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सेवा, चुनावों और आयोजन के चक्कर में प्रदेश का काम ठप्‍प 

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राजनीति का स्‍तर गिराते विजय शाह*

मध्यप्रदेश में वर्ष 2018-2023 के बीच की पंचवर्षीय समाप्त होने को हैं। अगले साल दिसंबर में फिर से विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। लेकिन अगर हम इस पंचवर्षीय में शिवराज सरकार के कार्यकाल का आंकलन करें तो हम पायेंगे कि इस पूरे चार सालों में प्रदेश की जनता को सिवाय मंहगाई, भ्रष्टाचार और गुमराह करने के अलावा कुछ नहीं मिला। कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिवस पर सुशासन के नाम पर तो कभी सेवा पखवाड़ा के नाम पर प्रदेश की जनता को केवल मूर्ख बनाया गया। यही नहीं अगर हम इस पूरे कार्यकाल का एनालिसिस करें तो हम पाते हैं कि पूरे चार साल केवल चुनाव कराने, विधायकों की खरीद-फरोख्त और निकाय चुनाव जीतने की कोशिशों में ही बीत गये। जिस उद्देश्य के साथ प्रदेश सरकार, नगरीय निकाय सरकार का गठन किया गया, वे उद्देश्य दूर-दूर तक पूरे होते नहीं दिखाई दिये हैं और आगे भी पूरे होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।

*आयोजनों पर सीमित हो गई है सरकार*

भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सरकार को सत्ता में दोबारा काबिज हुए लगभग दो साल से अधिक समय बीत गया है। लेकिन दो सालों में सरकार ने केवल आयोजनों के माध्यम से खुद का डंका पीटा। इन आयोजनों से जनता को तो कोई लाभ नहीं मिला, लेकिन यह तय है कि आयोजनों के माध्यम से सरकार और सरकार के आला अफसरों ने जबरदस्त माल कूटा। ऐसे एक नहीं अनेक आयोजनों की सूची इन दो सालों में देखने को मिल जाएगी जिनमें करोड़ों रुपये फूंक दिये गये। उसके बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व उनके कैबिनेट के मंत्री महोदय का कामकाज का रिजल्ट शून्य है।

*कभी नगरीय निकाय तो कभी उपचुनाव*

पांच सालों में प्रदेश की जनता ने लगभग चार साल तो चुनाव में ही बीता दिये। सरकार को जहां जनता की सेवा, उनकी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी और शासकीय योजनाओं के माध्यम से उन्हें लाभ दिलाने की दिशा में काम करना था। लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिखाई दिया। पहले विधायकों के खरीद-फरोख्त में अति व्यस्त भाजपा के नेताओं ने प्रदेश में सुचिता के साथ चल रही कमलनाथ सरकार को धोखेबाज ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर गिरा दिया। उसके बाद खुद सत्ता में बैठे तो तब से लेकर अब तक आये दिन प्रदेश में चुनावों का सिलसिला ही चल रहा है। कर्मचारी से लेकर चुनाव आयोग तक सरकार के इस कार्यशैली से बुरी तरह से परेशान है। यही नहीं चुनाव जीतने के लिए प्रदेश सरकार ने दाम, दंड, भेद का उपयोग करते हुए जनता के टैक्स के पैसों को पानी की तरह बहाया। बावजूद उसके भाजपा नगरीय निकायों में अपना दमखम कायम रखने में नाकामयब रही।

*सेवा पखवाड़ा में घुटन सी महसूस कर रहे अधिकारी*

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन पर इस वर्ष भाजपा ने सेवा पखवाड़ा के रूप में मनाने का निर्णय़ लिया। यह पखवाड़ा 17 सितंबर से लेकर 2 अक्टूबर तक प्रदेश के सभी जिलों में चल रहा है। बताया जा रहा है कि सेवा पखवाड़ा जिलों के अफसरों के लिए गले की हड्डी बन गया है। न तो अफसर इसे निगल पा रहे हैं और न ही उगल पा रहे है। पिछले दिनों डिंडौरी जिले में पहुंचे मुख्यमंत्री ने डिंडौरी के एक अफसर को लापरवाही के कारण तुरंत संस्पेड करने के निर्देश दे दिये। मुख्यमंत्री का यह रवैया देख बाकी जिलों के अफसर अब घुटन सी महसूस कर रहे है। सभी इस भय में है कि कहीं उनके जिले में सेवा पखवाड़ा कार्यक्रम के दौरान कोई नागरिक उनकी शिकायत न कर दे। यही कारण है कि सभी अधिकारी अपना दफ्तर और कामकाज बंद करके सेवा पखवाड़ा को सफल बनाने में जुटे हुए हैं।

*आयोजनों से नहीं जीते जाते चुनाव*

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि आगामी एक साल में प्रदेश में विधानसभा चुनाव है। कोई भी चुनाव आयोजनों के माध्यम से नहीं जीते जाते। बल्कि चुनाव जीतने के लिए मैदानी स्तर पर जाकर जनता की सेवा और उनकी समस्याओं को निराकरण करना होता है। लेकिन भाजपा के विधायक मंत्री ऐसा कुछ भी करते नहीं दिखाई पड़ रहे हैं।

*राजनीति के स्‍तर गिराते विजय शाह*

विजय शाह जैसे वरिष्ठ मंत्री कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ऊपर व्यक्तिगत कटाक्ष करके न सिर्फ अपनी बल्कि भाजपा की छवि को भी धूमिल कर रहे है। इस तरह की अभद्र टिप्पणी शाह के आचरण पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। सिर्फ शाह ही नहीं भाजपा में ऐसे कई नेता मंत्री है जो इस तरह से अभद्र टिप्पणी करके मीडिया और जनता के बीच चर्चित होना चाहते हैं। शादी को लेकर जो टिप्‍पणी विजय शाह ने राहुल गांधी पर की क्‍या संतान को लेकर ऐसी टिप्‍पणी प्रधानमंत्री पर भी करेंगे विजय शाह?

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