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तंत्र~पथ : समस्या तुम्हारे जीवन में नहीं है, तुम समस्या हो 

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          डॉ. विकास मानव 

क्षीतौ षटपञ्चाषद् द्विसमधिकपंचाशदुदके हुताशे द्वादशष्टिश्चतुर्दिकपञ्चाशदनिले।

दिवि द्विष्टत्रिंशमनसि च चतुष्षष्टिरिति ये मयुखास्तेषामप्युपरि तव पादम्बुजयुगम्॥ 

तुम्हारे जीवन में समस्या नहीं है, बल्कि तुम ही समस्या हो। जो तुम्हारे पास है उसका चुनाव तुम्हीं ने तो किया है।अगर दुख है तो तुम उसके साथ राजी हो। तभी तो वो इतने सालों से तुम्हारे साथ है।

   ये सत्य है, दुख है, डर है, ग्लानि है और भी नकारात्मकता है, जिसके हम साथ लंबे समय से रह रहे हैं | क्यों ? 

पता नहीं।

किसी ने मजबूर किया है ? 

नहीं। तो क्या कारण है ? 

छोड़ क्यों नहीं देते हैं इन्हें। एक सत्य जान लो राम और रोग एक साथ नहीं रह सकते हैं। लेकिन तुमने इसे संभव बनाया हुआ है।

महात्मा, मठ और महंत जो तुम्हें पुण्य धर्मा दिखाई देते हैं वो दुनियां भी कम पाप पूर्ण नहीं है। वो बाहर से जो तुम देख रहे हो वो तुम्हारी समझ का धोखा है। यदि तुम्हारे पास ईश्वर है तो समृद्धि होना चाहिए और यदि शास्त्रोक्त अनुशासन है तो शांति और समृद्धि दोनों होना चाहिए। लेकिन जीवन सब प्रकार की नकारात्मकता से भरा हुआ है और महात्मा भी है।

मै एक मठ पर कुछ समय रुका। वहां एक महात्मा और उनकी एक शिष्या रहा करती थी। उस मठ के बारे में धारणा थी जब माता दैत्यों का वध करके वापस आ रही थीं तब उस स्थान पर विश्राम किया था। तो उनकी ऊर्जा वहां है। ऐसे बहुत सारी धारणा लोग स्थान को लेकर बना देते हैं। जिससे आय स्थान की होती रहती है। 

    शुरू में उस स्थान पर बड़ी रौनक रहती थी। दोपहर तक लगभग दस हजार की चढ़ौती हो जाती थी। मठ महंत महात्मा मंदिरों को कुछ इसी तरह से आकलन करते हैं।  ये घटना लगभग दस साल से ज्यादा पुरानी होगी। उसके बाद अचानक उस स्थान पर लोगों ने आना बंद कर दिया। वो स्थान आर्थिक तंगी में पहुँच गया। किसी दिन तो दो रुपया भी नहीं चढ़ता था | वहां लोग आते ही नहीं थे।

      ये बात उन महात्मा जी ने मुझसे चर्चा की।उन्होंने बताया बीच में एक नागा साधु आया तो जो कुछ तंत्र मंत्र कर गया। हमने उन महात्मा से कहा महाराज अगर यहाँ भगवती की ऊर्जा मौजूद है तो तंत्र मंत्र चलेगा ही नहीं। लेकिन वो पचहत्तर वर्षीय महात्मा मेरी बात को समझने को तैयार नहीं थे।

    महात्मा जी की शिष्या जो महात्मा ही थी, बचपन से उसकी माँ नहीं थी, सौतेली माँ को बर्दाश्त किया। बाद में स्कूल में शिक्षिका बनी। देखने में सुंदर थी. बलात्कार हुआ। संन्यास लेने पर मजबूर हुई।  इन्हीं महात्मा ने दीक्षा दी। उम्र कम थी. दीक्षा के बाद तो शरीर और नोंचा खसोटा गया। वो बड़े-बड़े दिग्गज महात्माओं के भी नाम लेती थी।

    प्यार क्या होता है वो महिला बचपन से नहीं जानती थी। बीच में उस स्थान पर एक युवा नागा साधक आया। वहाँ रहा वो महिला उसके प्रेम में पड़ गई।क्षेत्र में बहुत बदनामी हुई उस स्थान की। जब ज्यादा बवाल हुआ तो नागा साधु तो चला गया। लेकिन लोगों ने उस स्थान पर जाना बंद कर दिया। 

