अग्नि आलोक

शराब नहीं था सोमरस 

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            ~ नगमा कुमारी अंसारी 

देवों का प्रिय सोमरस यथार्थ में क्या है? सोमरस एक ऐसा पेय है, जिसका जिक्र देवताओं के वर्णन के साथ ही आता है। देवताओं से जुड़े हर ग्रंथ, कथा, संदर्भ में देवगणों को सोमरस का पान करते हुए बताया जाता है।

      इन समस्त वर्णनों में जिस तरह सोमरस का वर्णन किया जाता है, उससे अनुभव होता है कि यह अवश्य ही कोई बहुत ही स्वादिष्ट पेय है।

      कई लोगों को लगता है कि जिस तरह आज मदिरा यानि शराब का सेवन बड़े ही शौक से किया जाता है, संभवतः यह भी उसी वर्ग का कोई मादक पदार्थ है, जिसके चमत्कारिक प्रभाव हैं।

*क्या है सोमरस?*

      सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि सोमरस मदिरा की तरह कोई मादक पदार्थ नहीं है। हमारे वेदों में सोमरस का विस्तृत विवरण मिलता है। विशेष रूप से ऋग्वेद में तो कई ऋचाएं विस्तार से सोमरस बनाने और पीने की विधि का वर्णन करती हैं।

      हमारे धर्मग्रंथों में मदिरा के लिए मद्यपान शब्द का उपयोग हुआ है, जिसमें मद का अर्थ अहंकार या नशे से जुड़ा है। इससे ठीक अलग सोमरस के लिए सोमपान शब्द का उपयोग हुआ है, जहां सोम का अर्थ शीतल अमृत बताया गया है।

      मदिरा के निर्माण में जहां अन्न या फलों को कई दिन तक सड़ाया जाता है, वहीं सोमरस को बनाने के लिए सोम नाम के पौधे को पीसने, छानने के बाद दूध या दही मिलाकर लेने का वर्णन मिलता है। इसमें स्वादानुसार शहद या घी मिलाने का भी वर्णन मिलता है। इससे प्रमाणित होता है कि सोमरस मदिरा किसी भी स्थिति में नहीं है।

*कहां और कैसा है सोम का पौधा?*

  आखिर सोमरस बनाने में प्रयुक्त होने वाला प्रमुख पदार्थ यानि सोम का पौधा देखने में होता कैसा है और कहां पाया जाता है? मान्यता है कि सोम का पौधा पहाडि़यों पर पाया जाता है, राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के हिमाचल, विंध्याचल और मलय पर्वतों पर इसकी लताएं पाए जाने का उल्लेख मिलता है। 

      कई विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान में आज भी यह पौधा पाया जाता है, जिसमें पत्तियां नहीं होतीं और यह बादामी रंग का होता है। यह पौधा अति दुर्लभ है क्योंकि इसकी पहचान करने में सक्षम प्रजाति ने इसे सबसे छुपाकर रखा था। काल के साथ सोम के पौधे को पहचानने वाले अपनी गति को प्राप्त होते गए और इसकी पहचान भी मुश्किल हो गई।

   सोमरस सोम के पौधे से प्राप्त जड़ी-बुट्टी से बनायी जाती थी, आज सोम का पौधा लगभग विलुप्त है. 

    शराब पीने को सुरापान कहा जाता था, सुरापान असुर करते थे, ऋग्वेद में सुरापान को घृणा के तौर पर देखा गया है।

      टीवी सीरियल्स में भगवान इंद्र को अप्सराओं से घिरा दिखाया जाता है और वो सब सोमरस पीते रहते हैं, जिसे सामान्य जनता शराब समझती है.

     सोमरस, सोम नाम की जड़ीबूटी थी जिसमे दूध और दही मिलाकर ग्रहण किया जाता था, इससे व्यक्ति बलशाली और बुद्धिमान बनता था.

   जब यज्ञ होते थे तो सबसे पहले अग्नि को आहुति सोमरस से दी जाती थी.

  ऋग्वेद में सोमरस पान के लिए अग्नि और इंद्र का सैकड़ो बार आह्वान किया गया है.

   आप जिस इंद्र को सोचकर अपने मन मे टीवी सीरियल की छवि बनाते हैं वास्तविक रूप से वैसा कुछ नही था।

  जब वेदों की रचना की गयी तो अग्नि देवता, इंद्र देवता, रुद्र देवता आदि इन्ही सब का महत्व लिखा गया है.

       मैं कहीं पढ़ रही थी, किसी ने पोस्ट किया था कि देवता भी सोमरस पीते थे तो हम भी पियेंगे तो अचानक मन मे आया तो लिख दिया।

     आज का चरणामृत/पंचामृत सोमरस की तर्ज पर ही बनाया जाता है जिसमे सोम जड़ीबूटी की कमी है।

    तो एक बात दिमाग मे बैठा लीजिये, सोमरस नशा करने की चीज नही थी। आपको सोमरस का गलत अर्थ पता है।अगर आप उसे शराब समझते हैं।शराब को शराब कहिए सोमरस नहीं ।सोमरस का अपमान मत करिए, सोमरस उस समय का चरणामृत/पंचामृत था।

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