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ये नेता हमारे, वतन बेच देंगे

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मुनेश त्यागी

 पिछले कई वर्षों से जब से सरकार द्वारा उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों को लागू किया गया है, तभी से इस देश की सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने की बात चल रही है। मगर कांग्रेस के सरकार में भी यह काम धीरे-धीरे हुआ मगर बीजेपी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने  देश की संपत्तियों को चंद पूंजीपति  घरानों को बेचकर इस मुहिम को और तेज तेज कर दिया गया है। सरकारों द्वारा देश की सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने के खिलाफ यह कविता उस दिन पहले लिखी गई थी जो आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। कई सारे संगठनों ने इस कविता को “जनगीत” के रूप में प्रदर्शित करना और जनता के साथ गाना भी शुरू कर दिया है। एक बार पुनः इस कविता को हम आपकी नजर कर रहे हैं। इस कविताओं को हम अपने देश की संघर्षरत जनता के लिए समर्पित करते हैं,,,,,,,

  

शपथ बेच देंगे,कसम बेच देंगे।
ये नेता हमारे, वतन बेच देंगे।

थोड़े से पैसों में, थोड़ी सी दारू में,
कई जन हमारे, कलम बेच देंगे।

वफ़ा कुछ नही, दोस्ती कुछ नही है,
ये कुर्सी की खातिर, धरम बेच देंगे।

हया बेच देंगे, शरम बेच देंगे,
बचा है जो थोड़ा, भरम बेच देंगे।

चिंतन, चेहरा, चलन बेच देंगे,
सत्ता की खातिर कमल बेच देंगे।

दीपक, उजाला, शमा बेच देंगे,
जवानी, बहारें, चमन बेच देंगे।

चांद, सितारे, सूरज बेच देंगे,
जमीन, जंगल, गगन बेच देंगे।

होली, दिवाली, ईद बेच देंगे,
खुशी की हंसी की, रसम बेच देंगे।

सुनो मेरे यारों, ये नेता हमारे,
शहीदों की कसमें, सपन बेच देंगे।

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