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हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं….

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जीया इम्तियाज 

24 अक्टूबर 1775 वो तारीख थी जिस दिन मुग़ल बादशाह अकबर शाह दोम और उनकी बेगम लालबाई के यहां बहादुर शाह जफर की पैदाइश हुई थी….

….. अकबर शाह दोम के इंतेक़ाल के बाद जफर को 28 सितंबर, 1837 में बादशाहत मिली, …. यह दीगर बात थी कि उस वक्त तक देहली की सल्तनत बेहद कमजोर हो चुकी थी और मुगल बादशाहत नाम भर की ही रह गई थी…. लेकिन बहादुर शाह के मातहत जो भी रियाया आती थी, बहादुर शाह ने उस रियाया के साथ अच्छा रवैया रखकर अवाम को खुश रखने की कोशिश की…. 

….. जैसे दीवाली क़रीब है, तो इस मौके पर ध्यान आता है कि बहादुर शाह ज़फ़र के महल में दिवाली मनाने का बहुत दिलचस्प ज़िक्र ‘बज़्मे आख़िर’ में मिलता है, इस दिन बादशाह को सोने चांदी के सिक्कों से तौला जाता और फिर ये तमाम सिक्के गरीबों में दान कर दिये जाते थे, दिवाली पर बैलगाड़ी सजाने का मुकाबला भी बहादुर शाह करवाते, जो शख्स सबसे खूबसूरत बैलगाड़ी सजाता, उसे बादशाह की तरफ से इनाम दिया जाता था…

इसके अलावा बहादुर शाह को शेरो शायरी में बहुत दिलचस्पी थी, और वो खुद एक बहुत अच्छे शायर थे, उन्होंने “बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो ना थी..” और “लगता नही है जी मेरा उजड़े दयार में..” जैसी बेहतरीन गज़लें लिखीं

…. अपने बादशाह को उनकी रियाया बहुत पसंद करती थी, इस रियाया ने जब देखा कि पूरे देश मे अंग्रेज हावी हो रहे हैं, तो अपनी क्रांति का नेता बनने के लिये रियाया ने बहादुर शाह जफर को चुना, कि हमारा पेशवा बहादुर शाह जफर बने, कोई अंग्रेज हमारा पेशवा बने, ये हमें कुबूल नही….

…. उस दौर में जब बड़े बड़े राजे महाराजे अंग्रेजों की ताकत देखते हुए अंग्रेजों की गोद मे जा बैठे थे, तब 82 साल के बूढ़े और कमज़ोर हो चुके बहादुर शाह भी अगर चाहते तो अंग्रेजों की तरफ मिल सकते थे, लेकिन बहादुर शाह ने सताई जा रही गरीब जनता का साथ देने का रास्ता चुना, 

…. बिल आख़िर 1857 की क्रांति को अंग्रेजों ने बुरी तरह कुचल दिया, बहादुर शाह जफर की आंखों के आगे, चुन चुन कर उनके तमाम शहज़ादों का अंग्रेजों ने कत्ल कर डाला, लेकिन जफ़र ने उफ़्फ़ तक न की, जब उनके सामने उनके शहज़ादों के कटे सर लाये गए, तब भी उन्होंने फ़ख़्र के अंदाज़ में यही कहा कि हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान कर अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं….

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….. हिन्दोस्तान के इस बहादुर सपूत, बहादुर शाह जफर को सलाम …!!!

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