मुनेश त्यागी
आज हमारा देश और समाज का बड़ा हिस्सा साहित्य और लेखन के गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। आज हम देख रहे हैं कि अधिकांश अखबार, पत्रकार, लेखक, कवि और साहित्यकार लिखने और छपने से पहले ही बिके हुए हैं। वे जैसे खरीदे हुए गुलाम और आइटम बन गए हैं और वे जैसे उनके मालिक चाह रहे हैं उसी तरह का लेखन कर रहे हैं। उनकी अधिकांश रचनाओं और लेखन से सच्चाई और हकीकत नदारत हो गई है और वे जैसे झूठ, मक्कारी, छल कपट, शोषण, जातिवाद और साम्प्रदायिक हिंसा व नफरत और अन्याय के वाहक बन गए हैं। उनमें से अधिकांश राजनीति के आगे चलने वाली मशाल नहीं, बल्कि पैसे के पुजारी हो गए हैं।
वर्तमान समय में हमारे समाज में सरकारी झूठ, मक्कारी, छल कपट, धर्मांता, अंधविश्वास और अवैज्ञानिकता को बनाये रखने वालों और इन्हें और ज्यादा बढ़ाने वालों का साम्राज्य पैदा हो गया है। सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए तरह-तरह के बहाने बना रही है, जनता के सामने तरह-तरह के जनविरोधी मुद्दों को उठा रही है और अपने जनविरोधी साम्राज्य को बनाए रखने के लिए जनता में हिंदू मुसलमान की नफरत की सांप्रदायिकता फैला कर सांप्रदायिक जहर फैला रही है। ऐसे में जनता का बड़ा हिस्सा भी कृतव्यविमूढ मूड हो गई है कि वह किस पर विश्वास करें? वह क्या करें? क्योंकि उसे समुचित रूप से वह सामग्री और वे तथ्य नहीं मिल पा रहे हैं कि जिससे वह सरकार और साम्प्रदायिक ताकतों के झूठ की मुहिम को पकड़ सके, इसका प्रतिवाद कर सकें और समय रहते उसका जवाब दे सकें।
इन परिस्थितियों में जरूरी हो गया है कि हमारे साहित्यकार लेखक, कवि, पत्रकार और तमाम किस्म के कलमकार एकजुट हों, वे सब मिलकर और एकजुट होकर जनता पर हो रहे हमलों का मुकाबला करें और समाज में अपनी कलम के द्वारा इनका प्रतिवाद करें, पूरे तथ्यों के साथ जनता को तर्क और विवेक के साथ हथियारबंद करें और वे इस अज्ञान, अन्याय, शोषण जुल्म और साम्प्रदायिक नफ़रत के साम्राज्य का प्रतिरोध करके, मशाल वाहक बनें। आज ऐसे साहित्यकारों की जरूरत है जो सरकार की जनविरोधी नीतियों और धर्मांता और अंधविश्वासों की पोल खोलें और ज्ञान विज्ञान, तर्क, विवेक और विवेचना की ज्योति जलाएं और अंधविश्वासों और धर्मांधताओं के अटूट हमलों से अंधी कर दी गई जनता को नई रोशनी दिखाएं।
आज के समय में ऐसे साहित्य, लेखों, कविताओं और गोष्ठियों की जरूरत है जो जनता को क्रांतिकारी विचारधारा, क्रांतिकारी साहित्य और दुनिया और हमारे देश के क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों की जीवनियों और विचारधारा से परिचित करायें, उसे संगठित होने की प्रेरणा दें और उसे जन कल्याणकारी समाजवादी व्यवस्था कायम करने की ओर ले जाएं।
आज के पूंजीपत्तियों, धन्नासेठों और हिंदुत्ववादी ताकतों के गठजोड़ की सरकार आज जनता की सद्भावना, एकता, भाईचारे और साझी संस्कृति के मूल्यों पर हमला कर रही है, झूठा इतिहास गढने की कोशिश कर रही है और जनता को सही इतिहास से दूर ले जा रही है। ऐसे में जरूरत है कि हमारे साहित्यकार सद्भावना, भाईचारे और साझी संस्कृति के मूल्यों को आगे ले जाने की मुहिम को और तेज गति से आगे बढ़ायें।
अच्छा साहित्य वही होता है, जो जनता की समस्याओं को और उसके दुख दर्दों को, लेखन, कविता और साहित्य के केंद्र में लाता है। आज साहित्य की इस विधा पर जोरदार चोट की जा रही है और अधिकांश साहित्यकारों को जनता से विमुख करने वाले साहित्य की रचना की जा रही है जो कतई भी हमारे देश और समाज के हित में नहीं है।
