नई दिल्ली: पहली बार जब वह स्पीकर बने थे… मैं संसद की कार्यवाही देखने में इसलिए रुचि रखता था क्योंकि स्पीकर की कुर्सी पर संगमा जी बैठे होते थे। किसी भी मसले पर उनका बॉडी लैंग्वेज आप याद कीजिए। एक छोटे निर्दोष बालक की तरह… सबके मन में उनका यह रूप बस गया था। उसका मूल कारण आदिवासियों के भीतर की निर्मलता थी। वह साल था 2012 और ये शब्द गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के थे। मोदी ने तब कहा था कि पीए संगमा 9 बार संसद के सदस्य रहे हैं, 18 साल केंद्र में मंत्री रहे, मेघालय प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे लेकिन कभी भी सीबीआई नहीं आई। एक दाग नहीं लगा। उस रोज कार्यक्रम में खूब तालियां बजी थीं। आज जब मेघालय विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजे आ गए हैं तो राज्य ही नहीं, पूरे देश को पीए संगमा याद आ रहे हैं। मेघालय की 60 सदस्यीय विधानसभा की 59 सीटों पर वोटिंग हुई थी। नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने सबसे ज्यादा 26 सीटें जीती हैं। 2013 में लोकसभा के पूर्व स्पीकर PA Sangma ने ही इस पार्टी की स्थापना की थी। आज उनके बेटे कोनराड संगमा (45) राज्य के मुख्यमंत्री हैं और एक बार फिर सरकार बनाने जा रहे हैं।
मोदी की वो बात सच हो गई
उस कार्यक्रम में मोदी ने पीए संगमा की जमकर तारीफ की थी। उसी दिन मोदी ने कहा था कि आदिवासी वाली निर्मलता हिंदुस्तान की संसद के अध्यक्ष पद पर विराजमान थी और क्यों न देश का आदिवासी यह चाहे कि कभी राष्ट्रपति भवन में भी… उस दिन खूब तालियां बजी थीं। बाद में यह बात सच साबित हुई और द्रौपदी मुर्मू के रूप में देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिली हैं। पीए संगमा को याद करते हुए एक बार पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा था कि उन्होंने संगमा जी से ही मुस्कान के साथ लोकसभा चलाना सीखा।
पीए संगमा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। 80-90 के दशक में जन्मे लोग आज 35-40 साल के होंगे और उन्हें याद होगा जब दूरदर्शन पर संसद की कार्यवाही प्रसारित होती थी तो छोटे कद के संगमा बड़े ही सहज तरीके से सदस्यों की बातों का जवाब देते थे। राजनीति में आने से पहले संगमा लेक्चरर थे। वह वकील और पत्रकार भी रहे। 1999 में कांग्रेस से अलग होने के बाद उन्होंने शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) बनाई थी।
वह हमेशा लोगों से मुस्कुराकर मिलते थे। किसान के बेटे संगमा 1996-98 के दौरान लोकसभा के अध्यक्ष थे। देश को आजादी मिलने के कुछ दिन बाद जन्मे पीए संगमा को विरोधी भी पसंद करते थे। उन्होंने भारतीय लोकतंत्र का समावेशी रूप देश के सामने रखा। वह कोयला और उद्योग मंत्री रहे। 2012 में उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए।
मेघालय में संगमा vs संगमा
2013 में हुए मेघालय विधानसभा चुनाव में इस नई नवेली पार्टी को केवल दो सीटें मिली थीं। हालांकि समय के साथ NPP ने प्रदेश की सियासत को नई दिशा दी। कोनराड ने गठबंधन सरकार चलाई। वैसे, मेघालय की सियासत बड़ी दिलचस्प है। यहां वर्षों से संगमा vs संगमा गुट की लड़ाई है। दूसरे संगमा यानी मुकुल संगमा 2010 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहे हैं। दोनों संगमा का दबदबा ऐसा है कि दूसरी पार्टियों को ज्यादा सफलता नहीं मिल पा रही है। मुकुल संगमा कांग्रेस से टीएमसी में आ गए हैं लेकिन चुनाव में उनकी पार्टी को केवल 5 सीटें ही मिलीं। भाजपा को दो और कांग्रेस को 5 सीटों पर जीत मिली है।
अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़ाई करने वाले कोनराड संगमा अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। समझा जा रहा है कि एनपीपी, भाजपा और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मिलकर नई सरकार बन सकती है। (तस्वीर 28 जून 2012 की है, जब राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार पीए संगमा भाजपा के नेताओं के साथ नामांकन दाखिल करने गए थे।)
संगमा की विरासत आगे बढ़ा रहे कोनराड
संगमा परिवार के कई लोग राजनीति में हैं। NPP ने इस बार संगमा परिवार के 8 लोगों को टिकट दिया था। कोनराड, उनके भाई जेम्स, उनके चाचा थॉमस, रिश्तेदार संजय और बोस्टन ने चुनाव लड़ा था। कुछ लोगों ने तो कांग्रेस और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। आज के समय में मेघालय में परिवारवाद कोई मुद्दा नहीं है। 2004 के अपने पहले चुनाव में कोनराड संगमा हार गए थे। हालांकि अब नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष कोनराड एक बार फिर मेघालय के मुख्यमंत्री का पद संभालने जा रहे हैं। वह अपने पिता पी.ए. संगमा की तरह एक ताकतवर राजनेता के रूप में उभरे हैं, जो हर चुनाव के बाद मजबूत होते जा रहे हैं। 2008 में पहली बार विधायक बने कोनराड संगमा ने फाइनेंस में एमबीए की डिग्री हासिल की है। मुकुल संगमा की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार में संगमा 2009 से 2013 तक विपक्ष के नेता थे। 2016 में अपने पिता, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा के निधन के बाद कोनराड एनपीपी के अध्यक्ष बने। (तस्वीर 11 जुलाई 2012 की है।)