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सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले नेताओं के मुंह खून लग चुका है

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लाल बहादुर सिंह 

लखनऊ के प्रसिद्ध जनेश्वर मिश्र पार्क में RSS के स्वयं सेवकों का बड़ा जमावड़ा दिखा। सांप्रदायिक तापमान धीरे धीरे बढ़ाया जा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश आज सांप्रदायिकता के ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा हुआ है, जिसका विस्फोट कभी भी पूरे भारतीय समाज को अपने आगोश में ले सकता है, बहराइच इसकी बानगी भर है।

यह जो उम्मीद की गई थी कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की ताकत घटने के बाद सांप्रदायिक आक्रामकता पर रोक लगेगी, वह होता नहीं दिख रहा है। बहराइच की घटनाएं इसका सुबूत हैं।

आज स्थिति यह है कि चारों ओर बारूद बिखरा हुआ है, बस एक चिंगारी का इंतजार है। दरअसल सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले नेताओं के मुंह खून लग चुका है। इन्हें यह बात भी समझ में आ गई है कि छोटी-मोटी घटनाओं से बात बनने वाली नहीं है।

बहराइच में जो हुआ उससे निकलने वाले संदेश बड़े स्पष्ट हैं। कम उम्र के  युवाओं को रेडिकलाइज़ किया जा रहा है। मीडिया, सोशल मीडिया और धार्मिक आयोजनों को इसके लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

उनमें जानबूझकर ऐसी प्रोवोकेटिव भाषा और गाली-गलौज का प्रयोग किया जा रहा है कि अल्पसंख्यकों में बौखलाहट पैदा हो। और फिर जैसे ही वे कुछ प्रतिक्रिया कर रहे हैं, पूरी राज्य मशीनरी एकतरफा कार्रवाई करते हुए उनके ऊपर टूट पड़ रही है।

जब तक हिंदुत्ववादी गिरोह सारी हदों को पार कर रहे होते हैं, तब तक पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है। एक तरह से उनकी मदद करती है। लेकिन जैसे ही दीवार तक ठेल दिए गए मुसलमानों की ओर से कोई प्रतिक्रिया होती है, उनके ऊपर कहर बरपा होने लगता है।

उनके ऊपर FIR होती है, उनके घरों में आग लगाई जाती है, जमकर पिटाई होती है, उन्हें जेल में डाल दिया जाता है, कुछ का इनकाउंटर होता। तो, कई का लंगड़ा इनकाउंटर होता है और उन्हें जीवन भर के लिए अपंग कर दिया जाता है।

बहराइच में कई गरीबों के घरों में भुखमरी की स्थिति आ गई है। यह सब दूर दराज के गांव के रहने वाले उन बेगुनाहों के साथ हुआ जो घटनास्थल के रहने वाले भी नहीं थे।

उकसावामूलक कार्रवाइयो को इस मुकाम तक ले जाया जाता है जहां टकराव अवश्यंभावी हो जाय। बहराइच के ही उदाहरण में हम देख सकते हैं कि जब उत्तेजक नारेबाजी और डीजे से गाली गलौज से बात नहीं बनी तब एक लड़का सीधे एक घर पर चढ़ गया और वहां लगा धार्मिक झंडा हटाकर अपना झंडा लगा दिया और उन्माद में नारे लगाने लगा।

एक ऐसी स्थिति पैदा की जाती है जहां टकराव अपरिहार्य हो जाता है। सबसे शॉकिंग खबर तो एक अखबार के स्टिंग ऑपरेशन में सामने आई है कि कैसे दंगाइयों को दो घंटे की छूट दी गई थी। अब वहां कई घरों पर बुलडोजर चलाने के लिए घरों पर नोटिस चस्पा कर दी गई है। यह बुलडोजर न्याय योगी जी का न्याय शास्त्र में मौलिक योगदान है।

इसके अतिरिक्त जो अन्य कदम हैं वे तो अन्य सरकारों में भी मुसलमानों के खिलाफ उठाए जाते रहे हैं। लेकिन बुलडोजर न्याय योगी ने ही शुरू किया है, अब जिसकी तमाम सरकारें नकल कर रही हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उच्चतम न्यायालय ने बुलडोजर न्याय पर कारगर रोक नहीं लगाया।

अतिक्रमण हटाने के लिए सरकार को इसकी छूट देकर दरअसल बुलडोजर एक्शन को ही छूट दे दी गई क्योंकि सरकार इस नाम पर ही तो बुलडोजर चलाती है, लेकिन वह सेलेक्टिव ढंग से चुनिंदा टारगेट्स पर होता है।

कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि धार्मिक जुलूसों पर रोक लगाई जाय, अगर देश को जलने से बचाना है। लेकिन सवाल यह है कि प्रतिबंध लगाएगा कौन। जिन्हें रोक लगाना है वे ही तो इसके पीछे हैं।

और अगर कोई इसकी मांग करेगा या विरोधी दल की सरकार यह करेगी तो उसे हिंदू विरोधी घोषित कर दिया जाएगा। दरअसल इस पूरे प्रोजेक्ट का उद्देश्य ही है हिंदुओं का बोलबाला कायम करना। यही तो डर हिंदुओं के मन में बैठाया जाता है कि हिंदुओं के देश में हमें अपना त्यौहार भी नहीं मनाने दिया जा रहा है।

इस तरह की बहसों को कोई और नहीं बल्कि संघ भाजपा के शीर्ष नेता करते हैं मसलन श्मशान-कब्रिस्तान की बहस स्वयं मोदी जी ने शुरू किया था। दरअसल, यह संघ की स्थापना के बाद से पिछले सौ साल का सेट पैटर्न है।

