Site icon अग्नि आलोक

अयोध्या का संदेश साफ है कि अब घृणा की राजनीति बहुत देर तक काम करनेवाली नहीं

Share

हिंदी सिनेमा जगत के प्रसिद्ध गायक सोनू निगम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लेकिन उनका पूरा नाम सोनू निगम सिंह है और उनकी पैदाइश फरीदाबाद (हरियाणा) की है। गत 4 जून, 2024 को जब देश में इस बार हुए लोकसभा चुनाव के मतों की गिनती हो रही थी, तब उनकी नजर उत्तर प्रदेश के फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र पर थी, जिसे अयोध्या भी कहा जाता है। अपने ट्वीटर हैंडल पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा था– “जिस सरकार ने पूरे अयोध्या को चमका दिया, नया एयरपोर्ट दिया, रेलवे स्टेशन दिया, 500 सालों के बाद राम मंदिर बनवाकर दिया, पूरी पूरी एक टेंपल इकोनॉमी बनाकर दी, उस पार्टी को अयोध्या जी सीट पर संघर्ष करना पड़ रहा है। शर्मनाक है अयोध्यावासियों।”अमेरिकी अध्येत्ता डॉ. ऑड्री ट्रुश्के ने गत 6 जून, 2024 को अपने ट्वीटर हैंडल पर एक संदेश में बाबरी विध्वंस की जांच को लेकर गठित लिब्रहान आयोग की रपट, जो कि 2009 में भारतीय संसद में प्रस्तुत की गई, के पैराग्राफ 158.2 को उद्धृत किया, जिसमें सार के रूप में यह कहा गया है कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या में आम लोगों की कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

नवल किशोर कुमार

दरअसल, उनकी इस टिप्पणी की मुख्य वजह यह थी कि तब समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवेधश प्रसाद भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लल्लू सिंह से मतगणना में काफी आगे निकल चुके थे और यह लगभग तय हो गया था कि वे ही विजेता बनेंगे। फिर जब अंतिम परिणाम सामने आया तो यह आधिकारिक तौर पर घोषित किया गया कि अवधेश प्रसाद ने 5 लाख 54 हजार 289 मत पाकर भाजपा के लल्लू सिंह को 54 हजार 567 मतों के अंतर से हरा दिया है। तीसरे स्थान पर बहुजन समाज पार्टी द्वारा मैदान में उतारे गए उम्मीदवार सच्चिदानंद पांडे रहे, जिन्हें केवल 46 हजार 407 मत मिले।

लिखी जा रही है कविता– तुम कहो अयोध्यावासी

गौरतलब है कि फैजाबाद यानी अयोध्या लोकसभा क्षेत्र सामान्य क्षेत्र है और यहां सपा ने दलित समुदाय से आनेवाले अवधेश प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया। हालांकि अवधेश प्रसाद एक अनुभवी राजनेता रहे हैं। वर्ष 1977 में वे पहली बार विधायक बने। अपने राजनीतिक कैरियर में वे 9 बार विधायक रहे हैं और 6 बार राज्य सरकार में मंत्री रहे हैं। उनकी जीत के बाद उत्तर प्रदेश के एक कवि अमित प्रेमशंकर ने कविता लिखी, जिसका शीर्षक है– ‘तुम कहो अयोध्या वासी’। इस कविता में वह अयोध्या के मतदाताओं को अपमानित करते हुए लिखते हैं– “एक अकेला खड़ा धनुर्धर/जनमत के सहारे थे/अपने ही घर में रघुवर/बस अपनों से ही हारे थे/नर सारे रावण बन बैठे/नारी मंथरा दासी/क्या भूल हुई क्या चूक हुई/तुम कहो अयोध्या वासी”।

दरअसल, सोशल मीडिया पर अयोध्या के मतदाताओं को भाजपा समर्थकों द्वारा कोसा और अपमानित किया जा रहा है। हालांकि अब यह कई मीडिया संस्थानों (फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित ‘काल्पनिक राम ने नहीं, अयोध्या की जनता ने दिया भाजपा के खिलाफ जनादेश’ शीर्षक एक विश्लेषण में भी) द्वारा प्रकाशित रपटों में यह बात सामने आ चुकी है कि अयोध्या में भाजपा की हार के पीछे अनेक कारण थे, जिनमें एक यह भी था कि अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के नाम पर स्थानीय लोगाें से जमीनें अधिग्रहित की गईं। अनेकानेक लोगों की रोजी-रोटी छीन ली गई।

