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सत्ता पर आज भी राजसत्ता का प्रभुत्व नहीं

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राजसत्ता जो वास्तिकता की धरातल पर चलता है, उसने उत्पादिका शक्ति के विकास के साथ-साथ नये-नये औजारों के निर्माण से लेकर अंतरिक्ष तक में लम्बी-लम्बी छलांगें लगाने लगा. वहीं हमारा देश भारत जहां धार्मिक सत्ता ने राजसत्ता पर प्रभुत्व पा लिया, अपने पोंगापंथ और अंधविश्वास की स्थापना के साथ-साथ न केवल उत्पादिका शक्ति के विकास को ही रोक दिया, बल्कि मानव-समाज के विकास के रफ्तार को भी बाधित किया है.

मानव समाज के स्थायित्व लेने के साथ ही दो सत्ता मानव समाज पर शासन करने के लिए जन्म लिया, प्रथम राजसत्ता और दूसरा, धार्मिक सत्ता. इन दोनों सत्ताओं के बीच परस्पर सहोपकारिता का संबंध था. यह दोनों ही सत्ता जिस बात पर एकमत थी, वह था शोषण के द्वारा मनुष्यों का खून पीने की आकांक्षा, आम मेहनतकश इंसानों के कठोर श्रम से उपार्जित सम्पदा को लूटना. परन्तु उत्पादन शक्ति की विकास ने शोषण आधारित इस व्यवस्था को कायम रखने के तरीके के सवाल पर इस दोनों सत्ताओं के बीच का अन्तर्विरोध भी बढ़ता चला गया. इसी बढ़ते अन्तरर्विरोध के कारण हमारा यह मानव समाज दास-मालिक समाज व्यवस्था, सामंती समाज व्यवस्था, पूंजीवादी समाज व्यवस्था सहित अनेक चरणों से गुजरता हुआ आज तक पहुंचा है.


लूट के तरीके और आधिपत्य के सवाल पर इन दोनों सत्ताओं के बीच अन्तरर्विरोध इस कदर बढ़ गया कि यह हिंसात्मक भी हो गया. इसे अजीब इत्तेफाक ही कहेंगे कि यूरोप में धार्मिक सत्ता पर राजसत्ता ने विजय पा लिया, तो वहीं भारत जैसे पोंगापंथी समाज में राजसत्ता पर ही धार्मिक सत्ता विजय पा लिया. विजय के इस परिणाम का मानव समाज दूरगामी प्रभाव पड़ा. राजसत्ता जो वास्तिकता की धरातल पर चलता है, उसने उत्पादिका शक्ति के विकास के साथ-साथ नये-नये औजारों के निर्माण से लेकर अंतरिक्ष तक में लम्बी-लम्बी छलांगें लगाने लगा. वहीं हमारा देश भारत जहां धार्मिक सत्ता ने राजसत्ता पर प्रभुत्व पा लिया, अपने पोंगापंथ और अंधविश्वास की स्थापना के साथ-साथ न केवल उत्पादिका शक्ति के विकास को ही रोक दिया, बल्कि मानव-समाज के विकास के रफ्तार को भी बाधित किया है.

इसका कारण यह भी रहा कि यूरोप में विजयी राजसत्ता चूंकि वास्तविकता की धरातल पर चलता है, तो उसने अपने आवश्यकता की जिन वस्तुओं का आविष्कार अथवा खोज किया वह कुछेक इस प्रकार है :

1. मोबाईल फोन
2. फेसबुक
3. ह्वाटसएप
4. ई मेल
5. पंखा
6. जहाज
7. रेलगाड़ी
8. रेडियो
9. टेलीविजन
10. कम्प्यूटर
11. चीप (मेमोरी कार्ड)
12. कागज
13. प्रिंटर
14. वाशिंग मशीन
15. एयर कंडीशनर
16. फ्रीज
17. इंटरनेट
18. चंद्रमा की दूरी
19. सुर्य का तापमान
20. पृथ्वी की आकृति


21. दूरबीन
22. सैटेलाइट
23. चुम्बक
24. घर्षण, गुरुत्वाकर्षण, न्यूटन के नियम
25. रोबोट
26. मैट्रो रेल
27. बुलेट ट्रेन
28. परमाणु बम, हाइड्रोजन बम
29. बंदुक
30. मिसाईल
31. दवाईयां
32. कृत्रिम हार्ट
33. स्टेंट (खून की नलियों में लगने वाला)
34. साईकिल
35. कार
36. लिफ्ट
37. मंगल पर इंसान बसाने की तैयारी, इत्यादि-इत्यादि.

