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हरियाणा में भी ऐसी सीटें जिन पर इस चुनाव में भी सबकी नज़र बनी रहेगी

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जगदीप सिंह सिंधु 

चुनावों में हर प्रदेश में विधानसभा या लोकसभा की कुछ सीटें महत्वपूर्ण रहती हैं, जिन पर कई दिग्गज नेताओं के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव या साख का सवाल बना रहता है। कुछ सीटों के बारे में माना जाता है कि वो पारिवारिक विरासत की सीट है, और कुछ अन्य परम्परागत विचारधारा समर्थित आधार पर मानी जाती है।

हरियाणा में भी अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसी सीटें हैं जिनके बारे में इस चुनाव में भी सबकी नज़र बनी रहेगी। हालांकि अभी प्रदेश की किसी भी सीट पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा किसी भी पार्टी के द्वारा नहीं की गयी है लेकिन फिर भी विगत व वर्तमान स्थितियों के आधार पर कई सीट विशेष रूचि का केंद्र हैं। 

आरम्भ सिरसा जिले से किया जाये तो वहां पर डबवाली की सीट पर चौटाला परिवार के सदस्य आदित्य चौटाला भाजपा के टिकट पर फिर से भाग्य आजमाएंगे। 2019 में वो कांग्रेस के अमित सिहाग से हार गए थे। 2014 में पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की माता नैना चौटाला इनेलो पार्टी से यहां से विधायक बनी थी। अब जजपा से दिग्विजय चौटाला वहां चुनौती देने उतर रहे हैं।

अगली सीट ऐलनाबाद की है जहां से इनेलो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अभय सिंह चौटाला विधायक हैं। 2021 के उपचुनाव में यहां अभय चौटाला को कड़ा मुकाबला गोपाल कांडा के भाई विनोद कांडा ने भाजपा के प्रत्याशी के रूप में दिया था। यह सीट चौटाला परिवार अपनी विरासत की सीट मानता है।

रानिया सीट से रणजीत सिंह चौटाला 2019 में निर्दलीय विधायक बने थे और लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होकर 2024 का लोकसभा चुनाव हिसार से लड़ा लेकिन कांग्रेस के जयप्रकाश से हार गए। अब उन्होंने एलान कर दिया कि अगर भजपा ने उनकी टिकट काटी तो भी वो विधान सभा चुनाव यहां से जरूर लड़ेंगे।

गोपाल कांडा कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के कार्यकाल में गृह राज्य मंत्री रहे, (एक समय गीतिका शर्मा विमान परिचारिका आत्महत्या केस से चर्चा में भी रहे थे।) वे अब सिरसा शहरी सीट पर चुनाव में उतरेंगे।    

हिसार जिले में भजन लाल परिवार की सीट आदमपुर में अबकी बार चुनौती कुलदीप बिश्नोई को उनके ही समाज में मिल रही है। यह सीट भजन लाल परिवार की पारम्परिक विरासत की सीट मानी जाती है। कुलदीप बिश्नोई अपने परिवार के लिए कितनी टिकट भाजपा से ले पाते हैं यह भी रोचक बना हुआ है।

अगली सीट नारनौंद की है, जहां से भाजपा के पूर्व वित्त मंत्री रहे के. अभिमन्यु की है। जहां अबकी बार फिर उनको बड़ी चुनौती कांग्रेस के प्रत्याशी से मिलना तय है। 2019 में के. अभिमन्यु चुनाव हार गए थे। जजपा से 2019 में जिले की 4 सीटों पर जीते हुए विधायक अब पार्टी छोड़ चुके हैं। जजपा के लिए कोई उम्मीद यहां बची नहीं।

जिंदल परिवार के भाजपा में शामिल होने के बाद अब हिसार शहर की सीट पर वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री कमल गुप्ता की टिकट काटने की चर्चा जोरों पर है। हिसार की सीट जिंदल परिवार की पारिवारिक सीट मानी जाती है।

जींद जिले में सबसे कड़ा मुकाबला उचान की सीट का होगा जो हरियाणा के दिग्गज नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह की पारंपरिक सीट मानी जाती है। अब चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेन्द्र सिंह जो हिसार से भाजपा के पूर्व सांसद रहे और जिन्होंने लोक सभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़ कर कांग्रेस का दामन पकड़ लिया था, चुनाव में उतरेंगे। देखना होगा के हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे दुष्यंत चौटाला अबकी बार इस सीट से क्या गुल खिला पाएंगे या अपने लिए फिर कोई और सुरक्षित सीट तलाश करेंगे।   

रोहतक जिले में महम की सीट जो कभी देवी लाल और लोकदल की राजनीति का केंद्र रही। जहां से देवी लाल ने 3 बार चुनाव जीता दो बार ओप्रकाश चौटाला चुनाव में खड़े हुए लेकिन दोनों बार चुनाव स्थगित हो गए। मशहूर महम कांड के बाद कांग्रेस के आनंद सिंह दांगी की सीट मानी गई, जहां दांगी 2019 में निर्दलीय बलराज कुंडू से हार गए।

भूपेंद्र हुड्डा की परम्परागत सीट गढ़ी संपला किलोई है। जहां से अबकी बार भूपेंद्र हुड्डा को कौन चुनौती देगा, यह देखना भी रोचक होगा।  

भिवानी जिले में तोशाम की सीट को बंसी लाल परिवार की विरासत की सीट माना जाता है। जिस पर बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी विधायक बनती रहीं। लेकिन अब भाजपा का दामन थाम कर किरण चौधरी राज्यसभा चली गईं तो उनकी बेटी पूर्व सांसद श्रुति के इस सीट पर भाजपा की टिकट पर चुनाव में उतरने की चर्चा तेज है। लेकिन अबकी बार इस हलके में लोगों का विचार परिवर्तन के लिए बना हुआ दिखाई देता है। कांग्रेस यहां से अब बंसी लाल परिवार के बाहर किसी को प्रत्याशी बनाती है। तो मुकाबला यहां अत्यंत रोचक होने वाला है।

कुल मिलाकर हरियाणा के इन हमेशा से चर्चित सीटों पर रहेगी सबकी नज़र।

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