एक जमाना था कि बंबई के मज़गाँव डॉक्स में शेर खां पठान नाम का गुन्डा कुलियों से हफ्ता वसूला करता था. जी भी हफ्ता देने से मना करता था उसके गुर्गे उसकी बुरों तरह से पिटाई करते थे. डॉक में काम कर सहा हाजी मस्तान यह नजारा रोज देखा करता था, उसकी समझ में ये नहीं आता था कि एक बाहरी व्यक्तिकिस तरह डॉक के अंदर आकर सिर्फ ताकत के बल पर कुलियों से पैत्र वसूल कर सकता था. हाजी मस्तान ने शेर खां से भिड़ने का मन बनाया, अगले शुक्रवार को जब शेर खाँ अपने गुंडों के साथ हफ्ता वसूलने आया तो उसने पाया कि कुलियों की लंबी लाइन में से 10 लोग गायब है. इससे पहले कियो कुछ समझ पाता मस्तान और उनके 10 स्वाधियों ने शेर खां और उनके चार गुगों पर हमला बोल दिया सेर खां की गुप्तियों और रामपूरी चाकुओं के बावजूद मस्तान और उनके चार साथी उस पर भारी पड़े और खून से सने शेर खां को अपने साथियों के साथ अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से भागना पड़ा. इस घटना ने हाजी मस्तान को न सिर्फ कुल्लियों का नेता बना दिया बल्कि यहीं से मस्तान लीजेंड की शुरुआत हुई. इस दृश्य की 1975 में यश चोपड़ा ने अपनी रिलीज हुई फिल्म दीवर में अमिताभ बच्चन पर हुबहु फिल्माया. हाल में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘अ रुड लाइफ में मशहूर पत्रकार वीर सांघवी लिखते हैं, “दीवार फिल्म में अमिताभ बच्चन का चरित्र मोटे तौर पर हाजी मस्तान की जिंदगी पर आधारित था. उन्होंने मुझे बताया था कि सिर्फ 786 नंबर वाले विल्ले की कहानी सही नहीं है.” सांघवी बताते हैं, “मस्कान ने बाद में हास्य अभिनेता मुकरी द्वारा उनके जीवन पर बनाई गई फिल्म में भी अभिनय किया था. इस फिल्म में उनकी जिंदगी के गलैमराइजह पक्ष को चित्रित किया गया था. फिल्म में मस्तान ने अपने कम होते बालों को छिपाने के लिए काले बालों की एक विंग पहनी थी. मस्तान में करीम लाला और बर्दराजन मुदालिपार से हाथ मिल्खया
मस्तान ने बहुत पहले ही ये महसूस कर लिया था कि बंबई जैसे शहर में तक्रतवार होने के लिए सिर्फ पैस्व ही जरूरी नहीं है. मुंबई के अंहवर्ल्ड पर मशहूर किताब ‘डॉगरी टू मुंबई मिक्स टिकेजूस ऑफ द मुबई माफिया में एस. हुसैन जैदी लिखते “मस्तान की मुंबई में अपनी बादशाहत कायम करने के लिए मसल पावर की जरूरत थी इसकी तलाश में ही उसने शहर के दो मतहूर हॉन कटेम लाला और कईतजन मुदालियार से हाथ मिलाया.” साल 1956 में हाजी मस्तान दमन के डॉन सुकुर नारायण बलिया के संपर्क में आया. जल्द ही वो दोनों पार्टनर बन गए और उन्होंने कुछ क्षेत्र आपस में बाँट लिए. बंबई बंदरगाह मस्तान का इलाका था तो दमन बंदरगाह बखिया का इलाका बन गया. हुसैन जैदी लिखते है, “दुबई से लाथा तस्करों का सामान दमन में उतरता था जबकि अदन से लाया सामान बंबई में उतारा जाता था. बसिया के सामान की निगरानी का जिम्मा मस्तान के पास था. हाजी मस्तान ने यूसुफ पटेल को मरवाने के लिए सुपारी दी
