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नफरत की खेती का परिणाम है करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोगामेडी की हत्या

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सनत जैन

राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेडी की जयपुर स्थित उनके घर में घुसकर, हत्यारों ने उनकी हत्या कर दी। मंगलवार की दोपहर 2 बजे बदमाश उनके घर पहुंचे और बातचीत करते हुए 15 से ज्यादा गोलियां चलाकर दिनदहाड़े उनके घर में ही हत्या कर दी। इस घटना की जिम्मेदारी लॉरेंस बिश्नोई गैंग के गैंगस्टर रोहित गोदारा ने ली है। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत के विरोध के कारण गोगामेडी चर्चा में आए थे। उनके समर्थकों ने पद्मावती की शूटिंग के दौरान भारी तोड़फोड़ की थी। सारे देश में एक आंदोलन सा चला दिया था। सिनेमा घरों में तोड़-फोड़ और एक आतंक का वातावरण बनाया गया था। आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर के बाद उन्होंने विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। करणी सेना के अध्यक्ष जिनकी घर में घुसकर हत्या की गई है, उनके खिलाफ 21 आपराधिक मामले पहले से ही दर्ज थे। इनमें से सात मामले गंभीर प्रकृति के थे। नफरत की खेती का कोई अंत नहीं होता है। जो बोया जाता है, वही किसी न किसी रूप में काटना ही पड़ता है।

आतंक की राजनीति, आतंक के जरिए प्रभुत्व, सत्ता बनाने की होड़ में इसी तरीके की घटनाएं हमेशा से होती आई हैं, और आगे भी होती रहेंगी। हमें यह सोचना होगा, वर्तमान समय में हम किस ओर जा रहे हैं। जरा-जरा सी बात को लेकर उत्तेजना, रोजाना मारने-काटने या दूसरों को नीचा दिखाने की जो होड़ चल पड़ी है, यह हत्याकांड भी उसी का परिणाम है। वर्तमान स्थिति में भारत में आम और खास आदमी दोनों की ही सोच में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। हमारे सामाजिक संस्कार बहुत खोखले होते जा रहे हैं। हम दोहरे चरित्र के साथ जी रहे हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ के अलावा और कोई सोच नहीं हैं। इसके दुष्परिणाम इस तरीके से देखने को मिल रहे हैं। हर व्यक्ति केवल अपनी सोचता है, अपने फायदे के लिए दूसरे का किसी भी हद तक जाकर कोई भी नुकसान कर देता है। जिस स्वार्थ के लिए उसने दूसरे का नुकसान किया है, उससे उसे भी कोई फायदा नहीं होता है, उल्टे उसे ही नुकसान सहना पड़ता है। यह समझ कब आएगी। यह कहना मुश्किल है। राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक क्षेत्र में समाज और लोक व्यवहार में नफरत और उत्तेजना हम प्रतिदिन देखते हैं। बड़े-बड़े पदों पर बैठने वाले लोगों की वाणी में कोई संयम नहीं है। कोई सोच नहीं है। तत्काल प्रतिक्रिया देकर हम यह भी नहीं सोचते हैं, कि इसके परिणाम क्या होंगे। महाभारत काल में द्रोपदी के इतना कहने पर, कि अंधे का लड़का अंधा ही होगा। उसकी परिणीति महाभारत युद्ध के रूप में हुई। जिसमें भारी विनाश का सामना करना पड़ा। ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथो में इस तरीके की हजारों घटनाएं दर्ज होने के बाद भी, वर्तमान में जिस तरीके का वातावरण देश में बना हुआ है, वह चिंतित करने वाला है। करणी सेना के अध्यक्ष की घर में घुसकर हत्या कोई साधारण घटना नहीं है। यह इस बात का घ्योतक है, कि मरने और मारने वाले के लिए कोई भी सुरक्षा व्यवस्था अथवा सुरक्षा कवच काम नहीं आता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उन्हीं के सुरक्षाकर्मियों ने की थी। नफ़रत की सोच को हमें बदलना होगा। पिछले कुछ वर्षों से जिस तरीके का वातावरण भारत में बनाया जा रहा है, वह चिंतित करने वाला है। सामाजिक सद्भाव, राजनीतिक सद्भाव और मानव जीवन में सभी को एक साथ लेकर चलने की जो प्रवृत्ति भारत की थी, हमें फिर उसका अनुसरण करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। नफरत की खेती में सिवाय विनाश के कुछ हासिल होने वाला नहीं है। प्रेम की खेती करने पर ही विकास संभव है। हमें प्रेम करना और प्रेम से रहना सीखना ही पड़ेगा।

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