वर्तमान दौर हम देख रहे हैं की पूरा पूंजीपति वर्ग और सामंती वर्ग और देश दुनिया के तमाम साम्राज्यवादी जहनियत और पैसे वाले लोग सामाजिक वैमनस्यता को बढ़ावा दे रहे हैं। इसी मुहिम के तहत भारत की आजादी के आंदोलन के मूल्यों को धूलधूसरित किया जा रहा है, जातिवादी मानसिकता और सांप्रदायिकता को बढ़ाया जा रहा है, धार्मिक उन्माद को बढ़ाया जा रहा है और हवा दी जा रही है और सबसे बड़ी बात यह है कि आज अधिकांश अखबारों, पत्रिकाओं और गोदी मीडिया के बड़े हिस्से द्वारा झूठ, छल कपट, मक्कारी, भ्रष्टाचार, धर्मांधताओं, अंधविश्वासों और अवैज्ञानिकता को पूरी तरह से बढ़ावा दिया जा रहा है और जनता को इन्हीं रंगों में रंगने की पूरी कोशिश की जा रही है। अखबारों को पढ़कर लगता है कि जैसे हमारे देश में अंधविश्वासों और धर्मांधता की बाढ़ आ गई है।
अब यह बहुत जरूरी हो गया है कि भारत की जनवादी और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था पर हो रहे हमलों के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श किया जाए। जनता को अपने लेखों, कविताओं, कहानियों, नाटकों, नुक्कड़ नाटकों और शेरों-शायरी के द्वारा इसके बारे में बताया जाए, उनकी एकजुटता और भलाई के लिए साहित्य की रचना की जाए, सरकारी और साम्प्रदायिक और जातिवादी गठजोड़ के झूठ को बेनकाब किया जाए और जनता से एकजुट होने का आह्वान किया जाए।
यह आज के समय की सबसे बड़ी पुकार है कि साहित्यकारों और तमाम कलमकारों को जनमुद्दों को उठाना पड़ेगा। आज के साहित्यकारों की भूमिका और ज्यादा बढ़ गई है। आज साहित्यकारों के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है कि वे समाज की बेहतरी का संदेश दें और ऐसे ही साहित्य की रचना करें।वर्तमान समय में सरकार द्वारा फैलाए जा रहे गलत तथ्यों और प्रचार का कारगर जवाब दिया जाए। यह आज के साहित्यकारों का प्रमुख काम हो गया है।
वर्तमान दौर में हम देख रहे हैं की देश और दुनिया के सरमायेदारों का प्रेस, अखबारों और मीडिया संस्थानों पर कब्जा हो गया है और उन्होंने देश की जनता के संघर्षों को आगे बढ़ाने वाले और दिशा देने वाले जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी विचारधारा के लेखक और कवियों को अपने अखबारों और मीडिया संस्थानों में स्पेस देना बंद कर दिया है। ऐसे में जरूरी हो गया है कि हमारे लेखक, कवि और तमाम साहित्यकार सामुहिक प्रकाशित करें। इसी के साथ साथ फेसबुक और व्हाट्सएप का व्यापक रूप से इस्तेमाल करें और अपनी छोटी-बड़ी रचनाओं के द्वारा देश की जनता का मार्गदर्शन करें और उसे सही मार्ग पर अग्रसर करें। इस काम के लिए सामुहिक रचनाएं और फेसबुक और व्हाट्सएप हमारे समाज के लिए बहुत कारगर साबित होंगे और हमारी जनता को जागरूक करने वाली मुहिम को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं।
हमारे देश के अधिकांश साहित्यकार, जनविरोधी सत्ता का अपने साहित्य द्वारा हमेशा से ही विरोध करते रहे हैं, वे हमेशा ही विपक्ष की भूमिका निभाते रहे हैं। आज के साहित्यकारों का यह बहुत जरूरी काम हो गया है कि उन्हें जनविरोधी सत्ता के खिलाफ, अपनी कलम चलानी चाहिए और तमाम जनवादी, प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष साहित्यकारों को मिलकर सरकार के और जन विरोधी ताकतों के झूठ कपट को सामने लाने की मुहिम को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए।
आज के जनविरोधी हालत और जनविरोधी सत्ता को देखते हुए, यह सबसे बड़ी जरूरत हो गई है कि ऐसे साहित्य, लेखों और कविताओं की रचना की जाए कि जो जनता को सुलाये नही, बल्कि उसे जगाये, उसे वाणी दे, उसे जुबान दे, उसका हौसला अफजाई करें और उसे समाज में फैले शोषण, जुल्मो सितम और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिखाएं, इनका समुचित प्रतिरोध करना सिखाये, उन्हें इन जनविरोधी हालात से भागना नहीं, बल्कि इनका डटकर सामना करने और इनके खिलाफ अडे रह जोरदार संघर्ष करना सिखाए। आज यह बेहद जरूरी हो गया है कि साहित्यकार और कलमकार जनता के दिमागों को रोशन करें और आज के इस अंधेरे दौर में मशाल वाहक बनें। वर्तमान में यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि हमारे साहित्यकार और लेखक राजनीति के आगे चलने वाली मशाल बनें और वे पैसे के गुलाम और पुजारी नहीं बल्कि जनता के लेखक और साहित्यकार बनें।