    अब महात्मा जी ने शिष्या तो नहीं छोड़ी। अगर छोड़ देते तो शायद स्थान बच जाता। लेकिन वो जो बदनामी हुई उसके कारण लोगों ने उस स्थान पर जाना ही बंद कर दिया। आय के स्रोत बंद हो गए। समस्या ये थी की महात्मा जी भी उस शिष्या के बिना नहीं रह पाते थे। 

    महात्मा अब कहते थे तो यही वो नागा ही कुछ कर गया है।जगह को बांध दिया है।अपनी गलती वो कभी नहीं देख पाए।काफी समय के बाद मेरा वहाँ जाना हुआ। लगभग तीन से चार माह का वक्त मैंने उस स्थान पर निकाला है।

    उन महात्मा ने मुझसे परिचय मांगा. मैं किसी अन्य महात्मा की चर्चा की। उन्होंने उन महात्मा से फोन पर मेरे बारे में बातचीत की। उन्होंने मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ कर दी।  मैं वहां रुका। वो जो शिष्या वहाँ रहती थी, उसने बताया उसने के सीने में कुछ गाँठे आ गई हैं | 

    हमने कुछ औषधि उसे दी, उससे उसे आराम नहीं हुआ। बल्कि लगाने की औषधि से तकलीफ और बढ़ गई। एक रात्रि दस बजे किसी ने दरवाजा ठोंका। कड़ाके की ठंड। मैंने दरवाजा खोला तो ये महिला महात्मा तेजी से मेरे कमरे में घुस आई। अंदर से किवाड़ बंद कर लिया। मेरे कमरे के एक ओर उसके गुरुजी,दूसरी ओर के कमरे में कुछ आश्रम के ही देखरेख करने वाले लोग रहते थे। 

    उसने तेजी से कपड़े खोले और सीना खोलकर खड़ी हो गई। बोली आपने बिना देखे ही दवाई दे दी है। मेरे लिए वो एक बुरा अनुभव था। लेकिन जब मैंने देखा तो सचमुच उसके सीने में गाँठे थीं। मुझे समझ आया वो सचमुच परेशानी में है।

      उस महिला के दोनों स्तनों पर माला के गुरिया जैसी गाँठे थीं। स्तनों के ऊपरी हिस्से में। इस तरह की गाँठे तब आती हैं जब कोई महिला प्रेग्नेंसी के ज्यादा समय के बाद बच्चा गिरा देती हैं। प्रेग्नेंसी के बाद पीरियड बंद हो जाते हैं, ममरी ग्लैंड सक्रिय हो जाती हैं। 

    अगर बच्चा समय से जन्म लेता है तो यही दूध माताओं के सीने से बच्चे के लिए आ जाता है | लेकिन यदि बच्चा गिरा दिया जाए तो कई बार यही सीने में गाँठे बन जाती हैं। कुछ महिलाओं में गलत तरीके से प्रेग्नेंसी के बाद के हार्मोन्स के असंतुलन होने के कारण भी ये हो सकता है |

     हमने उसको तभी ही कुछ जड़ी बूटी खाने के लिए दी और कुछ दिन मेरी स्प्रिचुअल मसाज थेरेपी लेने के लिए कहा। वो महिला महात्मा एक घंटे में ठीक हो गई। हमने उस महिला से पूछा कभी प्रेग्नेंसी हुई है। उसने बताया हाँ दो बार। बच्चा गिराना पड़ा। बच्चा पचहत्तर साल के गुरुजी का। 

हम हमेशा चाहते हैं कि आप लोगों को ज्ञात होना चाहिए की महात्मा होने की दिशा में कितने नरक होते हैं। महात्मा कभी-कभी कोई होता है। ज्यादातर लोग तो साधक भी नहीं बन पाते हैं। कपड़े देखकर धोखा न खाएं।

*बात विश्वास की :*

     मैं ध्यान, प्रेम, सम्भोग की साधना के लिए विश्वास की बात नहीं करता. ये तीनों वैज्ञानिक हैं. मेरे मेथड भी वैज्ञानिक हैं. करो, परिणाम लो, तब मानो. तंत्र जगत विश्वास क़ुछ नहीं साकार करता.

