~ पुष्पा गुप्ता
बुकर प्राइज से नवाजी गई लेखिका गीतांजलिश्री की संबंधित कृति ‘रेत समाधि में यह भी है. इसलिए आला हुक्काम का ‘चुप्पी की समाधि’ में गुड़प हो जाना तो बनता ही है :
- “साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, सामंतवाद, बाजारवाद जैसे मर्जों की व्याख्या करना गम्भीर को खूब आता था और वो जानता था कि उन्हीं ने यह दशा की है कि कुछ नहीं बचा जिसे देखकर मन खिले और हंसीं आये पर हंसी इसलिए नहीं आती एक बात है, हंसना आता ही नहीं और बात है.”
- “ड्राइवर की माइकल जैक्सन वर्दी और वाऊ, ओ शिट,, रास्ते की उपभोक्ता संस्कृति, प्रदूषण में सुबकता सूरज, उसके नीचे बदसलूक शहर, धूल जंग बीट से बदरंग, अश्लील माल्स, हर चीज बेचो और खरीदो, पानी तक बिकता हुआ, उसकी खिड़की पर ठकठक करती बच्ची बेच रही है, पढ़ने के बजाय ये कर रही है, और गाड़ियों के बीच चिथड़ों में फिल्मी कैबरे कर रही है, पढ़ी लिखी लड़कियां सड़क क्रास कर रही हैं और उनके छोटे कपड़ों से छोटे उनके दिमाग हो गए हैं… “
- “दादरी लिंचिंग और गइयों के कारोबार करने वालों में गुनहगार कौन और कानून रक्षक कौन? यहाँ तक देशप्रेम और देशद्रोह के मामले में भी कानून कहाँ कब का किन बीती किताबों में किन जोड़ तोड़ दंद फंद में उलझा हुआ, तो फिर किसका मर्डर कौन विटनेस? “
- ” जब नफरत उठान पर हो तो प्रेम की बातें गिजगिजी और पिचपिची लगती हैं. खैबर को लैला मजनू शीरीं फरहाद चंदा अनवर से कौन जोड़ता है? खूनियों से, कलैशनिकोव से, तालिबान , ड्रोन, अटैक, बच्चों के स्कूल पे बमबारी, इन दहशतों में वो सुर्खियों में आता है. यों ही नहीं हुआ कि स्पेस से नीचे देखने पर और सरहदें दिखें न दिखें, हिंदुस्तान पाकिस्तान की यों साफ नजर आती है बत्तियों से पटी, कि एलियन सोच ले कि इस गृह पर इस जगह हमेशा जश्न का माहौल रहता है. उसे क्या पता कि अलगाव जताना कुछ लोगों के लिए जश्न बन गया है? जश्ने- दुश्मनी जोशे-दरार.”
(चेतना विकास मिशन)