एक नजर में फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र के अबतक के सांसद

वर्ष जब चुनाव हुएविजेतापार्टी
1957 राजा राम मिश्राकांग्रेस
1962 बृजबासी लालकांग्रेस
1967 और 1971रामकृष्ण सिन्हा कांग्रेस
1977 अनंतराम जायसवालजनता पार्टी
1980 जयराम वर्माकांग्रेस (इंदिरा)
1984 निर्मल खत्रीकांग्रेस
1989 मित्रसेन यादवसीपीआई
1991 व 1996विनय कटियारभाजपा
1998 मित्रसेन यादवबसपा
1999 विनय कटियारभाजपा
2004 मित्रसेन यादवबसपा
2009 निर्मल खत्रीकांग्रेस
2014 और 2019 लल्लू सिंह भाजपा
2024अवधेश प्रसादसपा

लेकिन सवाल उठता है कि अयोध्या के मतदाताओं को कोसा और अपमानित केवल भाजपा की हार के कारण किया जा रहा है या इसके पीछे एक वजह यह भी है कि वे लोग, जो ऐसा कर रहे हैं, उन्हें एक दलित समुदाय के व्यक्ति की जीत – वह भी एक सामान्य सीट और इसमें भी ‘रामजन्मभूमि’ से – पच नहीं रही है? 

केवल अयोध्या में ही नहीं मिली है हिंदुत्ववादियों को हार

यह सवाल भी इसलिए कि केवल फैजाबाद में ही भाजपा को हार नहीं मिली है। इसके आसपास के संसदीय क्षेत्रों यथा बस्ती लोकसभा क्षेत्र में सपा के उम्मीवार रहे राम प्रसाद चौधरी ने एक लाख 994 मतों के अंतर से भाजपा के उम्मीदवार हरीश चंद्र ऊर्फ हरीश द्विवेदी को हराया। ऐसे ही श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र में सपा के उम्मीदवार राम शिराेमणि वर्मा ने भाजपा के उम्मीदवार साकेत मिश्रा को 76 हजार 673 मतों के अंतर से हराया। वहीं सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र में सपा के उम्मीदवार राम भुआल निषाद ने भाजपा की कद्दावर नेता व इंदिरा गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी को 43 हजार 174 मतों के अंतर से हराया। भाजपा को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के उम्मीदवार तनुज पुनिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा। पुनिया ने भाजपा की उम्मीदवार राजरानी रावत को 2 लाख 15 हजार 704 मतों के अंतर से हराया।

