शशिकांत गुप्ते
सेंचुरी (Century) शब्द क्रिकेट के खेल में प्रचलित है। सेंचुरी मतलब शतक अर्थात किसी बल्लेबाज (बैट्समैन) द्वारा सौ रन बनाने पर कहा जाता है, कि फलां बल्लेबाज ने सेंचुरी बनाई।
सेंचुरी शब्द का अर्थ शताब्दी भी होता है। इनदिनों Twenty frist अर्थात 21वी शताब्दी चल रही है।
इक्कीसवीं शताब्दी में हम पहुंच गए हैं। यह शाश्वत सत्य,हमें इसलिए मानना पड़ेगा कारण हम वैचारिक रूप से भालेही सोलवी शताब्दी में हैं, लेकिन कैलेंडर में हम इक्कीसवीं शताब्दी में निश्चित ही पहुंच गए हैं।
सन 2046 के 15 अगस्त को हम अपने देश की स्वतंत्रता की सेंचुरी मनाएंगे। जो 15 अगस्त 2047 को पूर्ण होगी।
पिछले दस वर्षो में देश की जनता ने जो जुमले सुने हैं,इन जुमलों की भी सेंचुरी होने वाली है।
अच्छे दिन आयेंगे,दो करोड़ रोजगार प्रति वर्ष उपलब्ध होंगे,कलाधन लाएंगे,देश के हरएक नागरिक को पंद्रहलाख देंगे, पिछले सत्तर वर्ष देश में कुछ भी नहीं हुआ,नोट बंदी नोट बदली में कैसे बदलती है, नाली के गैस से पकोड़े बनाना, बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ,बहुत हुई महंगाई की मार,अब की बार….,। …है तो मुमकिन है,सबका साथ ,विकास और विश्वास और अमृतकाल आदि वाक्यों की सेंचुरी हो गई।
इतना लिख कर मै, सीतारामजी के पास गया और उनसे सलाह ली आगे क्या लिखना चाहिए?
सीतारामजी ने कहा जो मन में आए लिख दो। लिखने के पहले मन के महत्व को समझो।
पहले मन को रज और तम इन दो दुर्गुणों के प्रदूषण से बचाओ।
मन को सात्विक बनाओ।
ऐसा करना तब ही संभव हो पाएगा जब तुम्हारी नियत में खोट नहीं होगी।
नीति और नियत पर व्यापक बहस की आवश्यकता है।
इस संदर्भ में संत कबीर साहब रचित निम्न पंक्तियां सटीक है।
मन मैला और तन को धोए,
फूल को चाहे कांटे बोये
( फूल को चाहे कांटे बोये)
करे दिखावा भगति का क्यों उजली ओढ़े चादरिया।
भीतर से मन साफ किया ना, बाहर मांजे गागरिया
मन के महत्व को समझने वालों के लिए मन ही दर्पण होता है।
सन 1965 में प्रदर्शित फिल्म काजल के गीत की ये पंक्तियां उक्त संदर्भ में प्रासंगिक है।
इस गीत के गीतकार है,साहिर लुधियानवी
यह पंक्तियां जिसका मन साफ स्वच्छ हो उसी के लिए है।
तोरा मन दर्पण कहलाये
तोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मों को, देखे और दिखाये
इन पंक्तियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
भले बुरे सारे कामों को,देखे और दिखाए
शशिकांत गुप्ते इंदौर