संघ से जुड़े लोग न सिर्फ जहर का बीज बोते हैं पर उस बीज से पनपी खेती को काटकर फल-फूल भी रहे हैं
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एल.एस.हरदेनिया
इस समय सोनिया गांधी का एक वक्तव्य और राहुल गांधी का एक इंटरव्यू सारे देश में बहस का मुद्दा बना हुआ है। सोनिया गांधी ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि देश के लोग उन्हें कामयाब नहीं होने देंगे जो जहर की खेती करते हैं। सोनिया ने लोगों से इस तरह के तत्वों से सावधान रहने की सलाह दी। सोनिया ने अपने भाषण में न तो किसी पार्टी व न ही किसी नेता का नाम लिया था। परंतु चोर की दाढ़ी में तिनका की कहावत को सही सिध्द करते हुए नरेन्द्र मोदी भड़क उठे और कह बैठे कि सबसे ज्यादा जहर कांग्रेस ने बोया है।
कांग्रेस ने जहर बोया या नहीं यह एक विवाद का विषय हो सकता है परंतु संघ परिवार से जुड़े लोग आज से नहीं वर्षों से इस देश में न सिर्फ जहर का बीज बोते हैं पर उस बीज से पनपी खेती को काटकर फल-फूल भी रहे हैं। संघ परिवार ने आजादी के आंदोलन के दौरान कांग्रेस के आजादी के आंदोलन का मखौल उड़ाया,बार-बार यह कहा कि आजादी के आंदोलन में शामिल करने के लिये मुसलमानों की मान मनोबल की क्या आवश्यकता थी। 1947 में जब पाकिस्तान बन गया था तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महात्मा गांधी समेत देश के अनेक नेताओं के विरूध्द जहरीला प्रचार प्रारंभ कर दिया था। इसी जहरीले प्रचार के परिणामस्वरूप गांधी जी की हत्या हुई थी। यह आरोप अन्य लोगों के अतिरिक्त स्वयं सरदार पटेल ने लगाया था। गांधी जी की हत्या के बाद गृह मंत्रालय ने जो विज्ञप्ति जारी की थी उसमें संघ द्वारा किए जाने वाले जहरीले प्रचार का उल्लेख था। सरदार पटेल उस समय गृहमंत्री थे। स्पष्ट है यह विज्ञप्ति पटेल के आदेश से ही जारी की गई थी। इस विज्ञप्ति में संघ द्वारा किए गए जहरीले प्रचार का बार-बार उल्लेख किया गया है। विज्ञप्ति में कहा गया था ‘संघ के स्वयं सेवक अनुचित कार्य भी करते रहे हैं। देश के विभिन्न भागों में उसके सदस्य व्यक्तिगत रूप से आगजनी, लूटमार, डाके, हत्याएं तथा लुकछिप कर शस्त्र, गोला और बारूद संग्रह करने जैसी हिंसक कार्यवाहियां कर रहे हैं। यह भी देखा गया है कि ये लोग पर्चे भी बांटते हैं, जिनसे जनता को आतंकवादी मार्गों का अवलंबन करने, बंदूकें एकत्र करने तथा सरकार के बारे में असंतोष फैला कर सेना और पुलिस में उपद्रव कराने की प्रेरणा दी जाती है।
सरदार पटेल ने गांधी जी की हत्या में आरएसएस की भूमिका के बारे में स्वयं गोलवलकर को एक पत्र के माध्यम से जो कुछ लिखा था वह भी पढ़ने लायक है। सरदार पटेल ने 19.9.1948के अपने पत्र में लिखा था, ”हिन्दुओं का संगठन करना, उनकी सहायता करना एक प्रश्न है पर उनकी मुसीबतों का बदला, निहत्थे व लाचार औरतों, बच्चों व आदमियों से लेना दूसरा प्रश्न है। ”इसके अतिरिक्त यह भी कहा था कि उन्होंने कांग्रेस का विरोध करके और इस कठोरता से कि न व्यक्तित्व का ख्याल, न सभ्यता व शिष्टता का ध्यान रखा, जनता में एक प्रकार की बेचैनी पैदा करनी थी इनकी