मनुवादी सोच छिपती नहीं है : बी.आर. विप्लवी

जाहिर तौर पर भाजपा को इस पूरे इलाके में अनेक लोकसभा क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा है। यह वह इलाका है, जिसे भाजपा, खासकर फैजाबाद को ‘अयोध्या जी’ के रूप में हिंदुत्व का गढ़ बनाकर प्रचारित कर रही थी। फिर केवल अयोध्या के मतदाताओं को क्यों कोसा और अपमानित किया जा रहा है, इस संबंध में उत्तर प्रदेश के जाने-माने साहित्यकार बी.आर. विप्लवी बेहद स्पष्ट शब्दों में कहते हैं– “पहली बात तो यह है कि श्रीरामचंद्र जी का जो एक वित्तंडा खड़ा किया गया है, वोट की राजनीति के लिए और श्रीराम की उनकी [ब्राह्मणवादियों की] राजनीति में उनके चतुर्वर्ण धर्म की बात है। इस चतुर्वर्ण धर्म में तो दलित सबसे नीचे है। अब दलित जो है, वहां का बादशाह हो जाय तो यह बात तो श्रीरामचंद्र जी को पचती नहीं है। रामचंद्र जी को भले पच जाय लेकिन यह बात रामचंद्रजी वालों को नहीं पच रही है कि सबसे निचले पायदान का आदमी और पूरे भारत में जिस राममंदिर का हल्ला मचाया गया, इस चुनाव परिणाम ने उस पूरी विचारधारा को ध्वस्त कर दिया है। तो एक कारण तो यह कि दलित जीता, दूसरा कारण यह कि विजेता विपक्ष का उम्मीदवार था, और तीसरा कारण रामचंद्र जी की कथित जन्मभूमि है, वहां से जीता। अब ये तीन-तीन तीर लग गए हैं सवर्ण समुदाय को तो मैं साफ-साफ कहना चाहता हूं कि सवर्ण समुदाय, सारा तो नहीं, लेकिन उन लोगों को कह रहा हूं जो एक खास तरह की मैनिया में जिंदा रहते हैं। मैंने जमीन पर कई लोगों को यह कहते हुए सुना था और गाली देते हुए सुना था कि सपा के लोग पागल हो गए हैं जो सबसे नीच जाति के व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है। इसके बजाय किसी गैर-दलित को उम्मीदवार बनाते। हारते चाहे जीतते, कम से कम एक पवित्र आदमी को तो उम्मीदवार बनाते। तो उनके लिए तो दलित आज भी अपवित्र है। राजनीति के लिए चाहे झूठ बोला जाय कि हम तो समन्वय चाहते हैं, सबको मिलाकर चलना चाहते हैं, यह केवल स्टैटिस्टिक्स (सांख्यिकी) के लिए है कि हमारे वोट का गणित ठीक रहे बस। इसीलिए बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का जो संविधान है, वह इस बात के लिए विवश करता है, क्योंकि उन्होंने यह व्यवस्था दी है, तब ये (ऊंची जाति वाले) ऐसी थोड़ी बहुत बात कर पाते हैं। नहीं तो वे तो दलितों के हित की कोई बात ही नहीं करते हैं। इसलिए फैजाबाद के लोगों को जो गालियां दी जा रही हैं, उसके पीछे केवल मनुवादी सोच है। उनकी मनुवादी सोच कहीं छिपती नहीं है।”

फैजाबाद (अयोध्या) के नवनिर्वाचित सांसद अवधेश प्रसाद, बी.आर. विप्लवी, रामचंद्र कटियार व वीरेंद्र यादव

मानववादी आंदोलनों का फलीभूत होना है चुनाव का परिणाम : रामचंद्र कटियार 

वहीं शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र कटियार का कहना है कि “एक तो भाजपा ने [अयोध्या को] हिंदू विचारधारा और ब्राह्मणवाद का गढ़ घोषित कर दिया था। और इतना प्रचार-प्रोपेगेंडा किया कि हम पूरा भारत यहीं (अयोध्या) से जीत लेंगे। अब वे हार गए तो मुंह दिखाने लायक नहीं हैं। और देखिए कि जहां-जहां मानववादी आंदोलन चलते हैं, वह फलीभूत जरूर होता है। आप देखिए कि तमिलनाडु में जहां पेरियार का आंदोलन चला, वहां भाजपा को करारी हार मिली। महाराष्ट्र, जहां बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर का विचार फैला, वहां भाजपा को हार मिली है। पंजाब, जहां आदि धर्म आंदोलन चला, सिक्खों का समतावादी धर्म स्थापित हुआ, वहां भाजपा को हार मिली। और उत्तर प्रदेश में जहां अर्जक संघ का आंदोलन चला, रामस्वरूप वर्मा और पेरियार ललई सिंह यादव जैसे अनेक लोगों ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी, भाजपा को हार मिली। तो ब्राह्मणवाद के खिलाफ यहां जमीन तो रही ही है। फिर इस बार संविधान और आरक्षण पर हमले का जो सवाल खड़ा हुआ, लोकतंत्र को खत्म करने का मुद्दा आया तो लोगों ने दल की सीमाओं को तोड़कर वोट किया। आपको पता ही होगा कि लल्लू सिंह जो कि भाजपा के उम्मीदवार रहे, और ठाकुर (राजपूत) जाति के रहे, उन्होंने चुनावी सभा में कहा था कि भाजपा को चार सौ अधिक सीटें इसलिए चाहिए ताकि संविधान बदला जा सके। अयोध्या ने हिंदुत्ववादी विचारधारा के सीने पर करारी चोट की है। यह हिंदुत्ववादियों के लिए बर्दाश्त से बाहर की बात है। इसलिए वे अंट-शंट बोल रहे हैं। अवधेश प्रसाद जी प्रारंभ से ही आंबेडकरवादी रहे हैं। आप अयोध्या ही क्यों, बाराबंकी को देखिए। वहां की जमीन समाजवादी रही है। वहां वामपंथी चेतना भी रही है। हम यह भी कह सकते हैं कि जब पछिया हवा लगी तो उसने हिंदुत्ववाद को धुल चटा दी। वे मुंह दिखाने के काबिल इसलिए नहीं हैं, क्योंकि वे तो यह कह रहे थे कि हम राम को लाए हैं, इसलिए हमको लाओ। इस चुनाव में यह सब ध्वस्त हो गया। रही बात फैजाबाद की तो यहां अर्जक संघ का आंदोलन खूब चला। यहां शोषित समाज दल और अर्जक संघ के तीन-तीन प्रादेशिक सम्मेलन हो चुके हैं। वहां के रघुनाथ सिंह यादव शोषित समाज दल के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके अलावा वहीं महादेव वर्मा भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में इसके प्रदेश अध्यक्ष रामनिवास जी भी वहीं के हैं। फैजाबाद की भूमि बहुत पहले से क्रांतिकारी रही है।”

