डॉ. अभिजित वैद्य
जोशीमठ, हिमालय की गोद में छह हजार फिट ऊंचाई पर बसा हुआ कुदरती एवं प्राचीन इतिहास
का समृद्ध विरासत वाला गाँव l सातवीं शति में कुमाऊ घाटी में कत्युरी राजसत्ता का यह गाँव एक हिस्सा
था l आगे चलकर ग्यारहवीं शती में कत्युरी हुकूमत के स्थान पर पनवार राजसत्ता राज करने लगी l कत्युरी
राजसत्ता वासुदेव कत्युरी नामक राजाने स्थापित की l राजा बौध्द धर्म का था l लेकिन कुछ समय बाद वह
ब्राम्हणवाद की और मूड गया l आदि शंकराचार्य के प्रभाव के कारण शायद ऐसा हुआ होगा l जोशीमठ
स्थित बासदेव मंदिर वासुदेव राजा का है l आदि शंकराचार्य ने स्थापित किए हुए चार पीठों से यह एक पीठ
है, ज्योतिर्मठ इसी गाँव में है l इसी गाँव में शंकराचार्य ने नरसिंह का मंदिर भी स्थापित किया l स्थानिकों
की श्रध्दा है की इस मूर्ति का दाहिना हाथ छोटा होता जा रहा है l यह हाथ जिस दिन टूटेगा उस दिन
बद्रीनाथ के रास्ते पर जो जय-विजय पर्बत हैं वे एक हो जाएँगे और बद्रीनाथ मंदीर के बद्रीनाथ अंतर्धान
होंगे और जोशीमठ के पास ‘भविष्य बद्री’ इस स्थान पर काले रंग के शालिग्राम के रूप में अवतरित होंगे l
ठण्ड के मौसम में बद्रीनाथ मंदिर बंद रखा जाता है तब बद्रीनाथ की मूर्ति को जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में
लाया जाता है और छह महीनों तक उसकी पूजा इस मंदिर में होती है l बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब इन
धार्मिक स्थलों की ओर जाने का यह प्रवेशद्वार है l विश्व का प्रसिध्द स्कीइंग स्थान औली, यूनेस्को हेरिटेज
स्थान वैली ऑफ़ फ्लॉवर्स की ओर जाने के लिए इस गाँव में से ही जाना पड़ता है l औली की ओर जानेवाला
रोपवे इस गाँव में से ही शुरू होता है l गर्म पानी का झरनेवाला तपोवन इस गाँव के पास ही है l भारतीय
लष्कर का यह बहुत महत्वपूर्ण केंद्र है l यहाँ लष्कर की जो बडी छावनी है वह चीन की सीमा से बहुत ही
समीप है l संक्षिप्त में अगर कहा जाए तो सभी अर्थ में जोशीमठ भारत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर है l
गत साल से इस छोटे शहर में रात की भयावह शांति में घरों के नीचे से एक के बाद एक डरावनी
आवाज आति रही (पान २) और मकान धँसते रहे l डरे हुए निवासी बडी ठंड में अपने घर छोड़कर जहाँ
मिले वहाँ आश्रय लेते रहे l और अनेक लोग गिराने की स्थिति में जो घर थे उसमें ही रहना पसंत करते रहे l
अपना निवासी घर छोड़ देना इन्सान को कठिन हो जाता है इसका यह जीता जागता उदाहरण है l घरों के
साथ गाँव की सड़के भी धँसते रही l गत २२ दिसंबर को तो गाँव का विश्व के साथ जुडनेवाला आमरस्ता ही
धँस गया l लष्कर के ब्रिगेड मुख्यालय से जुडी हुई सड़क भी धँसने लगा l कुछ छोटे छोटे मंदिर तो पूरी तरह
से गिर गए l अनेक होटलों को छेद पड़ गए l जोशीमठ धार्मिक स्थल की अपेक्षा पर्यटनपर आधारित शहर l
पीने की तथा घोवन जल की अनेक नलिकाएँ टूट गई l जनवरी महीने के पहले हफ्ते में इस शहर की
साडेचार हजार इमारतों में से ६८७ इमारतों को बडे छेद पड़े ओर आज भी नए मकानों को छेद जा रहे हैं l
यह सब जब हो रहा था तब शासन निद्रिस्त थी l निवासी लोग जब सड़कों पर उतर आएँ तब प्रशासन नींद
से जाग उठा l फिर स्थानीय प्रशासन, मुख्यमंत्री, और उसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यवाही शुरू
हुई l आपातकालीन व्यवस्थापन दल तैनात किए गए l अस्थायी रूप में छावनियों का निर्माण किया गया l
परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा दिया l आर्थिक मदद घोषित होने लगी l सर्वेक्षण शुरू हुआ l
2
समितियों का निर्माण किया गया l सबसे बडी मजेकी बात यह रही कि जोशीमठ शहर को
‘भूस्खलनप्रवणक्षेत्र’ घोषित किया गया l
ईश्वर का प्रवेशद्वार के रूप में पहचाने जानेवाला जोशीमठ इस शहर का यह धँसना आज या कल
का नहीं है l इस शहर के धँसने जाने की आहट १८८६ में अॅटकिन्स नामक अंग्रेजी अधिकारी को लगी थी l
जोशीमठ धँसने वाले भूभाग पर बसा है ऐसा उन्होंने गैजेट में दर्ज किया था l उसके बाद इसकी आहट फिर
से सीधे १९६४ में अर्थात छह दशक पूर्व लगी थी l उस समय के शासन ने गढवाल के जिलाधिकारी एम.सी.
