मेरठ में तीन किताबों का विमोचन
मुनेश त्यागी
आज पंडित प्यारे लाल शर्मा मेमोरियल मेरठ में मास्टर सुंदरलाल स्वतंत्रता सेनानी के जन्मदिन के अवसर पर तीन किताबों का विमोचन किया गया, जिसमें एक किताब हमारी भी थी जिसका भी विमोचन हुआ। उसका नाम है “क्रांतिकारी गीत और कविताएं”।
इस अवसर पर हुई सभा में मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और प्रोफेसर चमन लाल भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज साहित्य को जनता का साहित्य बनाने की जरुरत है और ऐसे साहित्य को ही जनता के बीच ले जाने की जरुरत है। आज जगाने वाले साहित्य को लिखने की जरूरत है, सुलाने वाले नहीं।
हिमांशु कुमार ने कहा कि आज साहित्य को जन आंदोलन से जोड़ने की जरूरत है, जन संघर्षों में शामिल होने की जरूरत है साहित्य की समा को जलाए रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कविता और साहित्य को जियो।
प्रोफेसर चमनलाल ने कहा कि आज भगत सिंह के नारे समाजवाद की क्या जरूरत है? इसे जनता को बताने की जरूरत है, इसे जनता के बीच ले जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि समाजवाद की उपलब्धियों को और समाजवाद की जरूरत को लेखन और साहित्य के द्वारा समाज और जनता के बीच ले जाओ। समाजवाद एक मिशन है, इसे जारी रखना है। इस पर लिखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचारी साहित्यकार और कवि देश की जनता की सेवा नहीं कर सकते। वे जनता की आवाज नहीं बन सकते। सरकार के पैर छूने छोड़ो और जनता के कवि बनो। जनता की समस्याओं को प्रमुखता से उठाओ और उसे आवाज दो। जनता की आवाज को नारे बनाओ और जनता की भाषा में कविता लिखो, लेख लिखो, कहानियां लिखो। ऐसा करके ही साहित्य को अमर बनाया जा सकता है।
इस अवसर पर जनवादी लेखक संघ के जिला सचिव और जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष मुनेश त्यागी ने कहा कि आज साहित्य को जनता से जोड़ने की जरूरत है, जनता की समस्याओं से, गरीबी से, भुखमरी से, बेरोजगारी से और सरकार की जनविरोधी नीतियों और चालाकियों से जोड़ने की जरूरत है। आज सरकार और सत्ता की नाकामियों पर कलम चलाने की जरूरत है। जब तक हमारे साहित्यकार, कवि, लेखक और कहानीकार जनता की समस्याओं को जनता के दुख दर्द को अपने साहित्य में, अपनी कविता में, अपने लेखों में, अपनी कहानियों में जगह नहीं देंगे और उसे प्रमुखता के साथ चित्रित और प्रचारित नहीं करेंगे, तब तक वे जनता के साहित्यकार नहीं कहे जा सकते और ऐसा साहित्य जनता की पसंद का साहित्य नहीं बन सकता।
उन्होंने कहा कि आज साहित्यकारों का काम है कि देश और समाज के सामने आ रही समस्याओं को प्रमुखता के साथ अपने साहित्य में जगह दें और साहित्य को एक मशाल बनाएं, ज्ञान की मशाल, विज्ञान की मशाल, जागरूकता की मिशाल, संघर्ष की मशाल। इसके इसके बिना साहित्य का कोई औचित्य और मतलब नहीं है।
इस अवसर पर साहित्यकारों ने सभा में बोलते हुए कहा इस साहित्यकारों को गांव में और जनता के बीच जाना होगा, जनता के हक मार रहे अधिकारियों की खबर लेनी होगी, जनता को जागरूक करने होगा, सरकार की नई आर्थिक नीतियों से किसानों मजदूरों और गांव देहात की जनता को अवगत कराना होगा। आज संसाधनों पर पूंजीपतियों का कब्जा हो गया है और सरकार इस कब्जे में उनकी बगलगीर बन गई है, इस बात को जनता को बताना पड़ेगा।
आदिवासी क्षेत्रों में सरकार ने 650 आदिवासियों के गांव जला दिए हैं, बिना कानूनी इजाजत के उनके खेत और जमीन छीन रही है, विरोध करने पर महिलाओं से बलात्कार किया जा रहा है, बच्चों और बूढ़ों को मारा जा रहा है और औरतों के प्राइवेट पार्ट में पत्थर भरे जा रहे हैं। इन सब तथ्यों से और सरकार के जुल्मों से जनता को अवगत कराना पड़ेगा, यह आज के साहित्यकारों का सबसे प्रमुख काम है।
सरकार अमीरों की तिजोरियां भरने के काम कर रही है और उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए गुंडे लोगों को एसपीओ बनाया जा रहा है। पुलिस मामले की सही जांच नहीं कर रही है और उनकी शिकायत करने पर अदालतें पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही हैं। मजबूत सबूतों पर विश्वास नहीं कर रही हैं। आज इंसाफ मांगना जुर्म हो गया है। इंसाफ मांगने वालों पर अदालतें लाखों लाखों रुपए का जुर्माना लगा रही हैं। हमें यानी साहित्यकारों को आदिवासी क्षेत्रों की जारी लूट का विरोध करना पड़ेगा और जनता को इससे अवगत कराना पड़ेगा ताकि जनता एकजुट होकर इस सब के खिलाफ अपना संयुक्त अभियान छेड़ सके।
