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धर्म में मौजूद नहीं है हमारी सारी समस्याओं का समाधान 

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 मुनेश त्यागी 

      पिछले दिनों आरएसएस प्रमुख ने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने खुलकर कहा था कि धर्म में  समाज की सब समस्याओं का समाधान निहित है। इस प्रकार उन्होंने अपने एक वाक्य में ही जैसे भारत की अर्थ नीति और राजनीति के खात्मे की ही घोषणा कर दी कि जैसे आज भारत को किसी राजनीति या अर्थ शास्त्र की नीतियों की जरूरत नहीं है, बल्कि धर्म ही सब समस्याओं का निदान कर देगा और इस प्रकार सारी जनता को धर्म के इर्द-गिर्द ही जुटे रहना चाहिए।

     आमतौर से देश और दुनिया में जो भी तमाम तरह के भगवान हैं या शोषण, जुल्म, अन्याय, गैर बराबरी,  छोटे बड़े और ऊंच नीच की मानसिकता या सोच मौजूद हैं या तमाम तरह के अंधविश्वास, पाखंड, ढोंग और धर्मांताएं मौजूद हैं, वे सब सामंती और पूंजीवादी समाज व्यवस्थाओं और वहां की शासन सत्ताओं और सरकारों की मिलीभगत की वजहों से हैं, क्योंकि ये तमाम जन विरोधी शासक सत्ताएं, इन सारे धर्मों की पालक और पोषक हैं। यहां पर सारे भगवान जिनमें खुदा और गोड भी शामिल हैं और सारे धर्म प्रचारक, पुजारी, पादरी, मौलवी और जनविरोधी शोषक सत्ताएं और सरकारें हैं, वे सब मिलजुल कर एक दूसरे को मदद पहुंचती है, एक दूसरे का सहयोग करती हैं और वे सब मिलकर एक दूसरे का बिना किसी रोक-टोक के समर्थन देती हैं। 

      ये सारे धर्मों के लोग और उनके प्रचारक प्रसारक पूरी दुनिया को गुमराह कर रहे हैं कि यहां जो कुछ भी हो रहा है वह भगवानों की वजह से है, जो कि बिलकुल गलत है। इस सबका माकूल जवाब दिया जाना चाहिए। हकीकत यह है कि यहां जो कुछ भी हो रहा है, वह जन विरोधी नीतियों और जनकल्याणकारी नीतियों की वजह से हो रहा है। इनमें किसी भी धर्म या भगवान या देवी देवताओं का कोई हाथ नहीं है, क्योंकि ये सब देवीय शक्तियां दुनिया के किसी भी कौने में मौजूद ही नहीं हैं। ये सारे धर्म, केवल और केवल हसीन और काल्पनिक कल्पनाएं हैं क्योंकि हकीकत में ये तमाम दुनिया में मौजूद ही नहीं हैं , इसलिए ये सब कुछ भी करने की स्थिति में ही नहीं है और ये कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं कर सकतीं। ये अपने भक्तों का सिर्फ दैहिक, दैविक और भौतिक शोषण ही कर सकती हैं। इसलिए इस पूरी दुनिया में जनता के जो भी दुख दर्द, परेशानियां, शोषण, अन्याय, जुल्मों सितम, गैर बराबरी, ऊंच नीच की भावना, हिंसा और अपराध मौजूद हैं या जो भी समता, समानता, न्याय, बराबरी, भाईचारा और दोस्ती की भावनाएं मौजूद हैं, वे सब देश और दुनिया में मौजूद विभिन्न राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों की वजह से हैं। इन सब का होना या ना होना सामंती, पूंजीवादी या समाजवादी समाज व्यवस्थाओं के कारण है। इन सब के होने में, इन धर्मों या भगवानों का कोई योगदान नहीं है।

      यहीं पर कुछ सवाल पूछे जाने चाहिए। पूरी दुनिया में अभी तक सामंती व्यवस्था और समाज में इन धर्मों ने क्या किया है? पूंजीवादी व्यवस्था और समाजों में धर्म ने क्या किया है? वहां इन धर्मों ने जनता की कौन सी समस्याओं का हाल पेश किया है? इन सारे धार्मिक समाजों में वहां के शोषण, अन्याय और तमाम तरह के उत्पीड़नों और युद्धों का खात्मा करने में इन धर्मों ने कौन सी प्रगतिशीलता भूमिका निभाई है? पूरी दुनिया में सामंतों और पूंजीपतियों की युद्ध बिपाशा के खिलाफ, तमाम इन धर्मों ने क्या काम किया है? इस जन विरोधी और विश्व विरोधी प्रभुत्व और लूट और शोषण की पिपाशा को इन धर्मों द्वारा क्यों नहीं रोका गया और इन्हें रोकने में इन्होंने कौन सी योजनाएं पेश की हैं ? 