हैंमस्वन वार्डेन रोड और पेडर रोड के बीच सोफिया कॉलेज लेन के एक बंगले में रहने लगे थे. वीर सांघवी लिखते हैं, “मैं बल 1979 में हाजी मस्तान का इंटरव्यू लेने गया था. उसके गार्डन में एक पुराना इक बड़ा रहता था. उसके बारे में कहानी मशहूर थी
कि वे वहीं इक था जिसे मस्तान ने अपने पहले कॉन्द्राबैंड की डिलीवरी के लिए इस्तेमाल किया था. मैंने एक चार मस्तान में इस कहानी के बारे में पूछा था लेकिन उसने इसका खंडन किया था. लेकिन उनकी जगह कोई भी होता तो उसका संइन ही करता वीर सांघवी बंबई अंडरवर्ल्ड के एक और शक्रस युसुफ पटेल से भी अपनी मुलाकात का जिक्र करते हैं वो लिखते हैं, “यूसुफ को अपने पैर हिलाने की आदत थी. जब वो ऐसा करते खेती उनकी पिंडलियाँ दिखाई दे जाती थीं. तभी मुझे पता चला कियी अपनी पैंट के नीचे पाजामा पहना करते थे. मैंने आज तक किसी को पैंट के नीचे पाजामा पहने हुए नहीं देखा. एक बार मैंने उन्हें कुछ पुरानी बातें याद करने के लिए मना ही लिया.” सांघवी लिखते हैं, “उन्होंने मुझे खुद बताया था कि एक बार हाजी मस्तान ने उन्हें मत्वाने के लिए करीम लाला के लोगों को सुपारी दी थी. वो सड़क पर चले जा रहे बा कि दो लोगों ने उन्हें गोली मार दी और थी उनी मरा हुआ समझ कर भाग गए थे. लेकिन वो मेरे नहीं थे, उन्हें अस्पताल ले जाया गया और वो बच गए.
हत्या के आरोप में हाजी मस्तान और करीम लाला की गिरफ्तारी इस घटना का जिक्र हुसैन जैद ने भी अपनी किताब में किया है वो लिखते हैं, “मुंबई माफिया के इतिहास में पहली सुपारी खजी
मल्खान ने साल 1969 में 10 हजार रुपये पर कभी अपने साथ काम कर चुके युसुफ पटेल के लिए दी थी. ये काम करीम लाला के पश्तून मूल के दो मुर्गों को सौंपा गया था. उन्होंने पटेल पर हमला करने के लिए मिनात मस्जिद के पास की जगह चुनी “इन दोनों ने स्माशन के महीने में यूसुफ पटेल पर मस्तिद के पास भीड़ वाले इलाके में गोली चला दी. पटेल जमीन पर गिरे और उनके अंगरक्षक ने उन्हें बचाने के लिए उनके ऊपर छलाग ग लगा दी. हत्यारों ने भागने की कोलिश की लेकिन वहाँ मौजूद भीड़ ने उन्हें पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया. यूसुफ पटेल की बांह में दो गोलियाँ लगी लेकिन उसका अंगरक्षक मारा गया वो दिन का 22 नवंबर, 1969.” “बाद में पुलिस ने इस मामले में हाजी मस्तान, करीम लाला और 11 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया.
हाजी मस्तान और यूसुफ पटेल के बीच सुलह वीर संघवी ने जब हाजी मस्तान से इस घटना के के बारे में पूछा तो उन्होंने स्वीकार किया कि यह सब है. सांघवी लिखते हैं.
