यापन होना चाहिए। जनता से इन पर आपत्तियां आमंत्रित की जाना चाहिए ,क्योंकि हमारे नेता जितने जमीन के ऊपर दिखाई देते हैं उससे कहीं ज्यादा वे जमीन के नीचे होते हैं। नेता किसी भी दल का हो उसके पास खाने और दिखने के दांतों का सेट अलग-अलग ही होता है। अब आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने क्षेत्र के प्रत्याशियों के हलफनामों पर यकीन करें या न करे। उन्हें चुनौती दें या न दें ?देश में इस मामले में जो घल्लू-घारा दशकों से चल रहा है वो आगे भी चलेगा ,क्योंकि हमारी केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती सीतारमण ने कह दिया है कि यदि मोदी जी तीसरी बार सत्ता में आये तो इलेक्टोरल बांड फिर से लाये जायेंगे। अबकी उन्हें संवैधानिक कपड़ा पहनाया जाएगा

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