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सुदूर ब्रह्माण्ड में स्थित गैलेक्सीज के तारे हमारी पूर्व धारणाओं से कहीं बहुत अधिक बड़े !  

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लंबे समय से सुदूर गैलेक्सीज के तारे कैसे दिखाई देते हैं यह इंसानों के अध्ययन के प्रिय विषयों में शामिल रहा है ! पिछले 67 सालों से यही धारणा रही है कि ब्रह्माण्ड की असीमित गहराइयों में सुदूर गैलेक्सीज में स्थित तारों का संयोजन ठीक हमारी गैलेक्सी के अरबों तारों की तरह ही है ! लेकिन डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन यूनिवर्सिटी के नील बोर इंस्टीट्यूट के खगोल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने सूदूर अंतरिक्ष में अवस्थित गैलेक्सीज में स्थित तारों के बारे में शोधकर यह बताया है कि सुदूर अंतरिक्ष में स्थित गैलेक्सीज में स्थित तारे हमारी पूर्व धारणाओं के विपरीत आकार में बहुत ही विशाल और द्रव्यमान में बड़े हैं ! इन खगोल वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं तथा भौतिकविदों की टीम का यह शोध पत्र सुप्रतिष्ठित एस्ट्रोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

          वैज्ञानिक जगत में भी अभी तक यही माना जाता था कि सुदूर अंतरिक्ष में स्थित गैलेक्सी में तारों का वितरण और विन्यास ठीक हमारी गैलेक्सी में स्थित तारों की ही तरह है,लेकिन नए अध्ययन ने इसे खारिज कर दिया है ! इस खोज से बहुत सी घारणाएं बदलेंगी तो कई अनसुलझे और अनुत्तरित सवालों के जवाब भी मिल सकेंगे ! वैज्ञानिकों द्वारा तारों या Stars से संबंधित नए अध्ययन ने इस धारणा को तोड़ा है कि हमारी मिल्कीवे गैलेक्सी मतलब Milky Way से बाहर स्थित सूदूर स्थित गैलेक्सीज Too Much Distant Galaxies के तारे हमारी गैलेक्सी से कहीं बहुत-बहुत विशाल और आकार तथा द्रव्यमान में भी बहुत भारी और बड़े हैं !  

           हमारे खगोलविदों के पास ब्रह्माण्ड या  Universe के बारे में बहुत सी ऐसी अधूरी जानकारी है जिसे प्रमाणित होना अभी भी शेष है ! जैसे -जैसे वैज्ञानिक तौर पर नए और उन्नत उपकरण आविष्कृत होते जा रहे हैं,हमारी धरती के वैज्ञानिकों की जानकारी के आंकड़ों में भी क्रमशः सुधार होता जा रहा है,नये-नये हब्बल और जेम्स वेब दूरदर्शियों जैसे अतिशक्तिशाली दूरदर्शियों के निर्माण होने से सुदूर अंतरिक्ष स्थित कुछ तारों,निहारिकाओं और ब्लैकहोल्स की दूरियों, उनके आकार तथा उनकी बनावट को नये सिरे से निर्धारण और मापन भी होता जा रहा है तो कुछ नए पिंड और ब्लैक होल्स के निर्माण, सुपरनोवा,और गैलेक्सीज के अंत जैसी परिघटनाओं को भी देख पाना अब संभव हो पा रहा है ऐसे ही एक शोध में वैज्ञानिकों को सुदूर गैलेक्सी के तारों या Too Much Distant Galaxies के बारे में पता चला है कि उनके तारों का अब तक जितना भार या Mass of Stars समझा रहा था वे उससे कहीं बहुत ज्यादा भारी और विशाल हैं !

 अब तक वैज्ञानिकों ने 14लाख गैलेक्सीज खोजे !   