“मस्तान ने मुझे बताया कि यूसुफ ने एक मामले में उनसे धोखा किया था. कोई भी हाजी मस्तान को धोखा देकर जिंदा नहीं रह सकता था.” “जब मुझे बताया गया कि पटेल मर गय है तो मुझे बहुत संतोष हुआ. लेकिन बाद में जब मुझे पता चला कि यूसुफ पटेल बच गया है तो मैंने इसे एक ईश्वरीय संकेत के तौर पर लिया. अगर अल्लाह ये नहीं बाहता कि यूसुफ अभी मरे तो मुझे उसकी इच्छा का सम्मान करना होगा. कुछ दिनों बाद हाजी मस्तान और यूसुफ पटेल फिर दोस्त हो गए.” रुखसाना सुल्तान और हाजी मस्तान की मुलाकात
हाजी मस्तान हमेशा सफेद कपड़े पहनते थे, उनके साथियों का मानना था कि इससे उनके व्यक्तित्व में निसार वर संघयों लिखते हैं, “एक बार कांग्रेस की नेछ, संजय गांधी की दोस्त और अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ रुखसाना सुल्तान ने मुझे हाजी मस्तान से पहली बार मिलने का एक किस्सा सुनाया था. उन्हें कैमी साबुन इस्तेम्बल करने की आदत थी. उन दिनों वो
भारत में नहीं मिला करता था. वो इसे तस्करों से खरीदती थी. “एक बार उन्होंने बंबई के एक भीड़ भरे बाजार में अपनी गाड़ी पार्क की और साबून खरीदने चली गई. वो साबुन उन्हें कहीं नहीं मिला. सबने पही कहा कि इस साबुन की सप्लाई इन दिनों नहीं आ रही है. जब वो वापस अपनी कार के पास लौटीं तो वहाँ लोगों की भीड़ लगी हुई थी.” “जब वो और पास गई तो उन्होंने देखा
कि उनकी कार की पिछली सीट के एक हिस्से पर कैमी के सैकड़ों साबुनों का अंबार लगा हुआ था. उनकी कार के बगल में सफेद कपड़े पहने एक शक्स साड़ा हुआ था. वो पहले मुस्कराया और फिर अपना परिचय देते हुए कहा, मुझे हाजी मस्तान कहते हैं.
आम आदमियों के बीच वर्दतजन मुदालियार की पैठ
जिस समय हाजी मस्तान बंबई के अंहत्वल्ली में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे, एक और कुली वर्दराजन मुदालियार विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पर अपनी जीविका कमाने की जुगत में था. मुदालियर का जन्म तमिलनाडु के वेल्लोर शहर में हुआ
था. उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी नहीं की थी लेकिन वो अपने परिवार के अकेले द जो अंग्रेजी और तमिल लिखा-पढ़ सकता था. मुंबई के जानेमाने क्राइम रिपोर्टर प्रदीप शिंदे का मानना था कि ‘वर्दा के आदमी आम लोगों को बंबई का नागरिक बनाने, उन्हें राशन कार्ड, गैरकानूनी बिजली और पानी उपलका कराने में स्थानीय प्रशासन से कहीं ज्यादा तेज थे और यही उसकी ताकत का राज भी था. उनकी ताकत इतनी ज्यादा थी कि आम आदमी आँख मूँदकर उनके लिए काम करता था. तमिलनाडु से आने वाले लोगों की मदद के लिए वर्दशजन ने अपने दो सबसे विश्वसनीय लोग लगा रखे थे-टॉमस कुरियन उर्फ खाजा भाई और मोहिंदर रिवंश विग जिनका दूसरा नाम था बड़ा सोमा.
हाजी मस्तान और वर्दवजन मुदालियार की मुलाकात हाजी मस्तान और वर्दशजन मुदालियार दोनों तमिलनाडु में के हुसैन जैदी एक किस्सा सुनाते हैं, “एक बार वदां को पुलिस ने कस्टम्स डॉक इलाके से एंटीना चुराने के आरोप में गिलातार किया. पुलिस ने उससे कहा कि वो उन्हें वो जगह बता दे जहाँ उसने
चोरी का वो माल रखा हुआ है, वर्ना वो उनके खिलाफ बर्ड डियों का इस्तेमाल करेंगे.” “वर्दा आज़ाद मैदान लॉकअप में यह सोच ही रहे था कि क्या किया जाए कि उंगलियों में 555 की सिंगरेड दवाए एक शख्स जेलकी सीक्षचों के पास आया और उन्होंने उनसे धीमे से तमिल में कहा-वणक्कम लदावार’ यह सुनकर वर्दा हक्काबक्का रह गया. ‘बलवार शब्द तमिल में चीफ’ के लिए इस्तेमाल किया जाता है.” “वर्दा से इससे पहले इतने सम्मान से किसी ने बात नहीं की थी ये शख्स हाजी मस्तान था. “मस्तान ने कईराजन से कहा, तुम एंटीना को इन्हें वापस कर दी. मैं सुनिश्चित करूँगा कि तुम इससे ज्यादा पैख कमाओ, वर्दराजन नै पहले तो आनाकाना की. लेकिन मस्तान ने उनसे कहा- मैं तुम्हें ऐसी पेशकश कर रहा हूँ जिसे कोई अक्लमंद व्यक्ति अस्वीकार नहीं कर सकता, एंटीना वापस करो और सोने के व्यापार में मेरे पार्टनर बन जाओ.” “वर्दा ने उनसे पूछा तुम्हें इससे क्या फायदा होगा? मस्तान ने जवाब दिया-मैं तुम्हारी मसल पाकर का इस्तेमाल करना चाहता हूँ इस दृश्य के गवाह कुछ पुलिसवालों को वो बात कभी नहीं भूली कि किस तरह सूट और पॉलिश किए हुए जूते पहने एक शख्स ने पंवार से दिखने वाले सफेद बनियान, वेष्ठि (लुंगी) और चप्पल पहने एक सहस से हाथ मिलाया था.”
