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राजनैतिक दलों में भगोड़ों का सबसे अहम् दौर :आखिरी दांव

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                     –सुसंस्कृति परिहार

राजनैतिक दलों में भगोड़ों का इस समय सबसे अहम् दौर चल रहा है हालांकि ये नया नहीं है आशाराम गया राम से इसकी शुरुआत बहुत पहले हो चुकी थी।जो सतत् चलते हुए अब चरम पर आ चुकी है। दमोह के पथरिया क्षेत्र में नगरपंचायत चुनाव में तो एक प्रत्याशी ने एक दिन में तीन दल बदलने का रिकार्ड कायम किया है।यह सब सत्ता प्राप्ति,सत्ता के साथ का सुख और सबसे बड़ा अपने अपराध से बचने के लिए होता है।अब सत्ता प्राप्ति की ललक कम हो गई है सत्ता के साथ रहने के सुख और अपने अपराधों की सुरक्षा महत्वपूर्ण हो गई है।

इस बार के आमचुनाव से पहले ईडी, सीबीआई वगैरह ने जिस तरह छापामारी कर विपक्ष और उनके साथियों को आक्रांत किया है उसकी दबिश इतनी है इस तरह के तमाम लोग दहशतज़दा भाजपा वाशिंग प मशीन की ओर मुताबिक होते जा रहे हैं जो उनके काले धब्बे साफ़ कर देती है।यह सरकार का आम चुनाव में नया प्रयोग है वह इसमें सफ़ल भी नज़र आ रही है।पहले कहा जाता था कि जो बाप का नहीं हुआ वह किसी का कैसे हो सकता है किंतु अब बदलाव बड़े पैमाने पर हो रहा हो तब इन छोटे मुद्दों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

दूसरी तरफ़ कांग्रेस है जो अपने कुछ साथियों के साथ इसे अनीति और अन्याय मान इसके ख़िलाफ़ खड़ी है। नीतीश कुमार अनेकों मिल जाएंगे जनाब लेकिन हेमंत सोरेन होना अभिमान की बात है।भाजपा के इस नए प्रयोग ने अच्छों अच्छों की पोल खोल दी है जो अब तक बड़े उदार और साफ़ दामन की बात करते रहते थे।सही कहा जाए तो इस प्रयोग ने लालची जमूरों को नानी याद दिला दी है। इन्हें भली-भांति जनता को जान पहचान लेना चाहिए। बहरहाल कांग्रेस से अब तक जो गए हैं निश्चित तौर पर उनके दामन गंदे होंगे।आने वाले कल में इनके साथ क्या सुलूक होगा ये अंदर की बात है।आज के समय में हेमंत सोरेन होना गर्व की बात है 

लेकिन सवाल यही है कि भगौड़ा संस्कृति कब तक चलती रहेगी और अपराधियों के दागदार दामन स्वच्छ होते रहेंगे।ये तय है जिस दिन भाजपा में गए लोगों को आम मतदाता पहचान लेगा बस उसी दिन से इस संस्कृति का पतन शुरू होगा। मुसोलिनी और हिटलर की तरह।ये संस्कृति ज्यादा दिन नहीं चल सकती क्योंकि भगोड़ों की असलियत एक ना एक दिन उजागर  होती है जिसका हश्र सदैव बुरा होता है। लगता है,हारते हुए लोगों का यह आखिरी दांव है। विश्वगुरु ने इस संस्कृति को चरम पर पहुंचाया है।यह भी इतिहास में दर्ज किया जाएगा।ठीक वैसे ही जैसे महात्मा गांधी के साथ गोडसे का नाम दर्ज हुआ है।

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