~ डॉ. विकास मानव
प्रद्युम्न को कृष्ण (आकर्षण) का पुत्र माना जाता है। यह प्रद्युम्न (काम) युवावस्था की कृष्टता से जायमान होने से कृष्णात्मज है। यह रुक्मिणी (प्रकाशरश्मि) से उत्पन्न होता है।
रुक्म = प्रकाश। यह उषा (लालिमा युक्त प्रकाश, नवयौवन) का पति (स्वामी) है। यह उषा ही रति आकर्षण, लगाव) है।
प्रद्युम्नाय नमः। उपापतये नमः| कामाय रतिपतये नमः।
विश्व विवाह है। विवाह (गठबन्धन) है. किसका? पुरुष और प्रकृति का. देह और प्राण का. बुद्धि और मन का. कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों का. ज्ञान और क्रिया का. आत्मा और परमात्मा का. हार और जीत का. संघर्ष और विराम का. जीवन और मृत्यु का.
गाँठ दो को जोड़ती है। गाँठ के कारण दो मिल कर एक होते हैं। गाँठ खुलती है, टूटती है। गठबन्धन चिरकाल तक नहीं चलता। स्त्री और पुरुष का गठबन्धन साथ-साथ रहने के लिये होता है। दो दलों/पक्षों का गठबन्धन परस्पर सहयोग के लिये होता है। सर्जन और संहार का गठबन्धन संसार के चलते रहने के लिये होता है।
गठबन्धन का भंग होना एकान्तता/ अलगाव/ प्रलय है। गाँठ में रस नहीं होता। गाँठ कमजोर होती है। रस दो गाँठों के बीच में होता है। दो के बीच का भाग अपत्य/सन्तान विस्तार है।
विवाहित जीवन गठबन्धन से रहता है। बिना सन्तान के गठबन्धन में रस नहीं है। रस को पाने के लिये गठबन्धन किया जाता है। बिना गठबन्धन से उत्पन्न सन्तान में रस नहीं होता (मिलता)।
यह रस बह जाता है, व्यर्थ जाता है। इस लिये विवाह कर के सन्तानवान होना जीवन की अनिवार्यता है।
*विवाह और संतान :*
प्रजनार्थं स्त्रियः सृष्टाः सन्तानार्थं च मानवाः।
तस्मात् साधारणो धर्मः श्रुतौ पल्या सहोदितः।।
मैथुनजन्य सृष्टि को आगे बढ़ाना स्त्री पुरुष का अनिवार्य धर्म है। सन्तान न होने से विवाह क्या जीवन ही व्यर्थ होता है। हमें किसी ने उत्पन्न किया है, इसलिये हम भी किसी को उत्पन्न करें। इस बात को ध्यान में रखना चाहिये। यह ब्रह्मधर्म है। इस धर्म का प्रतिरोध, निरोध पाप है।
धिग् मैथुनमप्रजम्। उस मैथुन को धिक्कार है जिस से सन्तान की उत्पत्ति न हो।
सिक्किम को राजधानी गन्तोक में प्रवास के दौरान मुझे मालूम हुआ कि वहाँ की एक जनजाति में वयस्क बाला किसी युवक के साथ भाग जाती है। दोनों किसी सम्बन्धी के यहाँ रहते हुए सहवास करते है। लड़की कुछ समय बाद अपने घर लौटती हैं। यदि वह गर्भवती हो जाती है तो उसका युवक से विवाह कर दिया जाता है। लड़की के भागने का समाचार उसके घर वाले प्रसन्नता पूर्वक लोगों को बताते हैं।
यदि लड़की उस युवक से गर्भवती नहीं होती है तो उसे दुबारा किसी दूसरे के साथ भागना पड़ता है। विवाह तभी होगा, जब वह गर्भवती होगी। जो लड़की को गर्भवती कर सकता है, उसी को उससे विवाह करने का अधिकार है।
गर्भवती न करने वाला युवक विवाह से वञ्चित रहता है। गर्भ ठहराने वाला ही वीर्यवान् है। इसलिये पूज्य है। गर्भवती होने वाली युवती उर्वरा है। इसलिये पूज्या है.
यह प्रथा आज के सन्ताननिरोधक युग में कब तक टिक पायेगी? इसे कौन जाने। वयस्क होने पर विवाह करके सत्तान पैदा करना, एक स्वस्थ सामाजिक परम्परा है। अब धारा उल्टी वह रही है।
अभी विवाह नहीं की प्रथा चल पड़ी है। विलम्ब से ढलती जवानी में विवाह हो रहे हैं। विवाह के बाद, ‘अभी सन्तान नहीं की वृत्ति चल पड़ी है। ढलती अवस्था में किसी प्रकार एक सन्तान, जिसका पालन करना दम्पत्ति के लिये भार है, शिशु पालन गृह में डाल दिया जाता है।
संस्कारों से वञ्चित सन्तान, वात्सल्य से वञ्चित माता-पिता हैं। यह आज की औद्योगिक सभ्यता की देन है। काम सुख के लिये, महा दुःख का ताना-बाना बुना जा रहा है। लोग रोते हुए छद्म हँसी हँस रहे हैं। यह आधुनिक समाज को अद्भुत विडम्बना है।