मुनेश त्यागी
मनुष्य अपने जन्म काल से ही प्रकृति से लड़ता आया है। इस सनातन एवं सतत संघर्ष में उसने अनगिनत अद्भुत कारनामों को जन्म दिया है। उसने अनेक मानव निर्मित बाधाओं और अवरोधों को ध्वस्त किया है। वह कभी प्रकृति का दास बना, तो कभी उसका विजेता और स्वामी बना। अगर निष्पक्ष होकर देखा जाए तो मानव इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा और महानतम कारनामा है 7 नवम्बर 1917 को रूस के मजदूरों और किसानों द्वारा की गई क्रांति, जब उन्होंने दुनिया के इतिहास में पहली दफा मजदूरों और किसानों की सरकार कायम कर डाली और मजदूर वर्ग का राज कायम कर दिया यानी जब कमेरा राजा बन बैठा, यानी जब सारी मेहनतकश जनता मानव इतिहास में पहली बार, अपनी “भाग्य विधाता” बन बैठी थी।
आज उसी महान क्रांति का 105 वां अवसर है। मानव इतिहास की यह महान घटना, विश्व और भारतीय जन को अनेक सबक, सीख, शिक्षाऐं और अनुभव दे गई थी जिनका महत्व आज भी बना हुआ है। रूस की 1917 की क्रांति अक्टूबर क्रांति के नाम से विश्व विख्यात है। इसका ऐतिहासिक महत्व इस बात में है कि इस क्रांति ने पूंजीपतियों और भूस्वामियों को राजनीतिक सत्ता को उखाड़ फेंका और उनकी राज मशीनरी को ध्वस्त कर डाला। इसने पहली बार सर्वहारा का आधिपत्य स्थापित किया। यह आधिपत्य मजदूरों और किसानों की साझी राजसत्ता और सरकार थी।
इसने बुर्जुआ यानी पूंजीवादी जनतंत्र की जगह सर्वहारा जनतंत्र की, यानी मजदूर वर्ग की सत्ता और सरकार को कायम किया। रूस की क्रांति ने मार्क्स और एंगेल्स की उस प्रस्थापना को सही साबित किया जिसमें उन्होंने कहा था कि मजदूर वर्ग की मुक्ति, मजदूर वर्ग द्वारा ही संभव है। अक्टूबर क्रांति ने यह प्रदर्शित किया कि पूंजीवाद का खात्मा और समाजवाद की स्थापना पूंजीवादी राज और पूंजीवादी तानाशाही को खत्म किए बिना और सर्वहारा यानी मेहनतकशों कि तानाशाही की स्थापना किए बिना संभव नहीं है।
इस क्रांति ने मानव इतिहास में पहली बार पूंजीपतियों और भूस्वामियों की संपत्ति के पवित्र अधिकारों को समाप्त कर दिया और इतिहास में पहली बार मजदूर वर्ग यानी समस्त मेहनत करने वाले कमरे अपने देश के स्वामी यानी मालिक बन गए। अक्टूबर क्रांति ने धरती के ऊपर सबसे न्याय पूर्ण, राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था कायम की, जो असली बराबरी और असली आजादी पर आधारित थी। इसके मानवीय आदर्शों ने मजदूर वर्ग और सारी प्रगतिशील मानवता को प्रोत्साहित और प्रभावित किया, ताकि एक न्याय पूर्ण भविष्य का निर्माण किया जा सके।
इस क्रांति ने दुनिया के छठे भाग को साम्राज्यवादी युद्ध की विभीषिका से बचाया और राष्ट्रों के मध्य शांति की बात की। रूस की समाजवादी क्रांति ने पूंजीवादी दुनिया की नीव हिला दी। दुनिया दो विरोधी व्यवस्थाओं में बंट गई। समाजवाद और पूंजीवाद के बीच का संघर्ष वैश्विक राजनीतिक केंद्र बिंदु बन गया। दुनिया में एक नये राज्य का जन्म हुआ जो बराबरी, मित्रता, सहयोग और भाईचारे के नए सिद्धांतों और आदर्शों पर आधारित था। मानवता ने एक नए युग में प्रवेश किया जो युद्ध और हमलों की नहीं, बल्कि अमन और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की बात करता था।
इस नई क्रांति ने एक नए मानव और एक नए दल का श्रीगणेश किया जो सभी प्रकार की अत्याचार और शोषण का खात्मा चाहता था। यह रुस की कम्युनिस्ट पार्टी थी जिसने रूस में क्रांति का सूत्रपात किया था। इस क्रांति का सूत्रपात करने वाले महान लेनिन ने कहा था कि “अक्टूबर क्रांति ने एशिया और दुनिया के लोगों को जगा दिया है और इसे दुनिया के क्रांतिकारी आंदोलन की बाढ़ का हिस्सा बना डाला।”
अनेकों देशों के लोग साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़े हुए। रूस की समाजवादी क्रांति की कामयाबी ने सुधारवाद के ऊपर “क्रांतिकारी सिद्धांत की विजय” स्थापित की। इसने सारे सुधारवादियों, सामाजिक और लफ्फाज क्रांतिकारियों को नंगा कर दिया। इसने मजदूर वर्ग को आधुनिक युग के केंद्र में स्थापित कर दिया और दुनिया के छटे भू-भाग पर समाजवादी समाज की स्थापना की। जमीन जोतने वालों को दे दी गई, समाज के उत्पादन, वितरण और विनिमय के सारे संसाधनों का स्वामी, पूरे समाज के लोगों को बना दिया गया।
सबको अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा, सब को मुफ्त इलाज, सबको रोटी कपड़ा मकान बिजली और सबको रोजगार अनिवार्य कर दिया गया। सारी जातियों की एकता कायम की गई। हजारों साल पुराने शोषण और अन्याय के सारे स्रोत और चोर दरवाजे बंद कर दिए गए। इतिहास में किसानों और मजदूरों को अपना भाग्य विधाता बना दिया गया, यानि कमेरा राजा बन बैठा। कितना असंभव और अविश्वसनीय लगता है यह सब। मगर यह सच है।
रुस की 1917 की क्रांति ने यह सब करके दिखाया। इस क्रांति ने रूस के सारे मेहनतकशों, मजदूरों, किसानों और औरतों को समानता और स्वतंत्रता मोहिया करायी। पुरुषों के सारे विशेष अधिकारों को खत्म कर दिया और सारी जनता को पूंजी के जुए से मुक्त कर दिया। लेनिन ने नारा दिया था कि “जालिमों और शोषकों के विरुद्ध संघर्ष किया जाए। जुल्म और शोषण की संभावना को ही मिटा दिया जाए।”
इस क्रांति ने सच में उत्पीड़कों, पूंजीपतियों और कुलकों का खात्मा कर दिया और मेहनतकशों को सच्ची आजादी और समानता प्रदान की। भारत की 75 वर्षों की आजादी के आलोक में देखें तो, यहां बहुत कुछ बेमानी एवं छलावा सा लगता है। यहां तो आजादी, जनतंत्र और समानता के दर्शन कोसों दूर तक दुर्लभ हैं। हमारी जनता को 7 नवम्बर 1917 की रूसी क्रांति से बहुत सारे सबक, सीख और अनुभव ग्रहण करने की जरूरत है। तभी जनता के असली जनतंत्र का उदय होगा। दुनिया में 1917 की रूसी क्रांति की विरासत और अहमियत आज भी बनी हुई है। आज 1917 की रूसी क्रांति की विरासत को हम सब को मिलकर आगे बढ़ाने की जरूरत है और उससे बहुत सारे सबक सीखने की जरूरत है।