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सत्ताधीशों ने देश की दुर्दशा कर दी ?

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मुनेश त्यागी

     भारत में इस वक्त 30 करोड बेरोजगार हैं, 40 करोड़ लोगों के घर में बिजली नहीं है, 18 करोड़ लोगों के पास घर नहीं है, 30 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं, 70 करोड़ लोगों की पहुंच दवाइयों से परे है, अस्पतालों में विस्तर, दवाइयां, पर्याप्त संख्या में डॉक्टर, नर्स और तकनीशियन नहीं हैं, देश के 100 करोड़ लोगों को यानि sc.st.obc और गरीबों को, शिक्षा के दायरे से लगभग बाहर कर दिया गया है।

    भारत की कुल मुद्रा 4 पॉइंट 7 ट्रिलियन है। भारतीय नव उदयमान पूंजीपति गोतम अडानी पर 2. 2 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है जो लगातार बढ़ता जा रहा है। अंबानी हर मिनट में 2.35 लाख रुपए कमाता है, पिछले 10 वर्षों में अंबानी की संपत्ति 400 पर्सेंट और अडानी की संपत्ति 1830 फ़ीसदी बढ़ी है। भारत में अरबपतियों की संख्या 215 है जो लगातार बढ़ती जा रही है। भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हैं, इनकी संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। सरकार पूंजीपतियों के 12 लाख करोड़ रुपए पिछले 4 सालों में माफ कर चुकी है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि भारत की मोदी सरकार इस 12 लाख करोड़ रुपए के लोन को पूंजीपतियों से वसूलने को तैयार नहीं है, जिस कारण बैंकों की आर्थिक स्थिति लड़खड़ा गई है।

    करोना काल में पूंजीपतियों की संपत्तियां लगातार बढ़ती रही हैं। 85 परसेंट परिवारों की आय घटी है। 85 परसेंट मजदूरों का न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है, देश में 5 करोड मुकदमों का पहाड़ खड़ा हो गया है। भारत की सुप्रीम कोर्ट में 75 हजार, विभिन्न उच्च न्यायालयों में 60 लाख और निचली अदालतों में 4 करोड़ 20 लाख से ज्यादा मुकदमे पेंडिंग हैं। हमारे देश की न्यायपालिका बुरी तरह से प्रभावित है। मुकदमों के अनुपात में जज नहीं हैं, स्टेनो क्लर्क बाबू लगभग 90 परसेंट से ज्यादा कम है और पर्याप्त अदालतों की बेहद ज्यादा कमी है।

      सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय के बजट में लगातार कमी करती आ रही है। भारत के लॉ कमीशन की 19 87 की रिपोर्ट है कि भारत में 10 लाख आबादी पर 107 जज होने चाहिएं, जबकि हमारे देश में 10 लाख मुकदमों पर केवल 20 जज हैं। सरकार जीडीपी का 0.08 परसेंट ही जुडिशरी पर खर्च करती है। वकीलों की संस्थाओं द्वारा लगातार प्रयासों के बाद भी सरकार इस ओर से आंखें मीचे हुई है, वह वकीलों की, लो कमीशन, और सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिशों  को भी अनसुना करती आ रही है।

      भारत की सरकार ने चार नये श्रम कानून बनाकर मजदूरों से उनके बुनियादी और संवैधानिक अधिकार छीन लिए गए हैं और उन्हें आधुनिक गुलाम बना बना दिया गया है। किसानों पर हमले लगातार जारी हैं, उनकी जमीन छीनने की कोशिश और साजिश लगातार जारी हैं। उन्हें आज तक भी एमएसपी और फसलों का वाजिब दाम नहीं दिया जाता है। जनता पर जीएसटी के रूप में विभिन्न प्रकार के टैक्स लगातार बढ़ाये जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संपत्तिवान वर्गों को टैक्स में छूट दी जा रही है।

   वायदों और नारों को जुमले बताया जा रहा है। जातिवाद और छुआछूत की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं और इस जन विरोधी मानसिकता को रोकने पर कोई लगाम नहीं लगाई जा रही है। अब तो सामुहिक बलात्कारियों और हत्यारों को संस्कारी ब्रहामण बताया जा रहा है। अब तो औरतों पर हो रहे अत्याचारों की सारी सीमाएं टूट गई है दो,दो साल की और चार,चार साल की बच्चियों से बलात्कार किए जा रहे हैं। महंगाई, डीजल, पेट्रोल, सीएनजी गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, इन पर कोई रोक रोक नहीं है जरूरी चीजों के दामों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। लगातार बढ़ती महंगाई ने तो जैसे जनता की कमर ही तोड़ दी है। अब तो सरकार ने दूध दही और छाछ पर भी जीएसटी लगा दी है। ऐसा तो कंस और दुर्योधन ने भी नहीं किया था।

     ज्ञान विज्ञान से पल्ला झाड़ने की कोशिश जारी है। वैज्ञानिक संस्कृति, सोच और मानसिकता व व्यवहार को और वैज्ञानिक ज्ञान के प्रचार प्रसार को तिलांजलि दे दी गई है। भारत में अंधविश्वास, धर्मांधता, अज्ञानता और पाखंड पूर्ण व्यवहार को बढ़ाने की और बनाए रखने की पूरी कोशिश जारी है। इन निहित स्वार्थी तत्वों के साथ-साथ, भारत की सरकार भी इस काम में पूरी तरह से संलिप्त है। सरकार के इन समस्त कुकर्मों ने भारत के संविधान की धज्जियां उड़ा दी हैं, वैज्ञानिक संस्कृति को तिलांजलि दे दी है।

     भारत के संविधान पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं। कानून के शासन की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जनतांत्रिक व्यवस्था पर भी हमले जारी हैं। धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को मिट्टी में मिला दिया गया है। समाजवाद के मूल्यों और सिद्धांतों को नष्ट कर दिया गया है। समानता के विचार को व्यवहार में तिलांजलि दे दी गई है। आर्थिक असमानता और गुलामी लगातार बढ़ती जा रही है। इसी का परिणाम है कि देश में जहां एक और खरबपति पैदा हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर 80 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं।

    बढ़ती हुई आर्थिक असमानता ने संवैधानिक मूल्यों को धराशाई कर दिया है। भारत की इस आधुनिक और भयावह तस्वीर को देखकर यह आसानी से कहा जा सकता है कि आज का वर्तमान भारत, हमारे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों और लाखों शहीदों के सपनों का भारत नहीं है। आज इसे बदलकर भारत में समतावादी, समानतावादी, धर्मनिरपेक्षतावादी, समाजवादी व्यवस्था को सही मायनों में कायम करने की सबसे ज्यादा जरूरत है और यह काम सामंतों और पूंजीपतियों और  देश विदेशी लुटेरों की सत्ता और सरकार नहीं कर सकती।

     बल्कि यह काम सिर्फ और सिर्फ किसानों, मजदूरों, नौजवानों और मेहनतकशों की अपनी सरकार, यानी किसानों मजदूरों और मेहनतकशों की सरकार कायम करके ही, भारत का विकास किया जा सकता है और आधुनिक भारत का निर्माण किया जा सकता है। यहां पर बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि आजादी के 75 साल के बाद भी भारत के पूजीपति शासक वर्ग और उनकी सरकार ने भारत की क्या दुर्दशा बना दी है?

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