अग्नि आलोक

आपके पैर के तलवों में है आपकी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान 

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          डॉ. विकास मानव 

शरीर विज्ञान के प्राचीन मर्मज्ञों ने मानव के सम्पूर्ण शरीर का संबंध पैरों के तलवों से बताया है। हृदय उदर में सूक्ष्म अवयवों का संबंध भी पैरों से है। इन मर्म-बिन्दुओं की जानकारी पाठकों की ज्ञानवृद्धि एवं रोग निवारण हेतु मैं यहां दे रहा हूँ.

1. प्रथम केन्द्र बिन्दु दक्षिण पैर के अंगुठे में स्थित है इसके दबाने से बिगड़ा हुआ प्रतिश्याय (जुकाम) ठीक होता है।

2. दूसरा मर्म केन्द्र पैर के अगले भाग में स्थित है, इसका संबंध फेफड़ों से है। इस मर्म केन्द्र को दबाने से फेफड़ो के विकार दूर होते है और निर्बल फेफड़े भली-भांति कार्य प्रारम्भ कर देते है।

प्राचीन काल में आश्रमों में निवास करने वाले ऋषि-मुनि महात्मा अथवा राजा भी काष्ठ की पादुका  खड़ाऊ पहनते थे। अंगूठे को शुक्र नाड़ी से संबंध होने के कारण खडाऊ काष्ठ की होने से विशेष लाभ होता है। आधुनिक काल में मुलायम तलवे के जूते या चप्पल पहनने वाले इस लाभ से वंचित रहते है और हृदय तथा फेफड़ो के रोगी प्रायः देखे जाते हैं।

3. वाम बायें पैर के तलवे के लगभग मध्य भाग में हृदय का केन्द्र बिन्दु है इस केन्द्र के दबाने से हृदय के विकार नष्ट होते है हृदय की निर्बलता तथा हृदय का स्तम्भन इसके दबाब से अधिक समय तक नियमित कार्य करता है।

4. वाम (बायें) पैर के मध्य से बाहर की ओर द्वितीय विशेष केन्द्र प्लीहा तिल्ली का है। रक्त का शोधन न होना, शरीर पीला पड जाना, भूख न लगना आदि विकारों में इस स्थान को दबाने से इन रोगों से छुटकारा मिलता है।

5. बायें पैर के तृतीय केन्द्र बिन्दु से शरीर के बायें फेफड़े के विकारों की निवृत्ति, तथा मध्य मस्तिष्क संबंधित है। इन ग्रन्थियों को दबाने से मस्तिष्क दुर्बलता, चक्कर आना, स्मृति विभ्रम तथा मस्तिष्क संबंधी अन्य दोषों का विनाश होता है।

6. इस केन्द्र बिन्दु का स्थान एड़ी के पास साइटिका से नीचे है इस केन्द्र का संबंध जननेन्द्रिय (मूत्रनली) से है। सुजाक तथा मूत्र विकार के अन्य रोगों में इस केन्द्र के दबाने से लाभ होता है।

7. तीसरा मर्म केन्द्र अंगूठे से नीचे की ओर स्थित है, इसका संबंध गले से है। इसको दबाने से गला दर्द, सूज जाना तथा ब्रण आदि विकारों का शमन होता है।

8. द्वितीय मर्म के नीचे बाहर की ओर चौथा मर्म स्थान है इसका सम्बन्ध दायें कन्धों से है। यहां दबाने से कंधों का दर्द तथा अन्य विकार शांत होते हैं।

9. सप्तम केन्द्र बिन्दु से दक्षिण की ओर बड़ी आंत की आकृति से मिलता हुआ स्थित है। इस स्थान को दबाने से तथा मसलने से बड़ी आंतों की सूजन आदि विकार नष्ट होते है।

10. नवम केन्द्र बिन्दु सप्तम केन्द्र बिन्दु से बायें ओर स्थित है। इसका सम्बन्ध गुर्दे से है। इसके दबाने से गुर्दे में होने वाले रोगों की निवृति होती है।

11. किडनी तथा पेशाब ग्रन्थि को मिलाने वाली मूत्रनली ग्यारहवें केन्द्र पर स्थित है। इसके दबाने से मूत्रनली की विकृति दूर होती है।

12. बारहवां केन्द्र बिन्दु पेशाब की ग्रन्थि है। इससे पेडू की हड्डी भी संबंधित है। इसके दबाने से पथरी के रोग या मूत्र विकारों में लाभ होता है।

13. तेरहवां केन्द्र बिन्दु नलिका के समान पूरे पैर में एड़ी को अलग करता है। इससे मेरूदण्ड की अस्थि का संबंध है। इससे मेरूदण्ड के विकारों का नाश होता है।

14. एड़ी के पिछले भाग में यह केन्द्र बिन्दु स्थित है। इसके दबाने से खूनी बवासीर में अत्यन्त शीघ्र लाभ होता है। खडाऊ पहनने से इस स्थान पर बराबर दबाब पड़ता है। इस कारण बवासीर का रोग नहीं होता।

इन चौदह केन्द्र बिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य बहुत से सूक्ष्म केन्द्र बिन्दु है। जिनका संबंध शरीर के विभिन्न स्थानों से है। दोनों पैरों में अंगूठा तथा दो पास खाली अंगुलियों के अगले भाग में मस्तिष्क से संबंधित केन्द्र है, जो कि मस्तिष्क की निर्बलता को दूर करते है।

     पहली दोनों अंगुलियों के मूल में आंखों से संबंधित केन्द्र स्थित हैं। शेष दोनो कनिष्ठका एवं कनिष्ठका के साथ वाली अंगुली के मूल में कानों से संबंधित केन्द्र बिन्दु है।

      सामान्य रूप से दोनों पादतलों के केन्द्र बिन्दु समान स्थिति रखते है। इनके अतिरिक्त वाम पादतल (बायें पैर के तलवे) में जो विशेष केन्द्र है, उन्हें नीचे वर्णित किया गया है।

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