अमेरिकी अध्येत्ता डॉ. ऑड्री ट्रुश्के ने गत 6 जून, 2024 को अपने ट्वीटर हैंडल पर एक संदेश में बाबरी विध्वंस की जांच को लेकर गठित लिब्रहान आयोग की रपट, जो कि 2009 में भारतीय संसद में प्रस्तुत की गई, के पैराग्राफ 158.2 को उद्धृत किया, जिसमें सार के रूप में यह कहा गया है कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या में आम लोगों की कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

दलितों के प्रति घृणा और भाजपा की हार की खीझ भी : वीरेंद्र यादव

इसी तरह की बात प्राख्यात हिंदी समालोचक वीरेंद्र यादव भी कहते हैं। उनके मुताबिक, “अयोध्या से भाजपा का हारना बहुत बड़ी घटना है। यह महज एक सीट पर भाजपा की हार और इंडिया गठबंधन की जीत नहीं है, बल्कि चुनाव के जिस केंद्रीय मुद्दे राम मंदिर का प्रचार किया गया था, उस मुद्दे की हार है। अवधेश प्रसाद की जीत के बाद अयोध्या के लोगों के बारे में सोशल मीडिया पर जो दुष्प्रचार किया जा रहा है, उसके मूल में उनकी यह सोच तो है ही कि वहां राम मंदिर है और वहां भाजपा की हार हो गई है, जिसे वह पचा नहीं पा रहे हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सामान्य सीट थी। सामान्य सीट पर एक दलित उम्मीदवार का जीतना उन्हें किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। तो उनके द्वारा दुष्प्रचार में दलितों के प्रति घृणा भी मौजूद है और भाजपा की हार की खीझ भी है। इन दोनों के कारण ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है। मैं समझता हूं कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत हुए चुनाव के परिणाम को लेकर वहां की जनता की लानत-मलामत की जा रही है। ये वही लोग हैं, जो अयोध्या की वास्तविक स्थिति नहीं जान रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर क्या तहस-नहस किया गया और कितनों का रोजगार छीना गया। वे यह भी नहीं जानते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनने का वहां के वासियों के लिए क्या मतलब है। बाहर के लोगों को लिए यह धार्मिक आस्था का विषय हो सकता है। लेकिन वहां के लोग, जिनकी जमीनें ले ली गईं और उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया, बहुत से लोग हैं जिनकी दुकानें तोड़ दी गईं। कुल मिलाकर अयोध्या या फैजाबाद में ऐसा वातावरण है, जिसके कारण भाजपा को वहां हार मिली। ऐसा नहीं है कि फैजाबाद या अयोध्या में हिंदुत्वादी ताकतें पहली बार हारी हैं। जब बाबरी विध्वंस कांड हुआ उसके बाद के वर्षों में भी वहां से मित्रसेन यादव जीतते रहे। अभी जो सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार किया जा रहा है, वहां के बारे में भाजपा के द्वारा फैलाए गए जहर का दुष्परिणाम है। और ऐसा भी नहीं है कि भाजपा केवल फैजाबाद से हारी, बल्कि आसपास की अनेक सीटों पर उसे हार मिली है। संदेश बहुत साफ है कि अब घृणा की राजनीति बहुत देर तक और बहुत दूर तक काम करनेवाली नहीं है।”

Exit mobile version