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 रणबीर सिंह डूंडलोद का आकस्मिक निधन

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*शैलेन्द्र अवस्थी ‘शिल्पी’

देश के जाने माने रंगकर्मी, निर्देशक, नाट्य एवं फ़िल्म अभिनेता,लेखक एवं इतिहासकार रणवीर सिंह का आज जयपुर में निधन हो गया। वे 93 वर्ष के थे। जयपुर के राजस्थान अस्पताल में अभी 4 दिन पहले ही उनकी जटिल एंजियोप्लास्टी हुई थी।                           

7 जुलाई 1929 को डुंडलाड राजस्थान में जन्मे रणवीर सिंह ने मेयो कॉलेज से प्रारंभिक शिक्षा के बाद कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से 1945 में बीए किया। रंगमंच और फ़िल्म में प्रारंभ से ही उनकी रुचि थी और वे राजघराने के बंधन तोड़ कर 1949 में मुम्बई चले गए जहां उन्होंने बी आर चोपड़ा की फ़िल्म शोले में अशोक कुमार और बीना के साथ तथा चांदनी चौक में मीना कुमारी और शेखर के साथ अभिनय किया। 1953 में वे जयपुर लौटे और जयपुर थिएटर ग्रुप की स्थापना की जिसमे अनेक नाटकों का निर्देशन किया,अभिनय एवं प्रकाश व्यवस्था भी संभाली।

1959 में वे कमला देवी चट्टोपाध्याय के बुलावे पर दिल्ली चले गए जहां उनकी सरपरस्ती में उन्होंने “भारतीय नाट्य संघ” की स्थापना की जो इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिट्यूट से सम्बद्ध था। यहाँ उन्होंने “यात्रिक” थिएटर ग्रुप के साथ अनेक नाटक किये । उन्होंने अनेक टीवी धारावाहिकों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं जिनमें अमाल अल्लाना के निर्देशन में “मुल्ला नसरुद्दीन”

अनुराग कश्यप के निर्देशन में “गुलाल” एवं संजय खान के निर्देशन में “टीपू सुल्तान की तलवार” प्रमुख हैं।अभिनय और निर्देशन के अतिरिक्त उन्होंने अनेक नाटक लिखे जो हज़ारों बार खेले गए हैं,इनमें प्रमुख हैं:-पासे, हाय मेरा दिल,सराय की मालकिन,गुलफाम,मुखौटों की ज़िंदगी, मिर्ज़ा साहब,अमृतजल, तन्हाई की रात। उन्होंने कई विदेशी नाटकों के भारतीय रूपांतरण भी किये। वे इतिहास के गहरे अध्येता थे। रंगमंच के इतिहास को उन्होंने वाजिद अली शाह ,पारसी रंगमंच का इतिहास,

इंदर सभा,संस्कृत नाटक का इतिहास जैसी पुस्तकों से समृद्ध  किया साथ ही नाटकों के कई विश्व कोषों में भारतीय रंगमंच की उपस्थिति दर्ज कराई। वे मॉरीशस में सांस्कृतिक सलाहकार भी रहे तथा राजस्थान संगीत अकादमी के उपाध्यक्ष रहे। उन्होंने रंगमंच के आदान प्रदान हेतु इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया,रूस,जर्मनी,

फ्रांस,बंगलादेश, नेपाल आदि देशों का कई बार भ्रमण किया। 

*इप्टा से जुड़ाव*                                  

1984 में इप्टा के पुनर्गठन की प्रक्रिया में वे इप्टा से जुड़े और 1985 में आगरा में आयोजित राष्ट्रीय कन्वेंशन में शामिल हुए तथा 1986 में हैदराबाद के राष्ट्रीय सम्मेलन में उपाध्यक्ष चुने गए तथा 2012 में ए के हंगल के निधन के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। इप्टा के हर राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यक्रम में नौजवानों जैसी ऊर्जा के साथ शामिल होते थे। उनके मार्गदर्शन में इप्टा की सक्रियता निरंतर बढ़ती रही। रंगमंच में नए नाटकों और नए प्रयोगों को वे जरूरी मानते थे।

*मेरे अभिनेता पुत्र अंशुल अवस्थी  को उनका स्नेह , आशीर्वाद व  दिशानिर्देश सदैव मिलते रहे  जिसकी बदौलत वह आज फिल्मौ में काफी व्यस्त है ।* 

अपने जिंदादिल, खुश मिजाज मित्र व साथी के निधन पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए परिवार और मित्रों के दुख में शामिल हूँ । 

*मुझे अत्यधिक दुख इस बात का भी है कि अस्वस्थ होने के कारण मैं उनकी अन्तिम यात्रा में सम्मिलित होने व दर्शन करने से बंचित रहा ।*

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