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मेट्रो की पटरी को लेकर रेलवे और श्रीधरन में हुई थी जंग

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गुलशन राय खत्री

दिल्ली में मेट्रो को पटरी पर दौड़ते हुए 20 साल से अधिक हो गए हैं लेकिन मेट्रो के इस पटरी पर आने से पहले इसके गेज को लेकर रेलवे और दिल्ली मेट्रो के बीच उस वक्त जमकर जंग हुई थी। हालांकि अगर पटरी के गेज का झगड़ा नहीं होता तो मेट्रो संभवत: और पहले दिल्ली में दौड़ने लगती। पटरी के गेज को लेकर चले इस झगड़े में उस वक्त तो रेलवे की जीत हुई और पहली तीन लाइनें ब्रॉड गेज की ही बनीं। लेकिन बाद में सरकार ने ऐसा नियम बनाया कि पहले फेज के बाद की जितनी भी नई मेट्रो लाइनों का निर्माण हुआ, वे सभी स्टैंडर्ड गेज की पटरियां ही थीं।

1998 में जब दिल्ली में पहली मेट्रो रेल लाइन के निर्माण का शिलान्यास हुआ तो उस वक्त दिल्ली मेट्रो के मुखिया ई.श्रीधरन थे। जब निर्माण आगे बढ़ा और पटरी बिछाने की बात आयी तो रेलवे का तर्क था कि ब्रॉडगेज की पटरी पर ही मेट्रो चलाई जाए। चूंकि जब तक गेज तय नहीं होता तो मेट्रो के कोच का आर्डर नहीं दिया जा सकता था। ऐसे में दिल्ली मेट्रो का प्रस्ताव था कि स्टैंडर्ड गेज की पटरी पर ही दिल्ली मेट्रो चलनी चाहिए। लेकिन उस वक्त रेलवे बोर्ड के चेयरमैन चाहते थे कि दिल्ली मेट्रो ब्रॉड गेज की पटरी पर चले। ये टकराव इतना बढ़ा कि दोनों ओर से जब कोई पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ तो ये मामला उस वक्त के ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स के दरबार तक पहुंच गया।

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दोनों के क्या थे तर्क: मेट्रो किस गेज की पटरी पर चले, इसे लेकर रेलवे और मेट्रो दोनों के ही अपने अपने तर्क थे। रेलवे बोर्ड का कहना था कि ब्रॉडगेज पर ही मेट्रो चलनी चाहिए ताकि कभी आपात स्थिति हो तो ब्रॉडगेज पर दौड़ने वाले मेट्रो की ट्रेनें रेलवे की पटरियों पर भी चलाई जा सकें। इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा। लेकिन दूसरी ओर दिल्ली मेट्रो के मुखिया ई.श्रीधरन का तर्क था कि पूरी दुनिया में मेट्रो स्टैंडर्ड गेज पर बन और चल रही है। इसकी वजह ये है कि विश्व में आधुनिक तकनीक के कोच और पटरियां स्टैंडर्ड गेज की ही हैं। सिर्फ भारतीय रेलवे और चंद अन्य देशों की ट्रेनें ही पटरियों पर दौड़ती हैं। चूंकि दिल्ली मेट्रो अब बन रही है, ऐसे में आधुनिक तकनीक को अपनाया जाना चाहिए। इससे लागत भी कम आएगी।

क्यों रेलवे के पक्ष में गया सरकार का फैसला: उस वक्त देश में पहली बार मेट्रो बन रही थी। रेलवे के अलावा सरकार के पास कोई ऐसे विशेषज्ञ नहीं थे, जो सेफ्टी के लिए अपनी सलाह दे सकें। जब ये मामला ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स के पास गया तो वहां भी दोनों तरफ के तर्क रखे गए। उस वक्त ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स के कई सदस्यों ने माना कि स्टैंडर्ड गेज का तर्क सही है लेकिन इसके बावजूद फैसला रेलवे के पक्ष में गया। उसकी एक वजह ये भी थी मेट्रो के संचालन से पहले सेफ्टी सर्टिफिकेट देने की जिम्मेदारी कमिश्नर रेलवे सेफ्टी (सीआरएस) को दी गई थी और सीआरएस भले ही तकनीकी तौर पर विमानन मंत्रालय के अधीन था लेकिन वो रेलवे का ही अधिकारी होता है। ऐसे में तय किया गया कि मेट्रो बनने के बाद उसके सेफ्टी सर्टिफिकेट के वक्त कोई दिक्कत न आए इसलिए ब्रॉड गेज पर ही मेट्रो चलाई जाए। इस झगड़े की वजह से पहले फेज के पहले सेक्शन पर दिसंबर 2002 में मेट्रो दौड़नी शुरू हुई। जबकि अगर ये विवाद नहीं होता तो शायद मेट्रो ट्रेनें उससे भी कई महीने पहले दौड़ना शुरू हो सकती थीं।

तीन लाइनें बनाई गईं: उस वक्त दिल्ली मेट्रो का पहला फेज बन रहा था। लिहाजा रेड लाइन (शाहदरा से रिठाला), येलो लाइन (विश्वविद्यालय से केंद्रीय सचिवालय) और ब्लू लाइन (बाराखंभा रोड से द्वारका) की लाइनें ब्रॉडगेज पर ही बनाने का फैसला किया गया। बाद में इन लाइनों को जब आगे बढ़ाया गया तो जाहिर है कि वे भी ब्रॉडगेज की ही बनाई गईं।

बाद में राज्यों को दी गई पावर: जब दिल्ली मेट्रो के दूसरे फेज की प्लानिंग की गई, उससे पहले ही केंद्र सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाया और किस शहर की मेट्रो किस गेज पर चलेगी, इसका फैसला राज्य सरकार पर छोड़ दिया गया। इसके बाद ये विवाद खत्म हो गया। इस तरह से कानूनी तौर पर राज्यों को ये अधिकार मिल गया कि वे तय करें कि उनके शहर की मेट्रो के लिए ब्रॉडगेज की पटरी हो या स्टैंडर्ड गेज की। नतीजा ये हुआ कि सिर्फ दिल्ली के ही नहीं बल्कि अन्य शहरों की मेट्रो लाइनें भी स्टैंडर्ड गेज की ही बनाई गईं। दिल्ली में स्टैंडर्ड गेज की पहली लाइन कीर्ति नगर मुंडका थी, जिसे बाद में बहादुरगढ़ तक बढ़ाया गया।

दोनों गेज की पटरियों में क्या है अंतर: ब्रॉड गेज की पटरी थोड़ी अधिक चौड़ी होती है। इसकी चौड़ी 1676 एमएम यानी 5 फुट 6 इंच होती है जबकि स्टैंडर्ड गेज की पटरी की चौड़ाई 1435 एमएम यानी 4 फुट 8.5 इंच होती है। लेकिन पटरी की कम चौड़ाई के बावजूद उसके कोच की चौड़ाई पर अधिक अंतर नहीं पड़ता। लेकिन इससे मेट्रो के लिए बनने वाले स्ट्रक्चर की लागत जरुर कुछ कम हो जाती है।

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