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कुछ तो बात है तिरुपति बालाजी मन्दिर में…,

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विनोद तकियावाला

विश्व के मानचित्र में भारत की पहचान आस्था व अध्यात्म की आधारशिला पर आधार्रित है। इस का पुख्ता सबूत यहाँ की पवित्र भुमि पर अनेकों संत,महापुरुषों अवतारों नें स्वयं अवतरित होकर जनकल्याण कियें है। राम, कृष्ण, नानक, बुद्ध, महावीर, कबीर, दादु, मीरा आदि है! ऐसे संत महापुरुषों के तपोंस्थली व कर्म भुमि पर पवित्र तीर्थ स्थल,मठ – मन्दिर इस बात का जीता जागता उदाहरण हम सभी के समक्ष है। जहाँ पर आज भी श्रद्धालू सच्चे मन व पूर्ण श्रद्धा भाव प्रार्थना करते है,उनकी इच्छा पूर्ण होती है। उनकी मन्नत व मनोकामना पूर्ण होती है।
भारत को मंदिर का देश यूं ही नहीं कहा जाता, कुछ तो बात है यहां के मंदिरों में…, जो हजारों किमी. दूर से लोगों को अपनी श्रद्धा और भक्ति के कारण आकर्षित करती हैं। आज भी यहाँ हजारों ऐसे मंदिर है,जिनका अपना एक रहस्यमयी इतिहास है,भले इनके अनेको किस्से,कहानियाँ व किंदबन्ती क्यूँ ना हो। आज हम आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर.. के बारे चर्चा कर रहे है। विगत दिनों हमें दक्षिण भारत के ऐतिहासिक दौरे के दौरान दक्षिण भारत संस्कृति, सभ्यता व तीर्थ स्थलों पर दर्शन व सकून के दो पल बिताने का सुखःद अवसर मिला। आप को बता दें दक्षिण भारत की मेरी यह पहली यात्रा थी! हमारी यात्रा दिल्ली के इन्दिरा गाँधी अर्न्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे के ट्रमिनल न० 3 से प्रारम्भ हुई। करीब 1:50 मिनट की यात्रा के बाद हम हैदराबाद पहुँचे जहाँ से सड़क मार्ग सें सिंकन्दराबाद पहुँच गए वहाँ के आवश्यक कार्य करने के बाद पुनः सायंकालीन बेला में निजामों के शहर की सुहानी शाम में रंग बिखेरेंगी रोशनी से जगमगा रही ऐतिहासिक धरोहर चार मीनार देखने का मौका मिला इसी दौरान मेरी नजर शिव मन्दिर एक देवी मन्दिर जिसे इच्छा पूर्ति मन्दिर से जाना जाता है। रात्रि में सिंकदराबाद रेल मार्ग नेल्लुर पहुँचे गए – यहाँ के कार्य करा निस्तारण के बाद समुद्र के लट पर कुछ आनंद क्षण विताये ! यहाँ मछली पालन के लिए जगह जगह तालाब व उसके मेड़ पर नारियल के पेड़ आने वाले अतिथियों का स्वागत करते को आतुर लग रहे थे। जब हम अपनी मित्रों के संग समुद्र तट पर उठते हुए लहरों से कई संकेत व संदेश दे रहा था। समुद्र के गहरे पानी में अपने अंदर समेटे हुए अनेको रहस्यमयी खजानों में कुछ बाहर निकाल कर पुनः अपने अन्दर समेट लेता है। फिर हमारी कफिला नेल्लुर रेल मार्ग अपने बहुप्रतिक्षित स्थान पुज्यनीय – दर्शनीय देवस्थल पहुँचनें के लिए मन मचल रहा था कि कब अपने आराध्य देव का दिव्य दर्शन हो जीवन धन्य हो जाए।
इस संदर्भ में एक बात का उल्लेख यहाँ करना चाहुंगा कि – अगर आप किसी को सच्चे मन अपने आराध्य को याद करते है तो वे आप की प्रार्थना व पूजा स्वीकार करते है। मेरे शाथ आप ऐसे ही हुआ। मन्दिर में जाकर भगवान तिरुपति बालाजी का दिव्य दर्शन हुए। आप का तिरुपति बालाजी जी का दर्शन करने का मन हो रहा है अपर आप तिरुपति मंदिर जा रहे हैं,तो आपको मंदिर से जुड़ी बातें जानना बेहद जरूरी हैं।
सर्वविदित रहे कि बाला जी का नाम आते ही हमारे व आपके दिमाग में राम भक्त हनुमान की छवि उपस्थित हो जाती है। जब हम मन्दिर परिसर में मेरी कुछ अधिकारियों से बातचीत के दौरान पता चला तिरुपति बाला जी मन्दिर स्थापित प्रतिमा यहाँ हनुमान जी की नही है,बल्कि यहाँ के स्थानीय श्रद्धालु तिरुपति बालाजी गोविदा के नाम लोकप्रिय है। मन्दिर परिसर में दर्शन व परिक्रमा के दौरान गोविंदा—गोविंदा की जय घोष से गगन गुंजामान हो रही थी। आप को बता दे कि तिरुपति तिरुमला देवस्थानम भारत में सबसे अमीर और सबसे महसूर मंदिरों में से एक है। आंध्र प्रदेश के चित्‍तूर जिले में स्थित इस मंदिर