हालत इतनी खराब हो गई है कि अपने धर्म के अपराधी को लोग हीरो मानने लग रहे हैं। वैसे तो यह बात सभी धर्मों के लोगों के लिए लागू होती है, लेकिन अभी लॉरेंस बिश्नोई को लेकर जो कहानी सामने आ रही है, वह इस पूरे nexus को बेनकाब करने वाली है।

यह आदमी कल तक एक आम गैंगस्टर था जिस पर आरोप लगा कि उसने लोकप्रिय पंजाबी गायक मूसेवाला की हत्या करवाई। लेकिन अब अचानक वह हिंदुत्व गिरोह का चहेता हीरो हो गया है। कनाडा में खालिस्तानी निज्जर की हत्या में इसका नाम आया।

और अभी पन्नू की हत्या की साजिश और निज्जर की हत्या को एक ही प्लॉट का हिस्सा बताया जा रहा है। इधर मुंबई में विधायक बाबा सिद्दीकी की हत्या से उसका नाम जुड़ा। बताया जा रहा है कि सलमान खान को भी उसने पांच करोड़ देने या मारे जाने की चेतावनी दी है।

दरअसल सलमान खान से उसकी लड़ाई पुरानी है। बताते हैं जब सलमान खान ने काले हिरण का शिकार किया था, तभी उसने मारने की धमकी दी थी क्योंकि बिश्नोई समाज के लोग काले हिरण को धार्मिक निगाह से देखते हैं। अब इस सब घटनाक्रम के बाद लॉरेंस बिश्नोई हिंदुत्व का आइकॉनिक हीरो बन गया है जो बॉलीवुड का हिंदुत्वकरण कर रहा है और वहां से विधर्मियों का सफाया कर रहा है ! उधर वह विदेश में खालिस्तानियों को मरवा रहा है।

इस तरह अचानक रातों रात एक दुर्दांत गैंगस्टर हिंदुत्व का आइकन बन गया। इसमें सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि इस पूरे प्रकरण में भारत सरकार और NSA डोभाल की भूमिका पर आरोप लग रहा है। आरोप है कि कनाडा और अमेरिका की घटनाओं में सीधे RAW के अधिकारी शामिल थे। इधर बिश्नोई को साबरमती जेल में रखा गया है और उसे सारी सुख-सुविधाएं दी जा रही हैं।

आखिर क्यों ? बहरहाल जो पूरा परिदृश्य उभर रहा है, उससे यह साफ है कि यह एक nexus सा बन गया है हिंदुत्ववादी ताकतों, ताकतवर एजेंसियां और अपराधी गिरोह के बीच।

सबका कुल मिलाकर साझा उद्देश्य समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करना है। इसी रणनीति के तहत इस समय बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में गिरिराज सिंह हिंदू स्वाभिमान यात्रा लेकर निकले हुए थे और बेहद आपत्तिजनक बयानबाजी कर रहे हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य सांप्रदायिक सौहार्द के माहौल को बिगाड़ना है।

दरअसल यह जो कुछ हो रहा है उसका चुनावों के ताजा चक्र से सीधा रिश्ता है।

वैसे तो पूरे देश की निगाह महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव की ओर लगी हुई है। लेकिन इन्हीं के साथ 13 राज्यों में उपचुनाव भी हो रहे हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तरप्रदेश के उपचुनाव हैं, जिन्हें 2027 के चुनाव का सेमी फाइनल कहा जा रहा है। ये चुनाव 13नवंबर को होंगे।

उत्तर प्रदेश में वैसे तो 10सीटों पर उपचुनाव होना है लेकिन अयोध्या लोकसभा के अंदर पड़ने वाली प्रतिष्ठामूलक मिल्कीपुर सीट का चुनाव करवाने से फिलहाल चुनाव आयोग ने इंकार कर दिया है।

उनका तर्क है कि इस पर न्यायालय में मामला लंबित है, इसलिए अभी चुनाव नहीं करवाया जा सकता। लेकिन लोगों का मानना है कि इस सीट पर भाजपा की हार की आशंका के कारण चुनाव टला है।

इन चुनावों में भाजपा सोशल इंजीनियरिंग और लोकलुभावन वायदों के साथ योगी जी के ” बंटोगे तो कटोगे” नारे पर जोर देते हुए उतर रही है। यह अनायास नहीं है कि इसी दौर में मोदी और भागवत ने भी हिंदू एकता पर जोर देते बयान दिए है। RSS की मथुरा बैठक में बाकायदा योगी के नारे पर बाकायदा मुहर लगा दी गई।

जो कुछ हो रहा है, चुनाव तात्कालिक लक्ष्य है, लेकिन इसके माध्यम से समाज के पोर-पोर तक सांप्रदायिक जहर को फैलाया जा रहा है ताकि संघ के इस शताब्दी वर्ष में भारत को कम से कम de facto हिंदू राष्ट्र बना दिया जाय, de jure न भी सही।

बेशक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष ताकतों तथा विपक्षी दलों के सामने चुनौती बेहद गंभीर है। उन्हें तात्कालिक तौर पर चुनावों में भाजपा को शिकस्त देना होगा, लेकिन उससे बढ़कर यह कि समाज में सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों की चुनौती का हर स्तर पर मुकाबला करना होगा ताकि समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बचाया जा सके।

यह संतोष की बात है कि जनेश्वर पार्क में संघ का जितना बड़ा जमावड़ा था, उससे कई गुना अधिक लोग उसमें शामिल होने की बजाय पार्क में अपनी वॉकिंग, व्यायाम आदि में व्यस्त थे।

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