   त्वदीयं सौन्दर्यं तुहिन्गिरिकन्ये तुलयितुं कविन्द्रः कल्पन्ते कथमपि विरञ्चिप्राभृतयः।

यदालोकौत्सुक्यादमरलाना यान्ति मनसा तपोभिर्दुष्प्रपामपि गिरीशसायुज्यपादवीम्॥ 

    उस दौरान हम एक आश्रम में रुके थे। एक दिन जिस महात्मा का वो आश्रम था उनका एक शिष्य हमसे मिलने आए। बातचीत के क्रम में वो बोले मैं तो सिर्फ झाड़ा फूँक से ही सब रोग का इलाज कर देता हूँ। 

     हमने उनसे पूछ लिया महा वाक्य (मंत्र) का प्रयोग करते हो। अब वो चुप हो गए। हमने उनसे कहा अपनी क्षमता को एक बार जान लो ये महा वाक्य भी बेकार की वस्तु लगेगा। लेकिन उनकी आस्था सिर्फ उस महा वाक्य में है। तो वो ही सब समस्या का समाधान है। अब ये सीमांकन तुमने ही किया है | क्या कर सकते हैं ?

      तुम्हें लगता है ये महा वाक्य काम कर रहा है तो यही सही। तुम्हें लगता है चार वेदों के चार महा वाक्य हैं तो तुम्हारे लिए यही सही है। लेकिन मुझे आज तक एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसे महा वाक्य के भीतर से मार्ग मिला हो। महा वाक्य भी बिना विश्वास के काम नहीं करता है। 

     क्या सभी गृहस्थियों को एक बात मालूम है? 

तुम्हारी गोत्र का भी एक महा वाक्य होगा। सभी एक कोशिश करके देखो। बिना विश्वास के सब बेकार है। इसका यही अर्थ हुआ महा वाक्य से भी बड़ा विश्वास है। हमें तो हर वाक्य महा वाक्य लगता है। हमारे लिए तो सभी कुछ रस पूर्ण है। रस महा वाक्य में नहीं है, रस परमात्मा में नहीं है रस तुम्हारे विश्वास में है।

जिस जमीन पर मीरा विकसित हुई हैं। जिस जमीन पर कबीर का जन्म होता है। वो जमीन जिस पर बुद्ध का अंकुर फूटा, जहां महावीर अनावृत हो सके वो भूमि अलग-अलग नहीं है।एक ही भूमि है। ये जमीन पूर्ण विश्वास से बनी होती है। इस सूत्र को सही तरीके से समझा जाना चाहिए। 

     ज्ञान और मूढ़ता अलग रास्तों से नहीं आती है। प्रकाश और अंधकार भी एक ही मार्ग से आता है। प्रेम और घृणा भी एक ही मार्ग से आते हैं।हमारे अंदर खर पतवार खूब फलता फूलता है, लेकिन अनुशासन से सब ठीक किया जा सकता है।

       वो फूल जो सुगंध लेकर आता है। पहले वो सही तरीके से खिलता है। विकास के लिए भूमि सही चाहिए। एक ही चित्त है वो ही कभी घृणा है कभी प्रेम है। योग संतुलन की बात करता है। ज्ञान में चेतना जरूरी है। चेतना जितनी ज्यादा होगी चीजें साफ होती जाएंगी। ज्ञान के लिए पहले से विश्वास करने की जरूरत नहीं है। बात समझ आएगी विश्वास हो ही जाएगा।

      लेकिन जहां तक हृदय की बात है सब कुछ अंधेरे में विश्वास पर टिका है और यदि सभी विधियों की बात की जाए जितनी भी अभी इस धरती पर उपलब्ध हैं उनमें से लगभग नब्बे प्रतिशत हृदय के मार्ग से होकर गुजरती हैं, क्योंकि यदि जगत में रहना है तो हृदय के बिना कुछ भी सफल न होगा और हृदय बिना पहचाने, बिना जाने, बिना देखे विश्वास करने की बात करता है। 

      ये सबसे बड़ा उलझन का कारण है। बिना देखे, बिना जाने कैसे विश्वास पैदा करें ये समझ ही नहीं आता है। यही कारण है करोड़ों में से कोई एक सफल होता है। हृदय का अर्थ है अंधेरे में तीर चलाना या कहें पहले प्रकाश पैदा करो फिर लक्ष्य पर आओ।

       सफलता का प्रतिशत इतना ज्यादा कम है फिर भी लोग अपने तरीके से ईश्वर के प्रति कुछ न कुछ करते ही रहते हैं। सब की ईश्वर में आस्था है और सब समझदार भी हैं। अब समझदारी का ईश्वर से कुछ दूर-दूर का रिश्ता नहीं होता है या जहां भी रिश्ते होते हैं वहां समझदारी जैसा कुछ नहीं हो सकता है।

        जो जितना ज्यादा दीवाना हो सके वो ही उतना बड़ा भक्त होता है। जो अपना घर फूँककर तमाशा देखने का होंसला रखता हो वो भक्त। जो रास्ता ईश्वर की ओर जाता है वो घर फूँक कर ही जाता है और इसी समय में अगर कबीर की बात सुन ली तो भक्ति नौटंकी लगेगी। अगर बुद्ध समझ में आ गए तो भक्ति समय की बरबादी लगेगी। लेकिन एक बड़ी आश्चर्यजनक साम्यता इन लोगों में मिलेगी।

