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एक आंख खराब, ग्लास में पानी तक नहीं डाल पाता था ये क्रिकेटर, फिर भी ठोका दोहरा शतक

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अगर किसी से भारतीय क्रिकेट के सफल कप्तानों के बारे में पूछा जाए तो अधिकतर लोग एमएस धोनी और सौरव गांगुली का नाम लेंगे. धोनी ने भारत को दो वर्ल्ड कप दिलाए तो सौरव गांगुली ने उस समय टीम की कप्तानी संभाली जब भारतीय क्रिकेट बुरे दौर से गुजर रहा था.

वहां से गांगुली ने टीम को एक बेहतरीन टीम बना दिया जो 2003 वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंची, लेकिन इन दोनों से पहले अगर जिक्र आता है तो वो हैं मंसूर अली खान पटौदी का. वो कप्तान जिसने विदेशों में भारत को जीतना सिखाया. पटौदी की बात इसलिए क्योंकि आज उनकी पुण्यतिथि है. 22 सितंबर 2011 को उनका निधन हो गया था.

पटौदी की कप्तानी में भारत ने विदेशों में अपनी पहली टेस्ट जीत हासिल की. उनकी कप्तानी में भारत ने साल 1967 को न्यूजीलैंड को उसके घर में हराया. ये भारत की विदेशी जमीन पर पहली जीत थी और फिर इसके बाद कहानी आगे बढ़ती चली गई. पटौदी महज 21 साल की उम्र में भारत के कप्तान बने थे और तब वह दुनिया के सबसे युवा कप्तान थे. उनकी गिनती उस तरह के कप्तान के तौर पर की जाती है जिसने अपने खिलाड़ियों में जीत की भूख जगाई और उन्हें विश्वास दिलाया कि वह विदेशों में कमाल कर सकते हैं.

ग्लास में पानी डालना था मुश्किल

पटौदी को टाइगर के नाम से जाना जाता था. बेहतरीन कप्तान टाइगर ने टीम को आगे उस स्थिति में रहते हुए पहुंचाया जहां से अच्छे-अच्छे अपने कदम पीछे खींच लेते थे. कप्तान बनने से पहले पटौदी एक कार एक्सीडेंट में जख्मी हो गए थे. इस हादसे में उन्होंने अपनी एक आंख खो दी थी. जब उन्हें इस बारे में पता चला तो उनके जेहन में ये बात आई नहीं की वह क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे. एक्सीडेंट के तीन महीने बाद उन्होंने नेट प्रैक्टिस शुरू कर दी. तब उन्हें थोड़ी समस्या हुई. वह ग्लास में पानी तक नहीं डाल पा रहे थे. उनकी स्थिति ये थी कि वह फुलटॉस और यॉर्कर बॉल में भी अंतर नहीं कर पा रहे थे. लेकिन वह खेलते रहे और फिर प्रैक्टिस करते-करते हर चीज के आदी हो गए. अगर उनकी दोनों आंखें सलामत होती तो निश्चित तौर पर उनके नाम और ज्यादा रन होते.

आंख ने तोड़ दिया था सपना

पटौदी का सपना था कि वह दुनिया के बेस्ट बैट्समैन बनें. लेकिन उनकी आंख ने उनके इस सपने को पूरा नहीं होने दिया. टाइगर इस बात को बखूबी जानते थे कि अब उनकीबल्लेबाजी में वो धार नहीं रहेगी जो पहले थे लेकिन फिर भी वह खेले और देश की क्रिकेट को आगे ले गए, बल्ले से नहीं तो कप्तान से और उनकी मेहनत का नतीजा भारतीय क्रिकेट को आज मिल रहा है. पटौदी ने भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेले जिसमें 34.91 की औसत से 2793 रन बनाए. इस दौरान उनके बल्ले से छह शतक और 16 अर्धशतक निकले.

अपने करियर के 46 टेस्ट मैचों में से 40 में उन्होंने टीम की कप्तानी की और नौ में जीत हासिल करने में सफल रहे. पटौदी ने एक आंख खराब होने के बाद भी टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक जमाया. उन्होंने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में आठ फरवरी 1964 में इंग्लैंड के खिलाफ नाबाग 203 रनों की पारी खेली जो उनके टेस्ट करियर का बेस्ट स्कोर भी है.

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