मिश्रा की अध्यक्षता में १८ सदस्योंकी समिति भी नियुक्त की थी l इस समिति की ओर से १९७६ में प्रेषित
(पान ३) किए हुए अहवाल को ध्यान में लेना आवश्यक है l इस समिति के अहवाल में लिखा गया है की
जोशीमठ के इलाके की निर्मिती कई शतकपूर्व हुए भूस्खलन के कारण हुई है l भूस्खलन के बाद गिरकर आए
हुए पत्थर तथा मिटटी पर जोशीमठ बसा हुआ है l हिमालय विश्व का सबसे तरुण पर्बत l उसके नीचे के
भूस्तर आज भी अस्थिर है l उसमें जोशीमठ वैक्रिता, थ्रस्ट, मुख्य केंद्रीय थ्रस्ट तथा पांडूकेशवार थ्रस्ट नामक
भूस्तर के तीन तटवर्ती (फ़ॉल लाईन्स) पर बसा हुआ है l ऐसे भूस्तर हमेशा एक दुसरे के नीचे खिसकते रहते
हैं l यह भूस्तरिय हलचल भूकंप निर्माण करता है l अतः यह पूरा इलाका मूलतः भूकंप प्रवण ही है l भूकंप
प्रवणता तथा इसकी संभाव्य तीव्रता के अनुसार भारत के चार भौगोलिक विभाग होते हैं l उसमें झोन वी-
जिस हिस्से में अगर भूकंप हुआ तो उसकी तीव्रता रिश्टर स्केल पर ९ से अधिक रहेगी l यह तीव्रता
अतितीव्र वर्ग में आति है l जोशीमठ झोन वी पर बसा हुआ है l इसके साथ-साथ सैंकड़ों वर्षों से वातावरण
का होनेवाला परिणाम, बारिश, बदलनेवाले पानी के प्रवाह, रिसता हुआ पानी आदि सभीके परिणाम के
कारण यह जमीन भुरभुरा हुई है और आगे होती रहेगी l अर्थात पहले से ही भूकंप प्रवण और उसमें
भूस्खलनशील l संक्षिप्त में अगर कहाँ जाए तो इन सभी नैसर्गिक कारणों से जोशीमठ का परिसर नैसर्गिक
रूप से धोखादायी है l
इसकी जमीन तथा गृहनिर्माण का संतुलन रखने की क्षमता बहुतही कम है l अतः इस इलाके में नए
निर्माण तथा प्रकल्प खड़े करते समय, सड़कों का निर्माण करते समय इन सभी बातों को ध्यान में लेना
चाहिए ऐसा मत मिश्रा समिति की ओर से छह दशक पूर्व लिखकर रखा था l इस अहवाल को नजर अंदाज
किया गया l इसके अलावा ‘वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जिऑलॉजी’ ने २००१ में न केवल इस
इलाके का अपितु चारधाम, मानस सरोवर यात्रा मार्ग, डेहराडून, टेहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग,
पिठारेगड, नैनीताल, चमौलिया जैसे सभी (पान ४ ) स्थानों का फिरसे अभ्यास – परिक्षण करके अनेक मुद्दों
को सम्मुख रखा था l मुख्यतः उन्होंने इस अहवाल में ऐसा नमूद किया था की यह इलाका न केवल प्राकृतिक
कारणों से धोखादायी बना हुआ है अपितु उसमें मनुष्य निर्मित ऐसे बहुत कारण है कि जिसके कारण यह
इलाका धोखादायी हुआ l
विष्णू प्रयाग से बहकर आनेवाले नैसर्गिक जलोस्त्रोतों के कारण होनेवाला जमीन का क्षरण इसका
एक कारण है l २०१३ में हुए केदारनाथ प्रलय ने भी यह साबित किया l अलकनंदा नदी के प्रवाह के कारण
मिटटी बडी मात्रा में बहकर आ गई जिसके कारण अनेक नैसर्गिक नाले बूझ गए l अतः इन नाले में जो पानी
बहता था अब वह अन्य मार्ग से बाहर निकाल रहा है l उसमें वैश्विक तापमान की वृध्दि हो रही है l
उत्तराखंड राज्य में इसके कारण बरसात की औसत बढ़ रही है l बढ़ती हुई बारिश के कारण पर्बतों के उतार
पर जो जमीन है उसका क्षरण तीव्र गति से हो रहा है l इन सभी स्थितियों पर अक्षम्य रूप से नजर अंदाज
किया गया और यहाँ इमारतों का निर्माण किया गया l होटलों का निर्माण किया गया l बहुमंजिले वाली
3