        इन सब में बुद्ध, महावीर, कबीर, मीरा यहाँ तक कृष्ण में एक बड़ी समानता है। बुद्ध भी जब ध्यान की बात करते है तो कहते हैं विश्वास के साथ करो। कबीर की तो बात सुनते ही समझ आ जाती है | “गंगा नहाने से अगर किसी का मोक्ष होता तो गंगा की सभी मछलियों को हो जाना था”। तो कबीर की बात पर भी विश्वास की जमीन पर फलित है। कृष्ण भी विश्वास की ही बात कर रहे हैं। सब कुछ विश्वास पर ही टिका है।

      आप कुछ भी कर लीजिए ज्ञान, ध्यान, भक्ति, तपस्या, साधना, तंत्र, मंत्र यहाँ तक कि इस धरती पर जो कुछ भी है | बिना विश्वास के हो ही नहीं सकता है और विश्वास की जड़ हृदय में होती है। अब आप खुद ही चीजों का आकलन करिए।ये सभी झूठे और बेईमान लोग हैं। जो सीधे ध्यान और ज्ञान की बात करते हैं। ये सभी कहते मिलेंगे मेरी छतरी के नीचे ज्यादा सुरक्षा है। 

      अगर प्रह्लाद को पत्थर में ईश्वर होने का विश्वास है तो वो है। लेकिन प्रह्लाद का विश्वास इस जगत से बड़ा है और नरसिंघ भगवान उसी पत्थर को तोड़कर बाहर निकले और किसी भी रास्ते से आया जा सकता था। लेकिन विश्वास तो सबसे बड़ी सिद्धि है। बिना विश्वास के पत्थर में ईश्वर नहीं देखा जा सकता है।

तो तुम्हें वास्तव में सबसे पहले विश्वास पैदा करना होगा। और विश्वास पैदा करते आना चाहिए। सब कुछ इस विश्वास पर ही निर्भर है। अगर विश्वास नहीं तो ये जगत नहीं और विश्वास नहीं तो ईश्वर नहीं। अगर विश्वास है तो “अहं ब्रह्मास्मि”। अगर विश्वास है तो अभी इसी वक्त तुम ब्रह्म हो। 

     जब आदि शंकर कहते हैं एक ब्रह्म ही सत्य है तो ये विश्वास पैदा करने की बात है | जब तुम कहते हो ब्रह्म भी सत्य और जगत भी सत्य तो ये तुम्हारा डुल मुल रवैया है। दो नाव पर पैर रखकर यात्रा संभव नहीं बन सकती है। तुम्हें खुद को बताना होगा जाना किस दिशा में है। 

      यदि आपकी जगत में निष्ठा है तो अपनी क्षमताएं विकसित करनी होंगी। ईश्वर तुम्हारा सपनों का जगत नहीं बनाने वाला है और फिर ईश्वर से भी कितना माँगोगे ? 

       कोई ईश्वर तुम्हारा कर्जदार नहीं है। वेश्या भी कहती है एक ग्राहक भेज दो, मीट काटने वाला भी दुकान चालू करने से पहले शंकर जी की आरती उतरता है। चोर, बेईमान, लुटेरे सभी तो लगे हैं ईश्वर की भक्ति में। आखिर ईश्वर किस – किस की मदद करे और क्यों करे? 

अच्छे लोगों से ज्यादा आस्था बुरे लोगों की होती है ईश्वर में।यदि जगत विस्तार की दिशा में बढ़ना है तो अपनी क्षमताओं को पहचानना होगा। यदि जीवन को सफल बनाना है तो खुद की शक्तियों का उपयोग करने आना चाहिए।

      एक ही ऊर्जा है वही नकारात्मक है वही सकारात्मक है। जो न कह रहा है उसका न में विश्वास है। जो हाँ कह रहा है उसका हाँ में विश्वास है। दोनों अपनी जगह सही हैं। तुम किसी से ये नहीं कह सकते हो तुम गलत हो। तुमने कहा वो है तुमने बिना देखे कहा, दूसरे ने भी बिना जाने कहा है वो नहीं है। दोनों अपनी अपनी दृष्टि में सही है और दोनों ही रास्ते वहीं लेकर जाएंगे। 

   आपको कहां जाना है, कैसे जाना है, आपको क्या चाहिए तय कर लीजिए |

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