अग्नि आलोक

मानसिक गुलामी की आधुनिक मिसाल है सावरकर को बुलबुल पर बिठाना

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मुनेश त्यागी

हमारे देश और समाज में मनुष्य के दिमाग में अज्ञानता, अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंडों का कचरा हजारों साल से भरा गया है और मनुष्य को मानसिक रूप से दिवालिया और गुलाम बना दिया गया है। हमें हजारों साल से पढ़ाया और बताया जा रहा है कि सरस्वती की सवारी हंस था, लक्ष्मी की सवारी उल्लू था, गणेश की सवारी चूहा था। अब उसी की नकल करते हुए कर्नाटक में बीजेपी की सरकार द्वारा सावरकर को बुलबुल की सवारी करता हुआ दिखाया जा रहा है और 8वीं कक्षा के बच्चों को यही पढ़ाया जा रहा है।
हमें हजारों साल से यह भी बताया और पढ़ाया गया की ब्रह्मा के चार सिर थे, श्रृंगी ऋषि हिरण से पैदा हुए था, द्रोणाचार्य दोने ने से पैदा हुआ था, हनुमान कान से पैदा हुआ था, करण सूर्य से पैदा हुआ था, गणेश मैल से पैदा हुआ था, राजा जनक अपने पिता की जांच से पैदा हुआ था, सीता घड़े से पैदा हुई थी, राम लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न खीर खाने से पैदा हुए थे, लव कुश घास से पैदा हुए थे, मकरध्वज मछली से पैदा हुआ था, हनुमान सूर्य को निगल गया था और हनुमान पूरे पर्वत को उठा लाया था, हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को उठा लिया था, पत्थर पानी पर तैरा दिए गए थे, युधिष्ठिर जुआ खेल कर धर्मराज बन गया था।
इस प्रकार की अनंत मनगढ़ंत और कपोल कल्पित कथाएं हजारों साल से हमारे देश की करोड़ों जनता के दिमाग में ठूंस दी गई हैं और हकीकत यह है कि कुछ लोगों को छोड़कर, यहां की अधिकांश जनता उपरोक्त कपोल कल्पित बातों और मनगढ़ंत कथाओं को सच माने बैठी हुई है। वह आज के वैज्ञानिक युग में भी हकीकत को, ज्ञान को, तर्क वितर्क को और वैज्ञानिक संस्कृति को अपनाने को तैयार नहीं है।
इसमें सबसे बड़ा खेल हमारे यहां का शासक वर्ग और सरकारें खेलती रही हैं। उन्होंने कभी भी जनता को बौद्धिक रूप से मुक्त करने की, उसे आजाद करने की, उसे जनता को अपने पैरों पर खड़ा होने की शिक्षा दी ही नहीं और वह आज भी यह चाहता है कि हमारे देश की जनता धर्मांधता, अज्ञानता, अंधविश्वास और पाखंडों के साम्राज्य में रची बसी रहे। वह अपने विवेक का, ज्ञान बुद्धि का, लॉजिक का इस्तेमाल ही ना करें।
इसी सोच के साथ कर्नाटक में भाजपा की सरकार ने, आठवीं कक्षा के लिए कन्नड़ भाषा में एक चैप्टर लागू किया है जिसमें उसने कहा है कि सावरकर अंडमान निकोबार की जेल से रोज निकलकर बुलबुल की पीठ पर बैठकर, भारत भ्रमण करने आया करता था। हमें जानकारी है कि जिस कोठरी में सावरकर बंद था, उस कमरे में कोई खिड़की, रोशनदान वगैरह नहीं था। उसमें कोई भी आ जा सकता नहीं था। हवा भी मुश्किल से आ सकती थी। वहां पर जेलकर्मियों का, पहरेदारों का 24 घंटे पहला रहता था, तो फिर सावरकर जेल से रोज कैसे निकल सकता था।
और दूसरा सवाल कि क्या कोई आदमी किसी 200 ग्राम की चिड़िया की पीठ पर बैठकर सवारी कर सकता है? क्या कोई चिड़िया इस दुनिया में ऐसी है जो किसी आदमी को रोज हजारों किलोमीटर दूर ले जा सके और रोज ला सके? यहीं पर तीसरा सवाल उठता है कि चलो एक बार को मान लिया कि वह बुलबुल की पीठ पर सवार होकर रोज भारत भूमि का भ्रमण करने आता था। मगर सावरकर यहां आकर करता क्या था? वह कभी महात्मा गांधी से मिला? आजाद हिंद फौज के सिपाहियों से मिला? सुभाष चंद्र बोस से मिला? भगत सिंह और उसके दूसरे साथियों से मिला? पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिला? तो आखिर भारत भूमि पर आकर क्या करता था?
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हम यह कह सकते हैं कि वह अंग्रेजों को माफ़ीनामें देने वाला था। अंग्रेजों से यह कहता था कि आप मुझे जेल से रिहा कर दीजिए, मैं आप के कानून को मानूंगा, आप का कानून और आपका साम्राज्य दुनिया में सबसे अच्छा है। मैं आपके सुधारों की वकालत करूंगा और जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूंगा और वह यह कहने भारत आता था कि अंग्रेजों, आप चिंता मत करें, मैं हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के लिए भारत में दो राष्ट्र सिद्धांत की प्रस्तावना करूंगा और जिसमें कहूंगा कि यहां पर दो राष्ट्र हैं,, हिंदू और मुसलमान, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते।
और आप देखिए, सावरकर के माफीनामों के अनुसार उसे अंग्रेजों द्वारा जेल से रिहा किया गया और उसने अपने वचन के अनुसार भारत में दो राष्ट्रों की स्थापना की थ्योरी 1923 में पेश की, हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने की बात की, जनता की एकता तोड़ने की बात की और वह अपनी सारी जिंदगी जनता की एकता तोड़ने के उपक्रम में लगा रहा और अंग्रेजों को दिए गए अपने प्रण से, अपने वचन से कभी पीछे नहीं हटा।
कर्नाटक में बीजेपी की सरकार वही हजारों साल पुराने अंधविश्वास, धर्मांधता, अज्ञानता और पाखंडों और बौद्धिक गुलामी को यहां की जनता और भारत की जनता के दिमाग में ठूंसना चाहती है। वह जनता को आज भी बौद्धिक रूप से गुलाम बनाए रखने की हरचंद कोशिश कर रही है उसने अपनी हरकतों से, ज्ञान विज्ञान के सूरज को ढक लिया है और भारत को पुनः अंधेरी सुरंग में धकेलने की तैयारी कर ली है। सावरकर को बुलबुल की पीठ पर बिठाकर, भारत भ्रमण की बात करना भी उसी जनविरोधी मानसिकता का परिचायक है।
आज भारत के धर्मनिरपेक्ष दलों की, ओर जनता की, वैज्ञानिकों की, किसानों मजदूरों की, नौजवानों की, बुद्धिजीवियों की, मीडिया कर्मियों की, वकीलों और जजों की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि हिंदू सांप्रदायिकता भारत में जो विवेक और बुद्धिहीनता का साम्राज्य कायम करना चाहती हैं, उसे बरकरार रखना चाहती हैं, इससे उन्हें लड़ना होगा, और जनता को इससे अवगत कराना होगा और उनकी इस ज्ञान विज्ञान विरोधी मुहिम को परास्त करना होगा।


	
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