अग्नि आलोक

प्रोटेम स्पीकर बनाने की संसदीय परम्परा का उल्लंघन यों ही नहीं किया है…..!

Share

राजेश कुमार

कोई ख़तरा नहीं है, कल शुरु हो रहे 18वीं लोकसभा के प्रथम सत्र में 26 जून को अप्रत्याशित कुछ नहीं होने जा रहा है। पहले ख़तरा था कि कहीं एन.डी.ए. में भारतीय जनता पार्टी की दो बड़ी सहयोगी पार्टियां, नीतीश कुमार की जनता दल-यू और एन.चन्द्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ही स्पीकर की मांग पर अड़ गयी तो? कहीं भाजपा के प्रत्याशी को समर्थन देने की जद-यू प्रवक्ता की घोषणा के बावजूद उनकी पार्टी ने स्पीकर के पद पर तेलुगू देशम का समर्थन कर दिया तो? आख़िर नीतीश कुमार के फैसलों का के.सी. त्यागी भी अब तक कितना पूर्वानुमान कर पाते रहे हैं या आगे कर सकते हैं?

और कहीं विपक्षी आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन ने अकेले या जद-यू के 12 सांसदों के साथ तेलुगू देशम के प्रत्याशी के पक्ष में वोट दे दिया और मतदान में एन.डी.ए. को 265 वोट ही मिल सके तो! या 263, क्योंकि पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के 2 सांसद तो शायद तेलुगू देशम के साथ ही वोट करें। और कहीं स्पीकर के लिए मतदान से पहले ही पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भाजपा और सहयोगी दलों के आठ-दस सदस्य विपक्षी आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन में चले गये और भाजपा – एन.डी.ए. की सदस्य संख्या ही घटकर 283 के आसपास रह गयी तो!

ये ख़तरे थे, तभी भाजपा ने सर्वाधिक आठवीं बार लोकसभा सदस्य बने कांग्रेसी के.सुरेश को छोड़ सातवीं बार लोकसभा सदस्य बने भाजपा के भतृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बनाया है। निचले सदन के सभी नव-निर्वाचित सदस्यों को सदस्यता की शपथ दिलाने और स्पीकर के निर्वाचन की केवल दो जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए, बुजुर्गतम सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाने की संसदीय परम्परा का उल्लंघन केन्द्र सरकार ने यों ही नहीं किया है। इरादा साफ है।

आज़ाद भारत के इतिहास में अगर पहली बार सर्वानुमति टूटी और संख्या बल में विपक्षी गठबंधन आगे निकलता दिखा और स्पीकर के निर्वाचन की नौबत आई तो केवल भाजपा के भतृहरि महताब ही, संभावना है कि मतदान टाल सकेंगे और ध्वनिमत से स्पीकर के महती पद पर नरेन्द्र मोदी, अमित शाह के उम्मीदवार की ताजपोशी संभव कर सकेंगे। और यह उम्मीदवार ओम बिरला के अलावा कोई और हो, इसकी संभावना कम ही है। भाजपा के शीर्ष या कहें एकमात्र दो प्रभावी नेताओं के ‘डिक्टेट’ के लिए किसी भी हद से गुजर जाने का करतब ओम बिरला ही कर सकते हैं। उन्होंने 17वीं लोकसभा में अपनी उपयोगिता साबित भी की है।

किसी और को आजमाने के खतरे तो होते ही हैं। केवल स्पीकर के पद पर नहीं, मंत्रियों तक के चयन में। अब आप एन.डी.ए. के किसी सहयोगी को इस्पात और भारी उद्योग जैसा कोई महकमा सौंप दें और वह कह दें कि पिछले कार्यकाल में आपकी सरकार ने गुजरात में सेमीकंडक्टर कारखाना लगाने के लिए अमरीका की ‘माइक्रान टेक्नालाजीज’ को कारखाने की कुल लागत की करीब 70 प्रतिशत राशि बतौर ‘सब्सिडी’ दे दी, यानि कारखाने में 5000 संभावित रोजगार के लिए प्रति कर्मचारी करीब 3.2 करोड़ रुपये की सब्सिडी। बाद में भले आप इस पर लीपापोती करते रहें और कहते रहें कि आपको ‘मिस्कोट’ किया गया है।

यह अकारण नहीं था कि ‘एन.डी.ए. सरकार’ बनने की तमाम घोषणाओं के बावजूद प्रधानमंत्री ने न केवल सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय अपनी ही पार्टी के खास उन्हीं लोगों को सौंपे, जिनके पास वे पिछले कार्यकाल के दौरान रहे थे, बल्कि उन्होंने लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद नेता के चयन/ निर्वाचन के लिए भाजपा संसदीय दल की बैठक तक नहीं बुलाई। बैठक बुलाते और पार्टी का कोई नव-निर्वाचित सदस्य स्वयं उनके नेतृत्व पर सवाल उठा देता या नेता चुनने के लिए गुप्त मतदान कराने की मांग कर देता तो? 