सारी स्पीचिज सांप्रदायिक विष से भरी थी। हिन्दुओं में जोश पैदा करना व उनकी रक्षा के प्रबन्ध करने के लिए यह आवश्यक न था कि वह जहर फैले। इस जहर का फल अन्त में यही हुआ कि गांधी जी की अमूल्य जान की कुर्बानी देश को सहनी पड़ी और सरकार व जनता की सहानुभूति जरा भी आरएसएस के साथ नहीं रही, बल्कि उनके खिलाफ हो गयी। उनकी मृत्यु पर आरएसएस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया था और मिठाई बांटी उस से यह विरोध और बढ़ गया और सरकार को इस हालत में आरएसएस के खिलाफ कार्यवाही करना जरूरी ही था।” गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कुछ समय बाद प्रतिबंध उठा दिया गया। प्रतिबंध उठने के बाद संघ ने अपना जहरीला प्रचार कार्य जारी रखा।
संघ ने अपने जहरीले प्रचार का निशाना नेहरू को बनाया। नेहरू जी के विरूध्द अर्नगल बातें कही जाती रही। जब नेहरू और डा. अम्बेडकर ने मिलकर हिन्दू समाज में सुधार के लिए हिन्दू कोड बिल बनाया तो नेहरू जी को आधा मुसलमान-आधा अंग्रेज बताया जो हिन्दू समाज को विघटित करना चाहता है। अम्बेडकर की निन्दा उनकी जाति का उल्लेख करते हुए की गई। इसके अतिरिक्त संघ ने मुसलमानों के विरूध्द देश में दुर्भावना फैलाई। उनकी इस देश के प्रति वफादारी पर शंका प्रगट की। एक समय उनकी ओर से यह आरोप भी लगाया गया कि भारत-पाक युध्द के समय राष्ट्रपति भवन से गुप्त संदेश पाकिस्तान भेजे जाते हैं। भारत-पाक युध्द के दौरान डा.जाकिर हुसैन राष्ट्रपति थे। मुसलमानों के अतिरिक्त ईसाईयों के विरूध्द जहरीला प्रचार किया गया। ईसाईयों पर बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को ईसाई बनाने का आरोप लगाया गया। जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो उनके विरूध्द भी जहरीला प्रचार जारी रहा। इंदिरा जी के प्रधानमंत्री बनने पर यह बात फैला दी गई कि इंदिरा जी विधवा हैं और विधवा की उपस्थिति में कोई भी शुभकार्य नहीं होता, अत:अब देश के बुरे दिन आ गए हैं, क्योंकि एक विधवा की उपस्थिति में राष्ट्र के सभी शुभ कार्य होंगे। मुसलमानों, ईसाईयों, धर्म निरपेक्षियों, कम्यूनिस्टों के विरूध्द तरह-तरह की बातें कहीं गई। विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंहल ने भोपाल की एक सभा में कहा कि देश पचास वर्ष से धर्म निरपेक्षता का जहर पी रहा है। बंगलादेशियों के नाम पर देश में रहने वाले सभी मुसलमानों को शंका के घेरे में लाया जाता है। संघ द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र मुसलमानों और ईसाईयों के विरूध्द बेबुनियाद आरोपों से भरे रहते हैं। इन अखबारों में पूरी तरह झूठी बातें छापी जाती हैं। जैसे इन्हीं में से एक अखबार में लिखा गया कि असम के नेल्ली नामक स्थान पर हुए दंगों में तीन हजार हिन्दू मारे गये थे। जबकि वास्तविकता यह है कि नेल्ली में जो कुछ हुआ वह दंगा नहीं था परंतु एक ऐसा एकतरफा हत्याकांड था जिसमें 3000 मुसलमान मारे गये और एक भी हिन्दू की हत्या नहीं हुई थी।