इमारतें खड़ी की गई lसड़कें बनाई गई lबद्रीनाथ की ओर जाने का यही द्वार होने के कारण बद्रीनाथ को
जानेवाले श्रध्दालुओं के लिए वहाँ जाना आसान हो इसलिए यहाँ की जमीन की मजबुति का विचार न करते
हुए बडी सड़कें बनाई गईं l इतनाही नहीं तो यहाँ बाँध तथा बिजली के प्रकल्प खड़े किए गए l विष्णूगढ़
जलविदयुत प्रकल्प हेतु जमीन के नीचे सुरुंग बनाए गए lयह सब विकास के नाम पर होता रहा l यह
विकास फिरसे जंगल नष्ट करते हुए हो रहा था l नष्ट होनेवाले जंगलों के कारण जमीन का क्षरण बढ़ रहा
था l
इन सभी सत्य की ओर दशकों से नजर अंदाज किए जाने के कारण आज तक शहर नष्ट एवं पूरी
तरह से ध्वस्त होने की अवस्था में पहुँचा है l भारत के उत्तर भाग के अनेक शहरों की स्थिति जोशीमठ की
तरह हो सकती है इसे हमें भूलना नहीं चाहिए l एक के बाद एक राजसत्ता निर्माण हुई लेकिन अनेक
विद्वानों ने अभ्यास करके सम्मुख रखे हुए प्रश्नों पर नजर अंदाजी की गई l गत तीस सालों से अपने देश पर
आनेवाली अनेक बडी आपत्तियों (पान ५ ) के बाद आरोग्य सेना के दल उस भागों में पहुँच गई है l लातूर का
भूकंप हो, तमिलनाडु – केरल की तटों को ध्वस्त करनेवाली त्सुनामी हो, बिहार का प्रलय हो, कश्मीर की
बाढ़ हो या केदारनाथ का प्रलय हो – इन सभी आपत्तियों के पीछे निसर्ग के साथ साथ अनेक मानवी घटकों
का समावेश था l इन मानवी घटकों को समय पर ही अगर टाल दिया होता तो कम से कम मनुष्यहानी बडी
मात्रा में दूर हो सकती थी l उस इलाके में हर घटना पर काम करते समय इस नतीजे पर हम पहुँच गए l
इस टाईमबम का विस्फोट होने का इंतजार क्या हम करते रहेंगे यह अहम सवाल खड़ा होता है l भारत के
शहरों एवं गाँवों में वृध्दि नहीं हो रही है अपितु इसमें सूजन हो रही है l यह सूजन कैंसर की गाँठ की तरह
है l लेकिन कैंसर की गाँठ शस्त्रक्रिया करके निकली जा सकती है, या किमोथेरपी, रेडिओथरेपी के माध्यम से
नष्ट की जा सकती है l शहर या गाँवों के विकास के नाम के अंतर्गत निर्माण होनेवाली यह गाँठ टाल देना
यही एक विकल्प बचा है l जिस शहरों एवं गाँवों पर प्रकृति ने सौंदर्य की वर्षा की है उस शहरों एवं गाँवों
को हम बदसूरत कर रहे हैं l लेकिन यह कुरूपता इन्सान को उतनीही घातक साबित हो सकती है इसपर हमें
ध्यान देना चाहिए l हमारे देश ने नगरविकास शास्त्र की ओर हमेशा नजरंदाजी की है l गत दस सालों में
इसकी चरमसीमा पार हुई l देश में गत पूरे दशक में सत्ता अपनानेवाले पक्ष के एक राज्य के अध्यक्ष अपने
कार्यकर्ताओं को खुलेआम कहता है कि, ‘सड़कों एवं नालों का प्रश्न महत्त्वपूर्ण नहीं है अपितु लव जिहाद जैसे
प्रश्न महत्त्वपूर्ण है l’ ऐसे पक्षों की सत्ता जबतक रहेगी तबतक विकास के नाम पर पर्यावरण का विध्वंस और
शहरों की दुर्गति होती रहेगी l हिंदूराष्ट्र की भाषा करनेवाले हिंदूओं का परमश्रध्दास्थान जो बद्रीनाथ है उस
‘ईश्वर के द्वार’ पर ध्यान देने की इच्छा नहीं रखते l कम से कम गत सात-आठ वर्षों में अगर ध्यान दिया
होता तो ईश्वर का यह द्वार धँसता नहीं और वहाँ के लोगों को बेघर होना नहीं पड़ता l
जोशीमठ नामक धँसनेवाले गाँवों का आक्रोश भविष्य की बडी आपत्ति का इशारा है l इस इशारे की
ओर गंभीरतापूर्वक देखने के लिए सत्ताधारियों के पास चाहिए संवेदनशीलता तथा मकसद की प्रामाणिकता