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लाल कृष्ण आडवाणी के जीवन की ये 5 किस्से

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नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार ने बीजेपी के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया। जनसंघ से राजनीति की शुरुआत करने वाले आडवाणी बीजेपी की पहचान रहे हैं। बीजेपी में हिंदुत्व के चेहरे के रूप में आडवाणी की लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं है। पीएम मोदी और आडवाणी भी एक दूसरे के बेहद करीब रहे हैं। आडवाणी में एक गुरु की तरफ नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ाया। पीएम मोदी भी समय-समय पर इस बात को स्वीकार करते रहे हैं। आडवाणी जी का जन्म 8 नवंबर 1927 को सिन्ध प्रान्त (पाकिस्तान) में हुआ था। वह कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल में पढ़े हैं।

जनसंघ के अध्यक्ष का ऑफर

1972 में जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी का कार्यकाल खत्म होने वाला था। पार्टी के भीतर नए अध्यक्ष को लेकर मंथन चल रहा है। हालांकि, किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। इस बीच एक दिन अटल ने आडवाणी को अपने यहां बुलाया। आडवाणी को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उन्हें क्यों बुलाया गया है। जब आडवाणी वहां पहुंचे तो अटल बेहद ही गंभीर मुद्रा में बैठे हुए थे। आडवाणी के पहुंचते ही अटल ने साफ कहा कि लाल जी तुम अध्यक्ष क्यों नहीं बन जाते हो। सीधी सपाट रूप से अटल की इस बात पर आडवाणी चौंक गए। वह बोले की मुझे अध्यक्ष नहीं बनना है। इस पर अटल ने उसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें भाषण देना नहीं आता है और मुझे भाषण देना नहीं आता है। इस पर अटल ने दीन दयाल उपाध्याय का उदाहरण दिया। अटल जी के समझाने पर दिसंबर 1972 में आडवाणी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने।
रथ यात्रा से राम मंदिर आंदोलन

1980 की शुरुआत में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन की शुरुआत करने लगी। आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी राम मंदिर आंदोलन का चेहरा बन गई। 1990 के करीब देश में हिंदुत्व की राजनीति ने विस्तार लेना शुरू किया था। जनसंघ से राजनीति की शुरुआत करने वाले आडवाणी ने रथ यात्रा के जरिये राम मंदिर के पक्ष में आवाज बुलंद की थी। उन्होंने सोमनाथ से राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा की शुरुआत की। सोमनाथ से 25 सितंबर 1990 को रथ यात्रा निकाली गई। आडवाणी का रथ जिस भी राज्य, शहर और गांव से निकला वहां उस पर फूलों की बारिश की गई। वसोमनाथ से निकलने वाली इस यात्रा को विभिन्न राज्यों से होते हुए 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। हालांकि, बिहार में लालू प्रसाद यादव ने इस रथ यात्रा को रोक दिया था। उन्होंने आडवाणी को हिरासत में लेकर दिल्ली भिजवा दिया।


अटल-आडवाणी की जोड़ी

अटल बिहारी और आडवाणी की जोड़ी राजनीति की बेहद मशहूर जोड़ी के रूप में शुमार है। लालकृष्ण आडवाणी 1957 में राजस्थान से दिल्ली पहुंचे। राजस्थान से दिल्ली आने के बाद सबसे पहला घर जिसमें आडवाणी जी रहे थे, वह अटल जी का आधिकारिक निवास था, 30 राजेन्द्र प्रसाद रोड। यहां उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी और नवनिर्वाचित सासंदों की मदद के लिए बुलाया गया था। इसके बाद दिल्ली इनके काम और राजनीति का अखाड़ा बन गई। अटल बिहारी के साथ ही आडवाणी ने संसद के काम करने के तरीके को सीखा। इसके साथ ही वे जनसंघ के लिए सवाल-जवाब एवं पार्टी की नीतियों को तय करने का काम करते रहे। राजनीति में आडवाणी जी का प्रवेश नगरपालिका से हुआ। आपातकाल के दौरान अटल बिहारी और आडवाणी बैंगलोर में थे। उस दौरान भी दोनों साथ ही जेल गए थे। इसके बाद 1999 में एनडीए की सरकार में आने के बाद भी दोनों की जोड़ी बरकरार रही।
बीजेपी में हिंदुत्व का चेहरा

आडवाणी को बीजेपी में बेहद बुद्धिजीवी, काबिल और मजबूत नेता माना जाता है। उनके भीतर मजबूत और संपन्न भारत का विचार जड़ तक समाहित है। वे पार्टी का हिंदुत्व का कट्टर चेहरा माने जाते थे। वहीं, अटल बिहारी सॉफ्ट रूप थे। 1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से ही आडवाणी एकमात्र ऐसे नेता रहे जो सबसे ज्यादा समय तक पार्टी में अध्यक्ष पद पर बने रहे हैं। बतौर सांसद तीन दशक की लंबी पारी खेलने के बाद आडवाणी अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में पहले गृह मंत्री और बाद में (1999-2004) उप-प्रधानमंत्री बने।

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