आर_पी_विशाल
कोई मनुष्य नास्तिक है और वह किसी ईश्वर या धर्म के प्रति कतई आस्थावान नहीं है। इसका अर्थ यह लड़ाई उस व्यक्ति और ईश्वर के बीच की आपसी लड़ाई है यहां लोगों की भावनाएं क्यों आहत हो जाती है? यदि ईश्वर, अल्लाह, गॉड,भगवान आदि है और उनके बिना यदि एक पत्ता भी नहीं हिलता तो उक्त व्यक्ति को सजा ईश्वर स्वयं देगा। लोग क्यों आग बबूला हुए जाते हैं?
ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो उसकी रक्षा करना मनुष्य के बूते की बात नहीं हो सकती है। मनुष्य तभी अपने धर्म और ईश्वर की रक्षा करना चाहता है यदि धर्माचार्य जानते है कि ईश्वर जैसी कोई शक्ति संसार में विधमान नहीं है बल्कि एक नियंत्रणकारी विचार थोपकर ईश्वर के नाम पर डराकर, धमकाकर लोगों का एक समूह खड़ा कर उनपर राज करने भर के मकसद का नाम ही धर्म रक्षा है?
अन्यथा आप स्वयं सोचिये जिसने दुनिया बनाई, जिसकी मर्जी से कुछ नहीं होता, वह किसी नास्तिक के मन, मस्तिक में यह विचार कैसे भर सकता है कि तू ईश्वर के खिलाफ होगा? यदि वह पथ भ्रष्ट है तो ईश्वर उसको स्वयं सजा देता। यदि धर्म रक्षक गलत है तो ईश्वर उन्हें भी सजा देता मगर यहां ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। यहां समूहों में बंटे सब के सब लोग ईश्वर के लठैत बनकर घूम रहे हैं।
लोगों की छोटी सी बात पर भावनाएं आहत हो जाती है जिसके चलते कुछ तो गला रेत देते हैं, कोई मुहँ पर चेप देते हैं। कुतर्क मत कीजिए कि मां, बाप का अपमान बच्चा कैसे बर्दाश्त करेगा? माँ-बाप यथार्थ हैं यहां विषय सर्वशक्तिमान का है। यदि कोई ईश्वर, भगवान, अल्लाह, खुदा, गॉड, देवता इत्यादि को नकार रहे हैं तो यह व्यक्ति और ईश्वर की आपसी लड़ाई है कौन शक्तिशाली है उनको स्वयं साबित करने दें? #आर_पी_विशाल।
दार्शनिक, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, शिक्षाशास्त्री और लेखक बर्ट्रेंड आर्थर विलियम रसेल ने कहा है कि किसी भी किताब को पढ़ने के दो मकसद होते हैं। एक यह कि आपको उसमें आंनद आता है, दूसरा यह कि आप उसे पढ़कर डींगे मार सकते हो।
धार्मिक किताबों को सर्वोपरि और सम्पूर्ण मानने वालों को मैँ यही समझता हूं कि ये ढींगे मारने के लिए ही उसे पढ़ते हैं। दूसरा इन्हें अन्य धर्म को जानने, पढ़ने की भी बहुत इजाजत या रुचि नहीं होती है इसलिए सभी में तुलनात्मक नजरिया भी अख्तियार नहीं कर सकते।
सबसे बड़ी बात यह कि इन्हें यकीन है हमारी पुस्तक हमारे वाले ईश्वर ने लिखी है। मजेदार बात यह कि सबके ईश्वर अलग-अलग भाषा, लिपि समझते हैं। और अंत में वह ईश्वर भी किताबों में कैद है। इसे आप तभी समझ सकेंगे जब आप ढेर सारी किताबें पढ़ेंगे।