के प्रति दुनियाभर के लोगों की आस्‍थाओं का केंद्र है। वेंकटेश्‍वर स्‍वामी इस मंदिर के प्रमुख देवता है,जिन्‍हें विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है। तिरुपति बालाजी मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। भगवान तिरुपति बालाजी के बाल हैं एकदम असली…ऐसी ही मंदिर से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें जिनसे अनजान है लोग इससे जुड़ी बातों आपके खूब सुनने में आई होंगी। इस यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों व श्रद्धालुओं ने हमे कुछ ऐसी बातें बताई,जिनके बारे में कुछ लोगों ने अब तक न सुना और न ही जाना है। आज हम आपको तिरुपति बालाजी मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में बता रहे हैं। मन्दिर से जुड़ी​एक अनजान गांव की कहानी है।
यहाँ के ​मन्दिर में अनुष्ठान के लिए फूल घर, दीपक, घी, दूध, पत्ते तिरुपति से 22 किमी दूर एक गांव से मंगाए जाते हैं। हैरान की बात तो यह है कि आज तक इस छोटे से गांव को किसी बाहरी आदमी ने देखा तक नहीं है।
आमतौर पर हर मंदिर में भगवान की मूर्ति में लगे बाल नकली होते हैं, लेकिन आपको हैरानी होगी कि भगवान बालाजी के लगे बाल रेशमी, चिकने, उलझन रहित और बिल्कुल असली हैं। आप यकीन करें या न करें,लेकिन भगवान बालाजी की मूर्ति के पीछे एक सुंदर सी आवाज आती हैं। कहते हैं कि अगर मूर्ति के पीछे कान लगाए रखें,तो लगता है कि समुद्र में से लहरें उठ रही हैं। ​इस मंदिर में भगवान खुद अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके है। 19वीं सदी के भारत में,क्षेत्र के राजा ने एक अपराध के लिए बारह लोगों को मौत की सजा फाँसी दी थी। इसके बाद उनके मृत शरीर को बालाजी के मंदिर की दीवारों पर लटका गया, तब भगवान स्‍वयं यहां प्रकट हुए थे। यहां मूर्ति पर चढ़ाए गए फूलों को मूर्ति के पीछे बहने वाले झरने में बहा दिया जाता है। अगर आप इन फूलों को देखना चाहते हैं,तो आपको येरपेडु जाना होगा। जो तिरुपति से कुल 20 किमी दूर है।
​तिरुपति मंदिर में दान देने वालों श्रद्धालुओ की कमी नहीं है। हर साल लाखों करोड़ें का दान आता है। इनमें से विदेशी मुद्रा ही करोड़ों रुपए की होती है । आरबीआई उस पैसे को बदलने में टीटीडी बोर्ड की मदद करता है। ​तिरुपति बालाजी मंदिर के गर्भगृह में देवता की मूर्ति के सामने रखे मिट्टी के दीपक भी एक रहस्‍य हैं कि ये दीपक कभी बुझते नहीं। ये दीपक कब जलते हैं और कौन इन्‍हें जलाता है,इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। न ही इसका अधिकारी कोई रिकॉर्ड है। आज तक यह बस एक रहस्‍य बना हुआ है।
मै स्पष्ट कर दुँ कि यह वही मंदिर है जहाँ स्वंय भगवान विष्णु इस कलियुग के दौरान निवास करने के लिए जाने जाते हैं। तिरुपति बालाजी या श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर हिंदू पौराणिक कथाओं में से एक है,आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में हिंदू धर्मग्रंथों में गिरूपति बाला जी मन्दिर का वर्णित किया गया है। तिरूपति बालाजी मंदिर आज पृथ्वी पर सबसे लोकप्रिय मंदिर है। यहाँ भक्त अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं जब उनकी इच्छा पूरी होने पर,मंदिर हुंडी में अपना दान चढ़ाना एक पारंपरिक प्रथा है। मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाओं की कुछ दिलचस्प कहानियाँ कहती हैं कि भगवान कलियुग के दौरान भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। एक बार की बात है कि ऋषि ब्रिघू यह मूल्यांकन करना चाहते थे कि पवित्र त्रिमूर्ति में से कौन सबसे महान है। जब उसने भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव से पूछा,तो वह संतुष्ट नहीं होने पर वह वैकुंठ गया और भगवान विष्णु की छाती पर अपनी लात मारी। स्वयं देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के सीने में