गजब की बात यह है कि आज आदिवासी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पैरामिलिट्री के सैनिक नियुक्त किए गए हैं। वे आदिवासियों की रक्षा करने के लिए वहां नही भेजे गए हैं, उनको सुरक्षा प्रदान करने नहीं गए हैं, बल्कि वे पूंजीपतियों की संपत्तियों और तिजोरियां भरने गए हैं और आदिवासियों के जंगलों पर लूट का शासन कायम करने के लिए वहां भेजे गए हैं। हमें यानी साहित्यकारों को इन सब गतिविधियों और अत्याचारों से भी, जनता को अवगत कराना होगा, जो सरकार जनता से छुपा रही है। यह सब साहित्यकारों का, कवियों का, कहानीकारों का सबसे बड़ा मिशन बन जाना चाहिए और इन सब के बारे में जनता को अवगत कराना होगा।
आज के साहित्यकारों को जनता को बताना होगा कि सरकार का चरित्र बर्बर हो गया है। आज लड़ाई कठोर हो गई है, कठिन हो गई है। मगर इन हमलों से नाउम्मीद होने की नहीं, बल्कि आज पढ़ने, लिखने और लड़ने की जरूरत है। शहीदेआजम भगत सिंह मरे नहीं है बल्कि वे आज की जनता का, आज के देश का मुस्तकबिल बन गए हैं। आज पूरे देश और दुनिया में नौजवान किसान मजदूर भगतसिंह के विचारों को और उनकी पुस्तकों को पढ़ रहे हैं ताकि वे सब उनके विचारों को जान सके और उनके सपनों का भारत बना सकें।
हमें जनता को बताना होगा यानी साहित्यकारों को जनता को बताना होगा कि पूंजीवादी शैतान दुनिया के जीवन के सभी क्षेत्रों में घुस गए हैं। इन सब से लड़ने की जरूरत है, इन पर लिखने की जरूरत है। इनसे भागने की नहीं, बल्कि कलम को और ज्यादा ताकतवर बनाकर इनसे मुकाबला करने की जरूरत है और अब यह मुकाबला कलम के द्वारा किया जाएगा। अब सारे साहित्यकारों को, सारे कवियों को, सारे लेखकों को, सारे कहानीकारों को और सारे संस्कृति कर्मियों को इसी के लिए कलम उठानी होगी और इस लड़ाई को बुनियादी समाज परिवर्तन की मंजिल तक ले जाना होगा।
सभा में कई कवियों ने सवाल उठाए कि साहित्यकारों को राजनीति नहीं करनी चाहिए और हमारे क्रांतिकारी शहीद सत्ता नहीं चाहते थे और हमारा सत्ता से कोई मतलब नहीं है, कोई लेना देना नहीं है। आज साहित्यकारों का सबसे पुनीत कर्तव्य और सबसे प्रमुख काम है कि वे इन जनविरोधी तथ्यों से, राजनीति विरोधी तत्वों से जनता को अवगत कराएं और जनता को बताएं कि सत्ता हमेशा से प्रमुख हथियार रही है। हमारे क्रांतिकारी शहीद भी सत्ता के लिए लड़ रहे थे। वे लुटेरे अंग्रेज पूंजीपतियों की जगह, भारत के काले लुटेरे पूंजीपतियों के शासन और सत्ता के लिए नहीं लड़ रहे थे, बल्कि वे किसानों मजदूरों और मेहनतकशों की सत्ता और सरकार के लिए लड़ रहे थे, उनका राज कायम करने के लिए लड़ रहे थे।
आज राजनीति हमारे जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रही है, इसलिए राजनीति पर लिखना, इसके बारे में जनता को बताना और जनकल्याण की, किसान मजदूर के हितों की राजनीति करना आज का सबसे जरूरी काम है। इस पर साहित्यकारों को सही तथ्यों की जानकारी हासिल करके लिखना चाहिए और साहित्यकार कभी भी राजनीति से अलग नहीं हो सकता। वही साहित्यकार जनता का और असली साहित्यकार हो सकता है जो किसानों मजदूरों के कल्याण की राजनीति की बात करता है।
अभी आजादी का मिशन पूरा नहीं हुआ है। आजादी के बिगुल को आज फिर से बजाने की जरूरत है। लड़ाई का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है। हमारे शहीद भी इस लड़ाई को लड़ रहे थे और हमारे किसान और मजदूर भी इस लड़ाई को लड़ रहे हैं और हमारे साहित्यकारों को भी इस लड़ाई को मजबूत करने के लिए अपनी कहानियां, लेख और कविताएं लिखनी चाहिए और साहित्य को राजनीति के आगे-आगे चलने वाली मशाल बनाना चाहिए।
इस अवसर पर अनेक साहित्यकार और कवि सुनीता त्यागी, जय गोपाल, महेंद्र सिंह, आरडी त्यागी, सुमनेश सुमन, ईश्वर चंद गंभीर, गोविंद रस्तोगी, प्रभात राय, आरके भटनागर, शाहिद चौधरी, सत्यपाल सत्यम, कृष्ण कुमार, चंद्रशेखर, यशपाल, संध्या रानी, आरिफा ऐलिस, ब्रज राज किशोर, सुल्तान सिंह, प्रेम कुमार, दिनेश जैन, ज्ञान दीक्षित, योगेश समदर्शी, विजय पंडित, चरण सिंह स्वामी, इरशाद बेताब आदि समेत सैकड़ों लोग उपस्थित थे। सभा का संचालन रामगोपाल भारतीय और अध्यक्षता वेद प्रकाश वटुक ने की।