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वाघ बकरी चाय की कहानी, 100 साल पहले यूं शुरू हुआ था जायकेदार मिठास का सफर

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कहते हैं कि अंग्रेज चले गए लेकिन चाय छोड़ गए। चाय…जिसके बिना कई लोगों के दिन की शुरुआत ही नहीं होती और अगर हो गई तो कुछ अधूरा सा लगता है। कुछ लोग परंपरागत चाय के शौकीन हैं जैसे कि अदरक वाली चाय, इलायची चाय, मसाला चाय तो कुछ ग्रीन टी, हर्बल टी, ब्लैक टी के। भारतीयों का चाय प्रेम तो अब पूरी दुनिया में मशहूर हो चुका है।

देश में चाय के कई ब्रांड मौजूद हैं, छोटे मोटे से लेकर नामी गिरामी तक। आज हम आपको बताने जा रहे हैं देश की टॉप 3 पैकेज्ड टी कंपनियों में से एक वाघ बकरी चाय (Wagh Bakri Tea) की कहानी। वाघ बकरी टी ग्रुप अपनी प्रीमियम चाय के लिए जाना जाता है। वैसे तो चाय कारोबार में इस ग्रुप के मालिक 1892 से हैं लेकिन भारत में इस ग्रुप की शुरुआत 100 साल पहले हुई थी। आज वाघ बकरी टी ग्रुप का टर्नओवर 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।

1892 से कैसे शुरू हुई कहानी
कहानी कुछ इस तरह शुरू होती है कि साल 1892 में नारणदास देसाई नाम के एंटरप्रेन्योर दक्षिण अफ्रीका में जाकर 500 एकड़ के चाय बागानों के मालिक बने। वहां उनका जुड़ाव महात्मा गांधी से हुआ। दक्षिण अफ्रीका में नारणदास देसाई ने 20 साल बिताए और चाय की खेती, प्रयोग, टेस्टिंग आदि सब किया। उस वक्त दक्षिण अफ्रीका भी भारत की ही तरह अंग्रेजों के अधीन था। नारणदास ने दक्षिण अफ्रीका में व्यवसाय के मानदंडों के साथ-साथ चाय की खेती और उत्पादन की पेचीदगियों को सीखा।

लेकिन खेल तब बिगड़ा, जब दक्षिण अफ्रीका में नारणदास देसाई नस्लीय भेदभाव के शिकार हो गए। पहले तो वह इस सबका मुकाबला और विरोध करते रहे लेकिन नस्लीय भेदभाव की घटनाएं बढ़ने पर नारणदास को दक्षिण अफ्रीका छोड़कर भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ा।वह कुछ कीमती सामान के साथ 1915 में भारत लौट आए। उनके साथ महात्मा गांधी का एक प्रमाण पत्र भी था, जो दक्षिण अफ्रीका में सबसे ईमानदार और अनुभवी चाय बागान के मालिक होने के लिए उन्हें गांधी की ओर से दिया गया था।

1919 में शुरू किया गुजरात चाय डिपो

भारत लौटने के बाद नारणदास ने दक्षिण अफ्रीका में हासिल किए गए चाय बिजनेस के अनुभव और बारीकियों के साथ सन 1919 में अहमदाबाद में गुजरात चाय डिपो की स्थापना की। 2 से 3 साल उन्हें अपनी चाय का नाम बनाने में लग गए। लेकिन फिर कारोबार ने रफ्तार पकड़ी और कुछ ही साल में वह गुजरात के सबसे बड़े चाय निर्माता बन गए।

वाघ बकरी चाय का लोगो एकता और सौहार्द का प्रतीक है। इस लोगो में दिखने वाला बाघ उच्च वर्ग और बकरी निम्न वर्ग के प्रतीक हैं। लोगो में दोनों को एकसाथ चाय पीते हुए दिखाना अपने आप में एक बड़ा सामाजिक संदेश है। सन 1934 में इस लोगो के साथ ‘गुजरात चाय डिपो’ ने ‘वाघ बकरी चाय’ ब्रांड लॉन्च किया।

पैकेज्ड चाय लॉन्च करने वाली पहली भारतीय कंपनी


1980 तक गुजरात टी डिपो ने थोक में और 7 खुदरा दुकानों के माध्यम से रिटेल में चाय बेचना जारी रखा। यह पहला ग्रुप था जिसने पैकेज्ड चाय की जरूरत को पहचाना। लिहाजा ग्रुप ने 1980 में गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड को लॉन्च किया। कंपनी ने कोलकाता में एक कार्यालय भी शुरू किया, जहां नीलामी केंद्रों पर चाय की खरीद की निगरानी और जांच की गई। साल 2003 तक वाघ बकरी ब्रांड गुजरात का सबसे बड़ा चाय ब्रांड बन चुका था।

हर रोज कितनी चाय बनाता है ग्रुप
वाघ बकरी ग्रुप की मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज की क्षमता 2 लाख किलो प्रतिदिन और सालाना 4 करोड़ किलो चाय के उत्पादन की है। ग्रुप का हेडक्वार्टर अहमदाबाद में है। ग्रुप के प्रोफेशनल्स भारत में 15000 से ज्यादा चाय बागानों में से बेहतरीन चाय को चुनते हैं। डायरेक्टर खुद चाय को टेस्ट करते हैं।

40 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट

देश ही नहीं विदेश में भी वाघ बकरी की चाय बिकती है। वाघ बकरी चाय का एक्सपोर्ट आज 40 से ज्यादा देशों में हो रहा है। आज ‘वाघ बकरी चाय’ देश के करीब 20 राज्यों में अपना कारोबार फैला चुकी है। कंपनी की बिक्री का 90 फीसदी टीयर 2 और टीयर 3 शहरों से आता है। पूरे देश में वाघ बकरी टी लाउन्ज भी खुल चुके हैं। वाघ बकरी चाय के 30 लाउंज और कैफे हैं।

कितने प्रॉडक्ट
वाघ बकरी टी ग्रुप आज वाघ बकरी, गुड मॉर्निंग, मिली और नवचेतन ब्रांड के तहत विभिन्न तरह की चाय की बिक्री करता है। जैसे ‘वाघ बकरी- गुड मॉर्निंग टी’, ‘वाघ बकरी- नवचेतन टी’, ‘वाघ बकरी- मिली टी’ और ‘वाघ बकरी- प्रीमियम लीफ टी आदि। कंपनी आइस टी, ग्रीन टी, ऑर्गेनिक टी, दार्जिलिंग टी, टी बैग्स, फ्लेवर्ड टी बैग्स, इंस्टैंट प्रीमिक्स आदि की भी पेशकश करती है।

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