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*जनता ही मालिक है देश की*

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शशिकांत गुप्ते

लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता देश की मालिक है।
यह लोकतंत्र की परिभाषा में लिखा है। लोकतंत्र की परिभाषा पुस्तकों में कैद हो कर रह गई है।
व्यवहार में तो जिसकी लाठी उसकी भैंस यह लोकोक्ति चरितार्थ हो रही है। इस लोकोक्ति में लाठी, शक्ति का प्रतीक है,और भैंस, अधिकार और साधन का प्रतीक है।
लोकोक्ति का उक्त अर्थ पुस्तकी है। वास्तव में लाठी, धनबल और बाहुबल का प्रतीक है,और भैंस तो सिर्फ अपना दोहन करवाने के लिए अभिशप्त हैं।
कुछ भैंसे तो इस मुहावरों को चरितार्थ करती है,भैंस के आगे बीन बजाना
सियासतदानों के पास विभिन्न तरह की बीन हैं। एक पंद्रहलाख कीमत की जुमला नामक बीन भी है।
बहरहाल मुद्दा है, जनता देश की मालिक है।
मालिक पर नौकर को हावी नहीं होने देना चाहिए। मतलब लोक पर तंत्र को हावी होने से रोकना चाहिए।
तंत्र को हावी होने से रोकने का जनता के पास मतदान नामक अमूल्य मंत्र है।
जनता के पास उपलब्ध अमूल्य मंत्र का उपयोग जनता अपने विवेक को जागृत रखते हुए करेगी तो, वह कभी भी विभिन्न प्रकार और आकार की रेवड़ियों के प्रलोभन में नहीं आएगी।
जागरूक जनता कभी भी परावलंबी होना नहीं चाहती है।
जनता जागृत हो जाए तो वह चुनाव में भावनावश मतदान नहीं करेगी। कभी भी किसी व्यक्ति की पूजक नही बनेगी। कारण जो जैसा दिखता वैसी ही होना जरूरी नहीं हैं। अपने देश में हास्ययुक्त मनोरंजन के लिए बहुरूपिया संस्कृति भी प्रचलित है।
बहरहाल मुद्दा है,जनता को यह एहसास होना कि, वह देश की मालिक है।
यह एहसास जागृत होने के लिए जनता को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना और समझना पड़ेगा।
समझने के लिए जनता को शायरा हिना रिज़्वी रचित एक गज़ल के चंद अशआर यहां प्रस्तुत हैं,ये अशआर उपर्युक्त मुद्दे पर एकदम मौंजू हैं।
कौन कहता है के हर शख़्स फ़रिश्ता हो जाए
आदमी थोड़ा तो इंसान के जैसा हो जाए
आँधियों को ये गुमाँ है कि बुझा देंगी चराग़
और चराग़ों को ये ज़िद है कि उजाला हो जाए
टूट सकता है किसी पल भी समुंदर का ग़ुरूर
मुँह अगर मोड़ लें दरिया तो ये प्यासा हो जाए
जनता को भावनावश कदापि नहीं होना चाहिए।

जनता स्वविवेक से निर्णय लेगी तो सिर्फ इश्तिहारो में दिखाई देने वाली छद्म उपलब्धियों पर कभी भी यकीन नहीं करेगी।
जनता विशाल रूप में दरिया बनाकर समुंदर का गुरुर तोड़ सकती हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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