यह ख़तरा था भी। कम से कम इसका डर तो था। दुनिया भर का इतिहास इस बात की गवाही से भरा पड़ा है कि जिन नेताओं की छवि शेर दिल वाली बनाई जाती है, सत्ता जाने के खतरे उन्हें चूहा-दिल ही साबित करती है। आप हिटलर, मुसोलिनी सहित दुनिया के किसी तानाशाह के आखिरी दिनों को देख लीजिए। अपने 56 इंच भी इसका अपवाद नहीं हैं। इस डर के कारण भी थे।

चुनावों के बीच भाजपा के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ‘उत्तर वाजपेयी-आडवाणी काल’ में पार्टी के मजबूत होने और अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जरुरत नहीं होने’ की घोषणा कर चुके थे और चुनाव के बाद आर.एस.एस. मोदी-शाह के नेतृत्व पर सवाल उठा चुका था। सो नरेन्द्र मोदी ने 240 नव-निर्वा​चित सदस्यों वाले भाजपा संसदीय दल की बैठक ही नहीं बुलाई। 16वीं लोकसभा के चुनावों में अकेले अपने दम पर 282 सीटें जीतने के बाद 20 जून 2014 को नव-निर्वा​चित सदस्यों के भाजपा संसदीय दल की बैठक बाकायदा बुलाई गई थी। मोदी भाजपा संसदीय दल के नेता चुने गए थे। एन.डी.ए. के घटक दलों के नेताओं ने तब भी उनके प्रति समर्थन के पत्र जरुर दिये थे और उन्हीं पत्रों के साथ मोदी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया था।

इस बार भी समर्थक दलों के समर्थन पत्र तो थे, पर किसके समर्थन के पत्र? मोदी को दही गुड़ खिलाने और प्रधानमंत्री नियुक्त करने से पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनसे यह सवाल नहीं पूछा। संसद के केन्द्रीय कक्ष में मोदी अभी 7 जून को एन.डी.ए. संसदीय दल के नेता चुने गये थे, भाजपा संसदीय दल के नेता नहीं। फिर एन.डी.ए. के घटक दलों के नेताओं के समर्थन पत्र किसके लिए थे? क्या अपने ही संसदीय दल के नेता समर्थन में? जब एन.डी.ए. के सभी घटक दलों के नव-निर्वाचित लोकसभा सदस्यों ने बैठक में मोदी को अपना नेता चुन ही लिया था, फिर घटक दलों के नेतागण पत्र देकर किसका समर्थन कर रहे थे?

द्रौपदी मुर्मू की जगह कोई और राष्ट्रपति होता तो यह सवाल पूछता? संभावना है कि वह भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने से पहले मोदी को पी.एम. नियुक्त ही नहीं करता और भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद उन्हें पी.एम. नियुक्त भी करता तो संवैधानिक प्रावधानों के तहत उन्हें एक निश्चित अवधि में लोकसभा में अपना बहुमत साबित करने का निर्देश भी देता। द्रौपदी मुर्मू ने नामजद पी.एम. को निचले सदन में बहुमत साबित करने को भी नहीं कहा है, मानो पी.एम. बनने की हड़बड़ी में केवल नरेन्द्र मोदी नहीं थे, बल्कि यह हड़बड़ी साझा थी।

हड़बड़ी में तीसरी बार प्रधानमंत्री नियुक्त कर लिए जाने और 9 जून को ही तीसरी बार शपथ ग्रहण कर लेने के बाद नरेन्द्र मोदी की पहली जरुरत अब 240 को 272 कर अपने दम पर बहुमत निर्माण करने की है। इसके लिए केवल 32 सांसदों की दरकार है। एक दो सदस्य जिताकर 18वीं लोकसभा में भेज सकी, एन.डी.ए. की घटक पार्टियों को छोड़ भी दें तब भी जद-यू, तेदेपा, एकनाथ शिन्दे की शिवसेना और ​​चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के ही कुल 41 सदस्य यह जरुरत पूरी कर सकते हैं।

बस इनकी पार्टियों का विलय या कि खुद इन सांसदों का भाजपा में शामिल होना संभव हो जाए।  गृह मंत्री अमित शाह की सी.बी.आई., निर्मला सीतारमण की ई.डी., आईटी., हेमन्ता विस्वशर्मा के असमी होटेल्स मोटेल्स बने रहें। जिद और संभावना ओम बिरला के ही लोकसभा अध्यक्ष बने रहने की है और उन्हें बस वक्त-जरुरत राहुल नार्वेकर हो जाना है, जो उनके लिए मुश्किल काम नहीं होना चाहिए। 

अब महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर कोई अनजाने व्यक्ति तो हैं नहीं, उनके बारे में क्या कहना!

Exit mobile version