आपको एक दिलचस्प बात बताता हूं। मैं हाईस्कूल में था। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। हमारे एक बुजुर्ग टीचर थे जो हमें अंग्रेजी पढ़ाते थे। थोड़ा उदार संघी थे और हम बच्चों को प्रेरित करने के लिए कुछ-कुछ सियासी बातें बताते रहते थे।
एक दिन उन्होंने बताया कि अटल जी सिर्फ तीन घंटे सोते हैं। इसमें हमारे काम का ये था कि बड़ा बनना है तो सोना कम है और पढ़ाई ज्यादा करनी है। आगे चलकर यह बात हमें बहुत बार सुनने को मिली। तब मीडिया गोदी नहीं हुआ था और इंटरनेट नहीं आया था। आज आईटी सेल जो जहर फैलाता है, तब वह मौखिक रूप से फैलाया जाता था।
पूरे भारत में ऐसे मौखिक विषाणुओं की संख्या बहुतायत में है। उनके पास ऐसी तमाम कहानियां थीं कि कौन सा महानायक नेहरू का नाजायज बेटा है, नेहरू मीरगंज के रेड लाइट एरिया में पैदा हुए थे, नेहरू मुसलमान थे। वेदों में विमान बनाने की तकनीक थी। भारत विश्वगुरु बन जाता लेकिन नेहरू ने रोड़ा अटका दिया। ताजमहल का नाम तेजोमहालय था और वह शिव मंदिर है। भारत का बंटवारा द्विराष्ट्र सिद्धांत देने वाले सावरकर, उसपर अमल करने वाले जिन्ना और हिंदू-मुस्लिम राष्ट्र मांगने वाले कट्टरपंथियों ने नहीं, बल्कि नेहरू ने करवाया वगैरह-वगैरह।
खैर, अटल के बाद मनमोहन सिंह दस साल प्रधानमंत्री रहे लेकिन उनके बारे में ऐसा कुछ सुनने को नहीं मिला। फिर डंकापति आए और चैनलों पर कीर्तन होने लगा कि 18 घंटे काम करते हैं, कभी छुट्टी नहीं लेते, कौन सा टॉनिक लेते हैं, कभी क्यों नहीं थकते आदि-इत्यादि।
अब हम बड़े हो चुके है हमें इस बारे में जिज्ञासा हुई। क्या बाकी प्रधानमंत्री छुट्टी लेकर चड्ढी पहनकर गोवा घूमते थे? क्या बाकी प्रधानमंत्री छुट्टी लेकर सतुआ की दावत खाने ससुराल जाते थे? क्या बाकी प्रधानमंत्री खूब सोते थे? क्या बाकी प्रधानमंत्री मेहनत नहीं करते थे? जैसे-जैसे पड़ताल की तो पाया कि यह सब उच्चकोटि की मूर्खता-मिश्रित बकवास है। प्रधानमंत्री रहते हुए कोई व्यक्ति तब तक ड्यूटी पर रहता है, जब तक वह जिंदा है। भले ही वह सो रहा हो। कई दफा जरूरत पड़ने पर उसे नींद से जगाया जाता है। प्रधानमंत्री के लिए छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है। भारत में किसी प्रधानमंत्री के छुट्टी लेने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। हर किसी के शरीर की अपनी क्षमता हो सकती है, लेकिन डंकापति के बारे में जो भी फैलाया गया, वह सब मूर्खताओं का चरम है।
जवाहरलाल नेहरू के करीबी रहे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी किताब लोकदेव नेहरू में उनकी दिनचर्या, मजबूत स्वास्थ्य और असाधारण क्षमता के बारे में लिखा है। वे कहते हैं कि नेहरू के सोकर उठने, तैयार होने, काम करने, खाना खाने और फिर सोने का टाइप एकदम नियत था। ‘वे रात एक बजे से सुबह छह बजे तक सोते थे।’ यानी मात्र पांच घंटे। इस लिहाज से तो वे 19 घंटे काम करते थे। डंकापति से एक घंटे ज्यादा। हालांकि, दिनकर की किताब में इस बारे में मात्र एक पैरा है जो उनकी कार्यक्षमता और ऊर्जा की चर्चा करते हुए लिखा गया है। उनके बारे में अन्य कहीं कभी नहीं सुना कि वे कभी थकते नहीं थे या कोई विगोरस टॉनिक लेकर दुनिया में डंका बजा रहे थे। हालांकि, तथ्य बताते हैं कि दुनिया के कई राष्ट्र प्रमुख उनके निजी दोस्त जरूर थे और दुनिया में भारत की हैसियत का अंदाजा गुटनिरपेक्ष आंदोलन से लगाया जा सकता है।
दरअसल, सार्वजनिक जीवन के बारे में सर्वविदित है कि आदमी अथक मेहनत करता है, खासकर जब वह प्रधानमंत्री हो। अब तक सारे प्रधानमंत्रियों में नेहरू से ज्यादा काम किसी ने नहीं किया। उन्होंने हजारों, लाखों भारतवासियों के साथ मिलकर इस देश की नींव डाली। यह कोई प्रचार का विषय कभी था ही नहीं कि पीएम कितने घंटे सोता है और कितनी छुट्टी लेता है। यह तमाशा संघियों ने शुरू किया।
इसकी वजह ये है कि संघी सुबह उठकर लाठी भांजते हैं। वे समझते हैं कि उन्होंने सुबह उठकर कोई नया जहान जीत लिया है। इसलिए डींग हांकते रहते हैं। अब तक सिर्फ दो प्रधानमंत्रियों के बारे में ऐसी गप्पें फैलाई गईं, दोनों इसी कुनबे से हैं।
असल मूल्यांकन तो अब इस बात से होना है कि देश में सबसे ज्यादा विध्वंस किस प्रधानमंत्री ने किया? अब तक जितने हुए, सबने कुछ न कुछ बनाया और आगे बढ़ाया, विध्वंस का कारनामा करने वाला अभी तक तो सिर्फ एक ही है, जिसने एक झटके में 23 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से नीचे डाला, 50 साल की रिकॉर्ड बेरोजगारी लाया, अपनी नीतियों से सैकड़ों जानें लीं। नोटबंदी, लॉकडाउन, महामारी, किसान आंदोलन में उनकी हुज्जत भरी नीतियों और फैसलों के कारण सैकड़ों जानें गईं। हमारे लोकतंत्र में विध्वंस का यह अब तक का कीर्तिमान है।