गुजरात में भी वर्षों से मुसलमानों के विरूध्द जहरीला प्रचार हो रहा था। यही कारण है कि 2002 में हुए दंगों में बड़े पैमाने में हिन्दुओं न सिर्फ भाग लिया वरन् उसे आज तक उचित मानते हैं। नरेन्द्र मोदी जानते हैं कि गुजरात के बहुसंख्यक हिन्दू मुसलमानों को संदेह की निगाह से देखते हैं और उन्हें स्वयं के लिये खतरा मानते हैं। नरेन्द्र मोदी गुजरात के हिन्दुओं की इसी मन: स्थिति का लाभ 2002 से लेकर आज तक ले रहे हैं। 2002 के दंगों के बाद भी नरेन्द्र मोदी मुसलमानों को बदनाम करने के लिए अनेक बेबुनियादी बातें कहते हैं। जैसे वे मुसलमानों के बारे में कहते थे ”हम पांच और हमारे पच्चीस” अर्थात मुसलमानों की चार बीवियां होती हैं और उनके 25 बच्चे होते हैं। अपने प्रचार में वे पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति का नाम मियां मुशर्रफ लेते थे। राहुल गांधी को राजकुमार की जगह शहजादा कहते हैं। इस तरह मोदी समेत पूरा संघ परिवार यथार्थ में जहर की खेती करता है। जहां तक राहुल गांधी की प्रेस वार्ता का संबंधा है उन्होंने उसके दौरान 1984 में हुए सिक्ख विरोधी दंगों की चर्चा की थी और उनकी तुलना गुजरात के दंगों से की थी। इसके बाद राहुल के ऊपर आरोपों की झड़ी लग गई और भाजपा की ओर से यह बताने की कोशिश हुई कि सिक्ख विरोधी दंगे भड़काए गए थे और उनमें राजीव गांधी का हाथ था। निश्चित रूप से सिक्ख विरोधी दंगे उतने ही वीभत्स थे जितने 2002 का हत्याकांड। परंतु दोनों में अंतर है।
यह अंतर राहुल गांधी नहीं बता पाए। राहुल गांधी का कहना था कि सिक्खों के साथ जो कुछ हुआ उसके लिए कांग्रेस और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी बार-बार न सिर्फ अफसोस जाहिर कर चुकी हैं वरन् क्षमा भी मांग चुके हैं। जबकि नरेन्द्र मोदी ने क्षमा नहीं मांगी वरन् मारे गऐ मुसलमानों की तुलना कुत्तों के पिल्लों से कर दी। पीड़ित सिक्खों के परिवारों को कांग्रेस ने भरपूर क्षतिपूर्ति दी जबकि मोदी ने क्षतिपूर्ति के लिये केन्द्र द्वारा भेजी गई रकम भी वापिस कर दी। दंगों के बाद एक भी सिक्ख विरोधी बात कांग्रेस या उसके नेताओं ने नहीं कही। जबकि मोदी उन्हें बदनाम करते रहे। मुसलमानों को मोदी कितना नापसंद करते हैं यह बात उनने उस समय सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की, जब वे एक समारोह में एक मुसलमान द्वारा दी गई टोपी को पहनने से इंकार कर दिया।
कांग्रेस ने सिक्खों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए हर संभव प्रयास किए हैं। यहां तक कि कांग्रेस ने सारे देश को एक सिक्ख (मनमोहन सिंह) के हवाले कर दिया। सिक्खों को सेना प्रमुख के अलावा अनेक प्रमुख पद सौंपे। अनेक सिक्ख कांग्रेस में हैं। यहां तक कि पंजाब के मुख्यमंत्री भी एक सिक्ख रह चुके हैं। इसके ठीक विपरीत नरेन्द्र मोदी ने एक भी मुसलमान को विधानसभा के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया। लगभग वैसी ही स्थिति मध्यप्रदेश समेत भाजपा शासित अन्य राज्यों में हैं। यदि राहुल ये सब तर्क रखते तो वे यह सिध्द कर सकते थे कि 1984 के सिख विरोधी और 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों की तुलना नहीं की जा सकती।