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अविराम संघर्ष के अलावा और कोई विकल्प नही

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मुनेश त्यागी

 फिलहाल हुए चुनावों में चार राज्यों में बीजेपी को अभूतपूर्व सफलता मिली है। आप पार्टी ने पंजाब में जरूर ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। समाजवादी पार्टी को छोड़कर बाकी सब पार्टियों का विशेषकर बसपा और कांग्रेस का सफाया हो गया है। यूपी में तो उन्हें आज तक की सबसे बुरी पराजय का सामना करना पड़ रहा है। उनके वोट शेयर में काफी कमी आ गई है और इसका अधिकांश हिस्सा बीजेपी के पाले में चला गया है। यह बहुत चिंता का विषय है।
 केंद्र में पहले से ही भाजपा की सरकार है जो किसानों, मजदूरों, नौजवानों और खेतमजदूरों के हकों और अधिकारों पर लगातार हमले कर रही है। अब और संभावना बढ़ गई है कि इन हमलों में और तेजी आएगी और जनता के जनवादी और संवैधानिक अधिकारों पर और तेज गति से हमले होंगे क्योंकि जनता के बड़े भाग के दुख दर्द और परेशानियां और बुनियादी समस्याओं का निराकरण बीजेपी के कार्यक्रमों में शामिल नहीं है। सरकार ने मजदूरों को मिलने वाले प्रोविडेंट फंड ब्याज में कटौती से इसका आगाज भी कर दिया है।
 बीजेपी का पिछले आठ वर्ष का शासन बता रहा है कि उसकी मुख्य नीतियां देशी विदेशी पूंजिपतियों की सत्ता और सम्पत्तियों को कायम रखना और उनमें और इजाफा करना  और किसानों मजदूरों, आमजन और नौजवानों के अधिकारों पर हमले करना और कटौती करना रहा है। सरकार की अधिकांश नीतियां जनोन्मुखी नहीं हैं। पहले कांग्रेस जनता के अधिकारों पर हमले कर रही थी, अब बीजेपी वही काम कर रही है। बीजेपी और कांग्रेस की आर्थिक नीतियों में कोई फर्क नहीं है। इन दोनों की आर्थिक नीतियां एक जैसी हैं जिन्हें नई आर्थिक नीतियों यानी उदारीकरण की नीतियों को तेज गति से लागू करके, देशी-विदेशी पूंजीपतियों की संपत्ति और को बढ़ाना रहा है और उनके मुनाफों में अनाप-शनाप वृद्धि करना ही रहा है।
  हाल के चुनाव दिखाते हैं कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, किसानों मजदूरों की परेशानियों को दूर करने या उनका समाधान करने में उनकी कोई रुचि नहीं है।ये सब बुनियादी मुद्दे उसके एजेंडे में शामिल ही नही हैं। बस उनका एक ही एजेंडा है कि जनता के बुनियादी अधिकारों पर हमले का विरोध करना और देश की जनता के पैसों से बनाए गए देश की संपत्तियों को बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हवाले करना। सरकार की यही मुहिम अबाध गति से जारी है।
 यहां पर अहम सवाल उठता है कि ऐसे में क्या किया जाए? क्या हम हताशा और निराशा के शिकार हो जायें? या अविराम संघर्ष का रास्ता अपनाएं। यहां पर हमारा कहना है कि हम निराशा और हताशा का शिकार बनकर नहीं रह सकते। हमें जनता की मुक्ति का कोमन मिनिमम प्रोग्राम बनाना पड़ेगा, सबको शिक्षा सबको काम सबको स्वास्थ्य सब की बुढ़ापे की सुरक्षा, किसानों की फसलों का वाजिब दाम, मजदूरों के अधिकारों में कटौती का विरोध, सभी मजदूरों का न्यूनतम वेतन लागू करना जैसी जरूरी मांगों को लेकर जनता के बीच, गांवों, शहरों और कारखानों में जाना होगा और इन अनिवार्य मांगों की अलख जगानी होगी, जनता को जागृत और संगठित करना होगा और बुनियादी और समाजवादी क्रांति के लिए उन्हें तैयार करना होगा और किसानों मजदूरों की सरकार काम करने की मुहिम को गति प्रदान करनी होगी।
  किसी भी पार्टी या व्यक्ति से हमारा कोई व्यक्तिगत विरोध नहीं है। हम उनकी जनविरोधी, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, नौजवान विरोधी, दलित विरोधी और अल्पसंख्यक नीतियों के खिलाफ हैं, हम देश में लगातार बढ़ती आर्थिक समानता के विरोधी हैं। हम हजारों साल पुराने शोषण, जुल्म, अत्याचार, अन्याय, भेदभाव और झूठ फरेब के खिलाफ हैं हम इनका समूल खात्मा चाहते हैं और देश में ऐसी सरकार चाहते हैं जिसका नेतृत्व किसानों और मजदूरों की सरकार करेगी और जो समाजवादी क्रांति के बाद देश में समता, समानता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, गणतंत्र, सब की आजादी, सबको सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक आजादी और समाज में भाईचारे पर आधारित समाज का निर्माण करेगी।
 हमारा अंतिम लक्ष्य है कि आम जनता समेत सभी मेहनतकश किसानों, मजदूरों और नौजवानों का भला हो, उनका कल्याण हो, उनकी रोजी रोटी कपड़ा मकान शिक्षा, बुढ़ापे की सुरक्षा का मुकम्मल समाधान हो। अतः निरंतर जनकल्याणकारी संघर्ष के अलावा हमारे सामने और कोई विकल्प नहीं है। इसके लिए हमें जनसंपर्कों, जनसंगठनों और जनता के जनतंत्र का विकास और विस्तार करना होगा। इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है अविराम संघर्ष ही एक मात्र रास्ता  बच गया है।
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