वहीं राजसत्ता पर विजयी धार्मिक सत्ता ने भारत में जिन-जिन चीजों की खोज या आविष्कार किया है, वह इस प्रकार है :

1. भूत-प्रेत
2. राक्षस/चुड़ैल
3. आत्मा-परमात्मा
4. स्वर्ग-नरक
5. पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है
6. गंगा शिवजी के जटा से निकलती है
7. कलियुग में मनुष्य के सारे दुखों के अंत का उपाय – सत्यनारायण कथा
8. मृत्यु से छुटकारा पाने का उपाय – महामृत्युंजय मंत्र
9. भगवान के 10 अवतार
10. 33 करोड़ देवी-देवता
11. बंदर पढ़ा-लिखा था और पत्थर पर राम लिखता था.
12. सभी देवी-देवताओं के पास अलग-अलग प्रकार की शक्ति जैसे – अनाज की देवी, धन की देवी, शिक्षा की देवी, मजदूर (कामगार) की देवी, भूत-प्रेत से बचाने वाले देवी-देवता, ग्रहों की दिशा बदलने वाले/प्रकोप दूर करने वाले आदि

13. अनेक व्रत/उपवास
14. सर्वाधिक मंदिरों का निर्माण
15. सर्वाधिक आध्यात्मिक गुरु का विकास (जो सैक्स कांड में आये दिन जेल जाते हैं)
16. मंत्र/उपवास से इलाज करने वाले डाक्टर
17. मनचाहा प्यार, नौकरी, व्यापार में घाटा, गृह क्लेश, वशीकरण आदि से समस्याओं का समाधान
18. शिक्षा में विज्ञान एवं महापुरुषों के योगदान की जगह आध्यात्मिक (गीता) शिक्षा
19. बाल विवाह
20. सती प्रथा
21. जाति वर्ग
22. शिक्षा, व्यापार का एकाधिकार
23. वैज्ञानिकता को आध्यात्मिकता से जोड़ना

24. मानव जाति का मुख्य वर्ग स्त्री को अधिकार देने पर हंगामा
25. परशुराम, राम, कृष्ण जैसे-तीन तीन अवतार का एक साथ होना
26. गणपति के रूप में आदमी पर हाथी फिट कर देना
27. हनुमानजी द्वारा सूर्य को निगल जाना
28. चांद की पूजा और आराधना करना
28. ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ बाकि सारे नीच
29. मिठाई देवता पर चढ़ाते हैं डायबिटीज पुजारी को, आदि-आदि

आज जब पृथ्वी के एक हिस्से का मानव समाज विकास का एक-से-बढ़कर एक कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा है, वहीं धार्मिक होता हमारा समाज आज भी वेद-पुराणों में घुसा विज्ञान और वैज्ञानिक को गाली देता हर दिन एक-से-बढ़कर एक पोंगापंथ और कायरता की मिशाल छोड़े जा रहा है, जो हस्यास्पद होने की हद तक घृणित है. यथा – ‘डार्विन थ्योरी गलत है, हमने आज तक किसी बंदर को आदमी बनते नहीं देखा है. नाली के गंदे पानी से निकलती दुर्गंध से चायवाला चूल्हा जलाकर चाय बनाकर बेचता है. आईंस्टिन ने वेद पढ़कर सापेक्षिता के अपने महान सिद्धांत का खोज किया, मनुस्मृति जैसे घटिया और मानवद्रोही जैसे गं्रथों को संविधान की जगह स्थापित करने की जद्दोजहद करना आदि-आदि.

हमारे देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि यहां की सत्ता पर आज भी राजसत्ता का प्रभुत्व नहीं है, और धार्मिक सत्ता का सीधा दखल राजसत्ता के हर क्षेत्र में है. ऐसे में हमारे देश की उत्पादिका-शक्ति तबाह हो रही है. लगातार विनष्ट होती यह उत्पादिका-शक्ति इस सड़े-गले समाज को ही विनष्ट होने के कागार पर ला खड़ा कर देगी. ऐसे में यह जरूरत है कि वैसे तमाम पोंगापंथियों और धार्मिक-सत्ता के हितौषियों के खिलाफ उठ खड़े हो ताकि देश को वैज्ञानिक समाज की ओर अग्रसर हो सके.

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