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याचिका लगाने वालों ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को बताया मौत का किला

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आबिद खान

कोरोना की दूसरी लहर ने देश में मूलभूत सुविधाओं की पोल खोल कर रख दी है। हॉस्पिटल, बेड और ऑक्सीजन की कमी ने हाहाकार मचा रखा है। लॉकडाउन के बीच लोग घरों में कैद हैं, लेकिन देश की इस भयानक स्थिति का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान भी धड़ल्ले से इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य जारी है। सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल कर दिया है ताकि समय पर निर्माण कार्य पूरा हो सके। इसी बीच पूरे प्रोजेक्ट पर ट्वीटर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बहस जारी है।

इस प्रोजेक्ट को लेकर कोर्ट में क्या हो रहा है? क्यों विपक्षी दल इस मामले पर सरकार को घेर रहे हैं? आखिर ये प्रोजेक्ट है क्या जिस पर इतना विवाद है? आइए जानते हैं…

हाईकोर्ट में आज सुनवाई किसलिए हुई और क्या हुआ?
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के लिए सोहेल हाशमी और अन्या मल्होत्रा द्वारा अधिवक्ता सिद्दार्थ लूथरा के जरिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर 12 मई को सुनवाई हुई। इसी सुनवाई से एक दिन पहले केंद्र सरकार ने भी हलफनामा दायर कर इस याचिका को बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि ये प्रोजेक्ट में बाधा डालने का तरीका है। हाईकोर्ट पूरे मामले पर 17 मई फिर सुनवाई हुई। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

कोर्ट में किस पक्ष ने क्या कहा?
याचिकाकर्ताओं को वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अभ सेंट्रल विस्टा नहीं बल्कि सेंट्रल फोर्टरेस्ट ऑफ डेथ यानी मौत का किला कहना चाहिए। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि साइट पर एक कमरे में सात मजदूरों को रखा जा रहा है। वहीं, सरकार के वकील तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं का पब्लिक इंट्रेस्ट केवल एक प्रोजेक्ट को लेकर वहीं, आसपास चल रहे दूसरे प्रोजेक्ट में वो ऐसा क्यों नहीं करते।

बिल्डर शापोरजी पलोनजी की ओर के वकील ने कहा की इस प्रोजेक्ट के लिए आधे राजपथ को खोदा गया है। अगर बरसात आने के पहले इस काम को तेजी से करना है नहीं तो बारिश में ये गड्ढे भर जाएंगे। साथ ही, अगले साल की गणतंत्र दिवस की परेड पर भी इसका असर पड़ेगा।

याचिकाकर्ताओं की क्या मांग है?
याचिका में मांग की गई है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम तुरंत रोका जाना चाहिए, क्योंकि दिल्ली में लॉकडाउन लगा हुआ है। इन मजदूरों को दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से रोजाना काम के लिए यहां लाया और ले जाया जा रहा है। इससे इलाके में कोरोना फैलने का खतरा है।

केंद्र ने अपने हलफनामे में क्या कहा?
केंद्र ने हलफनामे में कहा है कि मजदूरों को यहां से लाने ले जाने का आरोप बिल्कुल बेबुनियाद है। 19 अप्रैल से पहले इस प्रोजेक्ट पर 400 मजदूर काम कर रहे थे, लेकिन फिलहाल 250 मजदूर यहां काम कर रहे हैं, जो यहीं रह रहे हैं। सभी मजदूरों का कोरोना टेस्ट भी कराया गया है और उन्हें तमाम मेडिकल सुविधाएं भी दी गई हैं। काम के दौरान मजदूर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी कर रहे हैं। साथ ही सभी मजदूरों का हेल्थ इंश्योरेंस भी किया गया है।

पहले भी क्या इस प्रोजेक्ट से जुड़ी कोई याचिका कोर्ट में लगी है?
इस मामले पर पर्यावरण, भूमि उपयोग जैसे कई मुद्दों पर अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की गई थीं। जुलाई 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक बैच में मिलाकर सुनवाई शुरू की। 3 जजों की बेंच ने 2:1 से फैसला सुनाया और जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति दे दी।

आज दिल्ली हाईकोर्ट क्या फैसला सुना सकती है?
संविधान एक्सपर्ट फैजान मुस्तफा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मामले पर फैसला दे चुकी है इसलिए इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि दिल्ली हाईकोर्ट सेंट्रल विस्टा के कंस्ट्रक्शन पर स्टे लगाए। हालांकि सरकार अपनी तरफ से नैतिकता के आधार पर खुद ही कंस्ट्रक्शन को फिलहाल के लिए टाल सकती है।

जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दे दिया है तो हाईकोर्ट में किस मामले पर सुनवाई हो रही है?
कानूनी मामलों के जानकार विराग गुप्ता के मुताबिक, जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट में जिन याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी वो पर्यावरण और भूमि उपयोग से जुड़ी हुई थीं। इस पर 3 जजों की बेंच ने 2:1 से फैसला देते हुए प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखा दी थी। उस फैसले में जस्टिस संजीव खन्ना ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि प्रोजेक्ट क्लियरेंस के दौरान जनसुनवाई की जरूरी कानूनी प्रक्रिया का सही पालन नहीं किया गया है। हालांकि 3 में से 2 जजों का एक जैसा फैसला था इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर निर्माण की अनुमति दे दी थी।

फिलहाल जो याचिका दायर की गई है वो DDMA (दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी) के 19 अप्रैल के एक ऑर्डर को आधार बनाकर की गई है। इस ऑर्डर में लॉकडाउन के दौरान सभी तरह की निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाई गई है। याचिकाकर्ता ने इसी को आधार बनाकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग की है।

विपक्ष के निशाने पर क्यों है प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद से ही तमाम विपक्षी दल इसके विरोध में हैं। राहुल गांधी समेत तमाम बड़े नेता आए दिन सरकार को घेरते रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान भी निर्माण कार्य चलते रहने से आलोचनाएं और तीखी हो गई हैं। सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल कर दिया है ताकि लॉकडाउन के दौरान भी काम नहीं रुके, इसके बाद विरोध और बढ़ गया है। नेताओं का कहना है कि देश की वर्तमान हालात को देखते हुए ये गैर जरूरी खर्च है। इसके बजाय स्वास्थ्य सुविधाओं पर ये खर्च किया जा सकता है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेंट्रल विस्टा को आपराधिक बर्बादी करार दिया है। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि लोगों की जिंदगी को केंद्र में रखिए, न कि नया घर पाने के लिए अपनी जिद।

विपक्ष इस मुद्दे पर लगातार सरकार को घेरता आया है। छत्तीसगढ़ में भी नई विधानसभा, राज्यपाल भवन और सीएम निवास का निर्माण कार्य जारी था। हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उस पर भी रोक लगा दी है। भूपेश सरकार के इस कदम को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सरकार पर दबाव बढ़ाने के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है।

क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट?
इस प्रोजेक्ट के तहत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक कई इमारतों का रिडेवलपमेंट और कंस्ट्रक्शन शामिल है। इसमें एक नया संसद भवन जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के लिए एक-एक बिल्डिंग होगी, मंत्रालय के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय, प्रधानमंत्री आवास, उप-राष्ट्रपति आवास का निर्माण किया जाना है। अभी जो संसद भवन है उसके सामने एक तिकोना नया संसद भवन बनाया जाएगा। करीब 15 एकड़ में प्रधानमंत्री के नए आवास का निर्माण भी होगा।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी। 10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री ने प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी। सरकार ने पूरे प्रोजेक्ट के लिए 20 हजार करोड़ का बजट रखा है। सेंट्रल विस्टा का काम नवंबर 2021 तक, नए संसद भवन का काम मार्च 2022 तक और केंद्रीय सचिवालय का काम मार्च 2024 तक पूरा करने की डेडलाइन रखी गई है।

सेंट्रल विस्टा किसे कहते हैं
सेंट्रल विस्टा राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को कहते हैं। इसके तहत राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति आवास आता है। इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स, उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं।

सरकार क्यों बना रही है नया भवन?
केंद्र सरकार का कहना है कि इस इलाके में जो पुरानी बिल्डिंग मौजूद हैं उनकी डिजाइन वर्षों पुरानी है। बदलती जरूरतों के साथ बिल्डिंग में अब पर्याप्त स्थान और सुविधाएं नहीं हैं।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध के बीच केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी कई बार सफाई दे चुके हैं। समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक बयान में पुरी ने कहा था कि “मौजूदा बिल्डिंग 93 साल पुरानी है जिसका निर्माण भारत की निर्वाचित सरकार ने नहीं किया था, इसका निर्माण उपनिवेश काल में हुआ था। जो नई बिल्डिंग बनेगी वो भारत की आकांक्षाओं को दर्शाएगी”।

सरकार का एक तर्क ये भी है कि 2026 में लोकसभा सीटों के परिसीमन के बाद सांसदों की संख्या बढ़ सकती है जिसके लिए संसद में ज्यादा जगह की जरूरत होगी। फिलहाल जो संसद भवन है उसमें केवल अभी के सांसदों के बैठने की ही जगह है। इसलिए भविष्य की जरूरतों को देखते हुए नए संसद भवन का निर्माण आवश्यक है।

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