पूनम मसीह
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर विभिन्न सर्वे कंपनियों का यह एक एग्जिट पोल है। जिसकी सहायता से जनता और नेताओं ने तीन दिसंबर को आने वाले रिजल्ट का अनुमान लगाना शुरू कर दिया है। बाकी तीन दिसंबर को यह साफ हो जाएगा कि भाजपा और कांग्रेस को कितनी-कितनी सीटें मिलती हैं।
छत्तीसगढ़ में पांच संभाग हैं। जिसमें सरगुजा और बस्तर संभाग की सीटों का मामला सबसे ज्यादा रोचक रहता है। यह भी कहा जाता है कि इन दो जगहों पर जिस पार्टी की ज्यादा सीटें आती हैं वह ही सरकार बनाती है।
बस्तर में 12 विधानसभा सीट है और सरगुजा में 14 सीटें हैं। जो निर्णायक भूमिका निभाती हैं। लेकिन इस बार चुनाव के दौरान यह खबरें भी आई थी कि ऐसा नहीं है कि इन दो संभागों द्वारा सरकार बनती है। फिलहाल बस्तर से आबकारी मंत्री कवासी लखमा, पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज और सरगुजा संभाग से डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की किस्मत का ताला तीन दिसंबर को खुलेगा।
सीटों में कमी का अनुमान
एक्जिट पोल में जिस तरह के परिणाम आए हैं उससे यह तो साफ दिखाई दे रहा है कि पिछली बार भाजपा जहां 15 सीटों पर ही निपट गई थी। इस बार 15 की दोगुनी सीटें तो लगा रही है। वहीं कांग्रेस जो 63 सीटें के साथ सत्ता में आई थी। उसकी सीटों में कमी आ रही है। सिर्फ चाणक्य टुडे ने ही साफ-साफ 57 सीटें कांग्रेस को दी है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि प्रदेश की जनता में सरकार को लेकर एंटी इनकम्बेंसी थी।
चुनाव से लगभग तीन महीने तक छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोगों को लग रहा था कि कांग्रेस एकतरफा चुनाव जीत जाएगी। लेकिन चुनाव की तरीखे जैसे-जैसे नजदीक आई और भाजपा के बड़े नेता समेत पीएम मोदी का आने के साथ ही चुनाव का रुझान बदलने लगा। अब सर्वे में उसका नतीजा भी देखने को मिल रहा है।
वायदों का अंबार
चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस ने जनता को लुभाने के लिए कई घोषणा की थी। जिसमें किसानों की कर्जमाफी से लेकर, धान का समर्थन मूल्य बढ़ाना, 200 यूनिट बिजली फ्री और महिला वोटर्स के लिए सिलेंडर के दाम में कमी और मासिक भत्ता देने जैसी बात शामिल थी।
इतने वायदों के बाद भी बस्तर संभाग में इस बार कांग्रेस पिछली बार की तरह 12 में 12 सीटें नहीं ला पा रही है। यहां कड़ी टक्कर के बीच 7-5 की लड़ाई रहेगी। इस बार सीट पर आती कमी को देखते हुए हमने बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता से इस बारे में बात की।
आदिवासी आंदोलन की अहम भूमिका
कांग्रेस की सीट में आती कमी पर उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर टिप्पणी की। जिसमें उनका कहा था बस्तर में इस बार धान का असर ज्यादा नहीं दिखाई दिया। सरकार विकास के मामले में भी ज्यादा एक्टिव नहीं दिखाई दी। कई काम अभी तक नहीं हुए। जिसमें सड़कों के हाल से सभी वाकिफ है। कर्मचारी वर्ग भी सरकार से बहुत ज्यादा खुश नहीं था।
इसके अलावा आदिवासियों पर बात करते मनीष गुप्ता कहते हैं कि “बस्तर आदिवासी बहुल इलाका है। आज यहां के अंदरुनी इलाकों में आदिवासी अपनी मांगों को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं। सिलगेर वाली घटना को दो साल हो गए हैं। लेकिन सरकार की तरफ से इन पर कभी न तो कोई चर्चा हुई न ही किसी जन-प्रतिनिधि ने उनसे मिलने की कोशिश की। जिसका गुस्सा अंदरुनी इलाकों में देखने का मिला है”।
साथ ही धर्मातरण वाले मामले में भी सरकार की तरफ से कुछ नहीं किया गया। जिसका सीधा असर ईसाई वोटरों के द्वारा देखने के मिला है। यह मुख्य कारण है कांग्रेस की सीट कम होना का।
भाजपा का हिंदुत्व का एजेंडा नहीं चल पाया
वहीं सरगुजा के पत्रकार चंद्रकांत परगिर बस्तर से थोड़ी अलग कहानी बता रहे हैं। उनका कहना कि यहां का साइलेंट वोटर कमाल करेगा। वह कहते हैं कि सरकार की नीतियां और कर्जमाफी गांव के वोटर्स को ज्यादा लुभाने में कारगार साबित होगी।
चंद्रकांत कहते हैं कि “भाजपा ने राम के नाम पर अन्य राज्यों में हिंदू वोटर को अपने साथ लिया, वहीं छत्तीसगढ़ में स्थिति थोड़ी अलग है। कांग्रेस ने पिछले पांच सालों में भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडें को अपनी तरफ कर लिया है”।
कांग्रेस ने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान भगवान राम से संबंधित कई कार्यक्रम कराए। कोरिया जिले से बस्तर तक राम वन गमन पथ बनाया। जिसने हिंदू वोटर को सोचने के लिए मजबूर किया है। जिसका असर देखने के मिलेगा। उनका मानना है कि चाणक्य एग्जिट पोल के नतीजे हमेशा सही होते हैं। इस बार 57 सीटें दी है तो कुछ ज्यादा ही सीटें कांग्रेस को मिलेगी।