            हब्बल और अन्य दूसरे जेम्स वेब जैसे आधुनिकतम् टेलीस्कोप्स की मदद से खगोल वैज्ञानिकों ने अब तक ब्रह्माण्ड में फैली 14 लाख गैलेक्सियों को ढूंढ चुके हैं ! वैज्ञानिकों ने अपने शोध में यह भी पता लगाया कि सुदूर स्थित गैलेक्सी के केवल विशाल तारों का ही प्रकाश हमारी धरती पर आ पाता है ! अन्य छोटे तारों का प्रकाश हमारी धरती पर पहुंच ही नहीं पाता या इतना धुंधला पहुंचता है,जिसको हमारी आंखें देख ही नहीं पातीं !

  नये शोध के परिणाम पुरानी धारणाओं को ध्वस्त कर देंगे !         

        अभी हाल ही में इस नये खोज के नतीजों का हमारी ब्रह्माण्ड के बारे में सोच और हमारी पूर्वधारणाओं पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ेगा ! इस अध्ययन के प्रथम लेखक और नील बोर इंस्टीट्यूट के स्नातक छात्र अल्बर्ट स्नेपेन ने बताया कि तारों के भार से बहुत सारी जानकारी मिलती है जो नई जानकारी से बदल जाएगी ! अल्बर्ट स्नेपेन ने बताया कि यदि आप किसी तारे के भार में बदलाव करते हैं तो निश्चित रूप से आपको उस तारे से निकले सुपरनोवा और ब्लैक होल की संख्याओं को भी बदलना पड़ेगा ! इस शोध का मतलब यही है कि हमें अब बहुत सारी चीजों और अपने पूर्व स्थापित सिद्धांतों को भी बदलना पड़ सकता है ! जिनके बारे में हमने कभी पहले से अनुमान लगा लिया था क्योंकि सुदूर गैलेक्सीज बहुत ही अलग दिखाई देती हैं !

 अभी तक अतिशक्तिशाली टेलीस्कोप की भारी कमी थी !     

           पिछले काफी सालों से भी ज्यादा समय से शोधकर्ताओं ने यह मान कर रखा हुआ था कि दूसरी गैलेक्सीज में तारों का आकार और भार हमारी गैलेक्सी यानी हमारी आकाशगंगा की ही तरह होता होगा ! इसकी एक सीधी सी वजह यह थी कि उस समय हमारे पूर्वज वैज्ञानिक अपने पुराने और साधारण क्षमता वाले टेलीस्कोप से सुदूर स्थित गैलेक्सीज के तारे देख ही नहीं पाते थे जैसे वे अपने गैलेक्सी के तारे देखते थे ! दूसरी गैलेक्सीज अंतरिक्ष में अरबों प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं इसका प्रतिफल यह है कि उन गैलेक्सीज में स्थित केवल शक्तिशाली और अतिविशाल तारों की ही रोशनी पृथ्वी तक आ पाती है !                                            नये शोधकर्ताओं का कहना है कि सूदूर अंतरिक्ष में स्थित तारों के बारे में हम अंधेरे में तीर चलाने जैसे खोज करने का प्रयास करते रहे हैं जैसे हम बहते हुए हिमखंड का केवल उसके शीर्ष को ही देखकर उसे ही हम उसके आकार-प्रकार का अंदाजा लगा लेते थे ! वैज्ञानिक तथ्य यह है कि समुद्र में तैरते हिमखंड का केवल 1/10 भाग ही सतह के ऊपर दिखता है, जबकि उसका 9/10 वाला विशाल आकार वाला भाग समुद्र के पानी में रहता है,जो हमारी आंखों से सदा ओझल ही रहता है !

निर्मल कुमार शर्मा, ‘गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण तथा पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक, सामाजिक,आर्थिक,पर्यावरण तथा राजनैतिक विषयों पर सशक्त व निष्पृह लेखन ‘,प्रताप विहार,गाजियाबाद, उप्र,पिनकोड नंबर-201009,संपर्क -9910629632,ईमेल-nirmalkumarsharma3@gmail.com

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