निवास कर रही थीं,ऋषि के इस व्यव्हार से उन्हें अपमानित महसूस हुआ और वे वैकुंठ छोड़कर स्वयं पृथ्वी पर आ गईं। भक्तों के अनुसार भगवान विष्णु महालक्ष्मी जी का अनुसरण करते हैं। परिणाम स्वरूप दुखी और निराश होकर, भगवान विष्णु अपनी पत्नी महालक्ष्मी की तलाश में आए, जब उन्हें पता चला कि महालक्ष्मी जी पद्मावती के रूप में एक राजा के परिवार में जन्म लिया है। स्वयं भगवान एक चींटी के ढेर में घुस गए और ध्यान करने लगे। जिसे भगवान शिव और ब्रह्मा भगवान की तलाश में गाय और बछड़े के रूप में वहां आए। गाय के रूप में शिव ने प्रतिदिन भगवान को दूध पिलाने के लिए चींटी के भीतर अपना दूध डाला। दैवीय योजना के अनुसार,वेंकटेश्वर और पद्मावती दोनों एक-दूसरे से मिले और देवताओं ने राजा से अपनी बेटी की शादी भगवान से करने के लिए संपर्क किया। भगवान को भव्य विवाह समारोह आयोजित करने के लिए धन के देवता कुबेर से बड़ी धन राशि प्राप्त हुई जो अभूतपूर्व थी। विवाह के बाद, भगवान तिरुमाला की पहाड़ियों पर रहे और उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। भगवान उस ऋण को टुकड़ों में चुका रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि भक्त भगवान को समय पर भुगतान करने में मदद करने के लिए अपना योगदान देते हैं। तिरुपति मंदिर के परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा अपने बाल दान करना एक पुरानी प्रथा है। भगवान के दर्शन करने से पहले मंदिर परिसर के पास श्रदालु अपना सिर मुंडवाते हैं। इसके लिए मंदिर प्रबंधन के द्वारा भगवान को अपने बाल दान करने में मदद करने के लिए व्यापक सुविधाएं बनाई हैं।
तिरूपति बालाजी मंदिर को भूलोक वैकुंठम अर्थात पृथ्वी पर विष्णु का निवास भी कहा जाता है। श्रृद्धालुओं का कहना है कि भगवान विष्णु स्वयं इस कलियुग के दौरान अपने भक्तों को मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करने और निर्देशित करने के लिए इस मंदिर में स्वयं प्रकट हुए थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर की मुख्य मूर्ति बहुत अनोखी और शक्तिशाली है। प्रत्येक दिन मूर्ति को फूलों की पोशाक और आभूषणों से भव्य रूप से सजाया जाता है। मंदिर में भगवान को सजाने के लिए उपयोग किए जाने वाले स्वर्ण आभूषणों का विशाल भंडार है। गर्भगृह में जिस स्थान पर भगवान श्री वेंकटेश्वर की स्वयंभू प्रतिमा स्थित है,उसे आनंद निलयम कहा जाता है। आनंद निलयम में भोग श्रीनिवास मूर्ति की सुंदर मूर्ति भी मौजूद है। सुबह की सुप्रभात सेवा के दौरान,इस मूर्ति को हटा दिया जाता है और मुख्य देवता के चरणों में रख दिया जाता है। इसका मतलब यह है कि भोग श्रीनिवास मूर्ति पीठासीन देवता के रूप में कार्य करती है। क्योंकि मुख्य देवता विशाल है । और वह तिरुपति नहीं हो सकता।
तिरूपति बालाजी मंदिर निर्माण तिरूपति बालाजी मंदिर का निर्माण 300 ईस्वी में शुरू हुआ और कई सम्राटों और राजाओं ने समय-समय पर इसके विकास में नियमित योगदान दिया। 18वीं शताब्दी के मध्य में,मराठा जनरल राघोजी प्रथम भोंसले ने मंदिर की कार्यवाही के प्रबंधन के लिए एक स्थायी निकाय की संकल्पना की। इस संकल्प और योजना के कारण तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) का जन्म हुआ,जिसे1933में टीटीडी अधिनियम के माध्यम सेविकसित किया गया था। आज,टीटीडी अपने सक्षम प्रबंधन के तहत कई मंदिरों और उनके उप-मंदिरों का प्रबंधन और रखरखाव करता है।
तिरूपति बालाजी मंदिर प्रबंधन ने भक्तों के लिए मंदिर में आने, भगवान के दर्शन करने और पहाड़ियों पर आराम दायक व आनंद लेने के लिए कई सुविधाएं उपलब्ध हैं।
आप अपने मित्र व परिजनों के साथ तिरुपति बालाजी मंदिर दक्षिण भारत संस्कृति व सभ्यता को नजदीक से देखने का चाहते हो तो अवश्य ही जाए। जय तिरुपति बालाजी महराज की।
(स्वतंत्र पत्रकार/स्तम्भकार)

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