     चलो माना कि डेढ़ सौ साल पहले उनके पास कोई विकल्प नहीं था, इन तमाम शोषण जुल्म अत्याचार और भेदभाव को रोकने का, मगर समाजवादी व्यवस्था के संसार में आने के बाद इन तमाम धर्मों की दुनिया में क्या भूमिका रही है? क्या समाजवादी व्यवस्था के धरती पर उतरने के बाद इन तमाम धर्मों ने तमाम तरह के शोषण, जुल्म, अन्याय और भेदभावों को खत्म करने का कोई खाका दुनिया के सामने पेश किया? क्या इन्होंने समाजवादी व्यवस्था की कभी कोई मदद की थी? अगर नहीं, तो क्यों?

      इसका मुख्य कारण है कि इन धर्मों के पास ऐसा कोई कल्याणकारी विकल्प है ही नहीं, क्योंकि दुनिया के सारे धर्म अशिक्षा अज्ञानता, चालाकी, मक्कारी और अंधविश्वासों पर आधारित हैं। ये अपने अनुयाइयों का आध्यात्मिक शोषण करते हैं। इनका मेहनत करके खाने कमाने में कोई विश्वास नहीं है। इनका ज्ञान विज्ञान तर्क विवेक की दुनिया में कोई विश्वास नहीं है। उनके तमाम प्रचारकों को भली-भांति पता है कि यदि दुनिया में ज्ञान विज्ञान, शिक्षण, तकनीक, विवेक और तर्कशीलता का साम्राज्य कायम हो गया और यदि जनता अपने तमाम दुःख दर्दों, तकलीफों और समस्याओं का समाधान करने के मर्म को समझ गई तो, वह तत्काल इन सारे धर्मों के चंगुल से बाहर निकल जाएगी। इसलिए दुनिया के सारे धर्म, जनता को ज्ञान, विज्ञान, तर्क और विवेक की दुनिया से दूर रखना चाहते हैं और इन सब धर्मों का दुख दर्दों से पीड़ित जनता के कल्याण और भलाई में कोई विश्वास नहीं है।

       हकीकत यह है कि समाजवादी मुल्कों में धर्म की धर्मांध ताकतें अपने आप ही धराशाई हो गई हैं क्योंकि वहां तमाम जनता को अपना धर्म मानने की आजादी दी गई है। वहां धर्मांधताओं, अंधविश्वासों और पाखंडों को फूलने फैलने का मौका नहीं दिया गया है। अतः वे खुद-ब-खुद धराशाही होती चली गईं। वहां सांप्रदायिक ताकतों को धर्मांता, अंधविश्वास, पाखंडों और जादू टोनों का झूठा और काल्पनिक साम्राज्य खड़ा करने की इजाजत नहीं दी गई। वहां की सरकार और समाज द्वारा उनके काल्पनिक सवालों का माकूल और कारगर जवाब दिया गया और उन सारी परिस्थितियों का खात्मा कर दिया गया जो इन जन विरोधी, समाज विरोधी और देश विरोधी ताकतों को अपना अंधविश्वासी साम्राज्य कायम रखने और बढाये रखने का मौका देती हैं।

     कई पूंजीवादी मुल्कों में और समाजवादी व्यवस्था वाले देशों में वहां की किसान मजदूर की सत्ता और सरकारें, अपनी सारी जनता को मुफ्त और आधुनिक शिक्षा देकर उन सबको शिक्षित करती हैं, उन सब में ज्ञान विज्ञान तर्क विवेक और खोज की प्रवृत्तियां विकसित करती हैं, सब लोगों को रोजगार मोहिया कराती हैं, वे सब तरह के काल्पनिक भगवानों की पोल खोल देती हैं और उनकी हकीकत से अपनी पूरी जनता को अवगत करा देती हैं। क्योंकि वहां तमाम तरह के वर्गीय शोषण अन्याय जुल्मों सितम भेदभाव और अपराधों  को जन्म देने वाली परिस्थितियों का खात्मा कर दिया जाता है और पूरी जनता को रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाती हैं और उनकी तमाम समस्याओं का समाधान कर दिया जाता है। इस प्रकार वहां किसी प्रकार के भगवानों, देवी देवताओं या किसी प्रकार के धर्म की जरूरत नहीं रह जाती है। इस प्रकार सारे काल्पनिक भगवान और तमाम धर्म अपनी मौत मर जाते हैं।

