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भारत में लोकतंत्र की जड़े मजबूत है।

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शशिकांत गुप्ते

लोकतांत्रिक सोच रखने वाले विचारक सत्ता परिवर्तन के कभी भी पक्षधर नहीं होतें हैं, यह लोग व्यवस्था परिवर्तन के लिए सतत प्रयत्नशील रहतें हैं।
दुर्भाग्य से इनदिनों राजनीति, सत्ता,पूंजी और व्यक्ति पूजक हो गई।
इसका मुख्य कारण देश के तकरीबन सभी राजनैतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता जा रहा है।
आंतरिक लोकतंत्र के आभाव का प्रत्यक्ष उदाहरण है, सभी दलों के द्वारा हरएक चुनाव में किसी एक व्यक्ति को महिमामण्डित कर उसके चेहरे को महत्व दिया जाता है। चेहरे को सिर्फ महत्व ही नहीं दिया जाता है, बल्कि चेहरे को दल के कार्यकर्ताओं के मानस पर थोपा जाता है।
एक चेहरे के मातहत ही दल की सारी शक्ति केंद्रित हो जाती है। चेहरा अपने इर्दगिर्द अपने खास लोगों को ही तव्वजों देता है। राजनैतिक भाषा में इन खास लोगों के लिए एक प्रचलित शब्द है,पठ्ठे।
वर्तमान राजनीति में चेहरे के पठ्ठों के अलावा जो शेष होतें हैं, वे भलेही विशेष हो, उनके पास उम्र और अनुभव में Seniority मतलब जेष्ठता होने पर भी वे मार्गदर्शक की उपाधि प्राप्त कर मूक दर्शक बन कर रह जातें हैं। इनलोगों की स्थिति, घर के असहाय बुजुर्ग की तरह हो जाती है।
चेहरे के पठ्ठों के अलावा जो युवा होतें हैं। वे दल में अनुशासन के नाम पर तानाशाही का शिकार हो जातें हैं। ऐसे युवा दल के बंधुआ कार्यकर्ता बनकर रह जातें हैं।
ऐसे कार्यकर्ता, दल के नेताओ के लिए जिंदाबाद और विपक्ष के नेताओ के लिए मुर्दाबाद के नारे लगाने के लिए अभिषप्त होतें हैं। साथ ही किसी मुद्दे के विरोध स्वरूप जो फैशनेबल आंदोलन किए जातें है। इन आंदोलनों में दल की संख्या बढ़ाने के लिए काम में आतें हैं। इसतरह विरोध करने की औपचारिकता का निर्वाह करतें हैं।
चेहरे को प्रधानता देने की राजनीति का प्रचलन तानाशाही प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है। यह भविष्य के लिए भाववह स्थिति है।
उपर्युक्त मुद्दों गम्भीरता से विचार करने पर एक बात का स्मरण होता है। भारत के लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश कभी भी सफल नहीं होगी।
हमेशा स्मरण रखना चाहिए,भारत की प्रकृति में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता मजबूती से रचा बसा है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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