      यहीं पर यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि इस दुनिया में जो भी कुछ अच्छा या बुरा होता है, उस सबका कोई ना कोई कारण होता है। इस दुनिया में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता है। इस सब अच्छे या बुरे के लिए, वहां की शोषक, अन्यायी व्यवस्थाऐं या जनकल्याणकारी सत्ताएं और सरकारें जिम्मेदार होती हैं। इस सब में किसी भी देवीय शक्ति का कोई रोल नहीं होता है।

       कोई हमें बताएं कि इस दुनिया में तमाम तरह के भगवानों, देवी देवताओं या तमाम धर्मों ने क्या किया है? क्या उन्होंने कोई मकान, विद्यालय, सड़क, अस्पताल या अदालत बनाई है? कोई कपड़ा बुना है? कोई वाहन बनाया है? कोई फसल उगाई है? कोई दवा बनाई है? या अन्याय और शोषण का खात्मा किया है? जी नहीं। इस दुनिया में जो भी कुछ सुनाई या दिखाई देता है, वह या तो प्रकृति की देन है, या फिर इस दुनिया के मजदूरों किसानों और मेहनतकशों ने अपनी मेहनत से बनाया है और इस दुनिया को सजाया और संवारा है। इसमें किसी भी देवीय शक्ति या धार्मिक ताकतों का कोई योगदान नहीं है।

      धर्म दुनिया की सबसे बड़ी जोक है। जनकल्याण का उसका कोई दर्शन नही है, वह अपने अनुयायियों का आध्यात्मिक शिकार करती है, उनका खून पीती है और बिल्कुल कमाल की बात ही है कि यह सारा विराट आध्यात्मिक शोषण, उन सबको दिखाई नहीं देता है।

    यहीं सबसे बड़ी रोचक और महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी धर्म, भगवानों या देवी देवताओं ने यहां के शोषण, अन्याय, अभावों और गरीबी के खात्मे की बात नहीं की है, इन सबके खिलाफ कोई मोर्चा नहीं खोला है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन भगवानों या धर्मों ने कभी भी, कहीं भी समता, समानता, आजादी, आपसी भाईचारे और जनवाद, गणराज्य, क्रांति और समाजवाद का समर्थन नहीं किया है। इन सब ने पूरी दुनिया में मिलकर, जनता के किसी कल्याणकारी दर्शन या कार्यक्रम को अंजाम नहीं दिया है।    

      अतः अब शोषक, बेईमान और धर्मांध और सांप्रदायिक ताकतों द्वारा यह प्रचारित प्रसारित करना कि मानवीय समस्याओं का संपूर्ण समाधान धर्म में निहित है, यह सबसे बड़ा झूठ है और यह सब धर्म और लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था के गठजोड़ के शोषक, अन्यायी, अंधविश्वासी और धर्मांध  स्वरूप और मान्यताओं को बरकरार रखने की बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा है। वास्तव में जनता के बीच धार्मिक नफरत फैलाकर और जनता की एकता तोड़कर, धर्म को आधार बनाकर जनता की किसी भी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। यह सब कोरा झूठ और भ्रम फैला कर इस लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था को मेहफूज और बरकरार रखने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।

      यहीं पर हमारी यह भी सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि हम धर्म की मित्रवत आलोचना करें, शत्रुतापूर्ण तरीकों से नहीं। हम उन्हें शर्मिंदा करें अपमानित नहीं। ऐसा करके ही अपनी धर्मभीरु जनता को सुधारा जा सकता है। यह करते हुए हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम धार्मिक भावनाओं को चोट न पहुंचाएं, बल्कि विवेक और शिक्षा का इस्तेमाल करें, जनता की एकता को बनाए रखें और अपने अभियान में जनता को धार्मिक पूर्वाग्रह ग्रहों से मुक्ति दिलाने के लिए व्यापकतम पैमाने पर धर्म विरोधी प्रचारकों तथा वैज्ञानिक शिक्षा के तौर तरीकों का इस्तेमाल करें और हम यह भी ध्यान रखें कि धर्म में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों की भावना को किसी प्रकार भी ठेस न पहुंचे। बस उनसे वैज्ञानिक और ज्ञान विज्ञान के तौर तरीकों से बात करनी चाहिए।

     आज के वैज्ञानिक युग में दुनिया के इस सबसे बड़े झूठ से बचे रहने की सबसे बड़ी जरूरत है। इसी के साथ-साथ समाज के जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, और समाजवादी स्वरूप को बनाए रखने की सबसे  ज्यादा जरूरत है। यह धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ही धर्म की शिकार जनता को धर्म के आध्यात्मिक शोषण से मुक्ति दिलाकर उसे आजाद रख सकता है और हमें याद रखना चाहिए कि धर्म, हमारी शोषित पीड़ित जनता की किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकता है।

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