मस्तान, करीम लाला और वर्दा का गठजोड़ जेल से निकालने के बाद मस्तान वर्दी का इस्तेमाल अपने काम में करने लगे थे वर्देराजन को लोगों की नब्ज पता थी. वो लोगों की समस्याएं सुनने के लिए हमेशा अपने घर पर मौजूद रहते थे धार्मिक व्यक्ति होने के नाते वो माटुंगा स्टेशन के बाहर गणेश पंडाल पर बहुत पैसा खर्च करने लगे. धीरे-धीरे उसके स्तवे के हिसाब से पंडालों का आकार भी बढ़ने लगा. वर्दा पर भी कई फिल्में बनाई गई जैीं नायकर, दयावान और अग्निपथ अग्निपत्र अतिवच बच्वन को गर्दा की आवाज की नकल करते हुए दिखाया गया, उधर ममतान का साम्राज्य भी तेजी से फैल रहा था. हुसैन जैदी लिखते हैं कि “मस्तान द्वारा विदेखें को भेजी जाने वाली चाँदी अपनी शुद्धल के लिए इतनी मशहूर थी कि उसे मस्तान की चाँदी’ का बैंड नाम मिल गया, मस्तन नै मलाबार हिल में एक आलीशान बंगला और कई बड़ी कारे खरीदी, उन्होंने मद्रास की सबीद्ध बी से सादी की जिससे उसे तीन बेटियों पैदा हुई कमरुन्निसा, महरुन्निसा और शमखद, “70 का दशक आते आते दक्षिण और पश्चिम बंबई में हाजी मस्तान, मध्य बंबई में वर्दशजन मुदालियार और करीम लाला की मसल पावर का एक जबरदस्त गठजोड़ पैदा हो गया.”
मस्तान ने किया गैंगवार में बीचबचाव हाजी मस्तान को पहले 1974 में और फिर 1975 में इमरजेंसी के दौरान मिहस्तार किया गया था. जेल से छूटने के बाद मस्तान ने तस्करी छोड़कर खुद को रियल इस्टेट के धंधे में को लगा लिया. उकर बंबई पुलिस के अफरम यादवराव पवार ने कईराजन को
बंबई से भगाने का बीड़ा उठाया. वो उसमें सफल भी हुए. वर्दवजन को आखिरकार मुंबई छोड़कर मद्रास आना पड़ा, जहाँ कुछ सालों बाद उनकी मृत्यु हो गई. 80 के दशक में आजमजेब और अमीरजादा और इब्राहिम परिवार के बीच गैंगवार शुरु हुई हानी मस्तान ने इन दोनों के बीच सुलह करवाने की कोशिश की, दाऊद इब्राहीम और आलमजेब ने कुरान पर हाथ रख कर कसम साई कि अब उन दोनों के बीच कोई हिंसा नहीं होगी लेकिन अगले ही दिन दोनों गैग्स ने दिनदहाड़े एक दूसरे पर गोली चलानी शुरू कर दी. किसी को हाजी मस्तान को दिए वादे का कोई लिहाज नहीं था. जाहिर है मसान का रसूख अब उतार पर था. बाद में दाऊद इब्राहीम ने भारत छोड़कर दुबाई में अपना ठिकाना बना लिया और आगे। की कहानी आपको पता ही है. डॉन ने बिल्डर का धंधा अपनाया
अंडरवर्ल्ड पर आधारित फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि डॉन घर बनाने वालों से पैसा वसूल रहा है, लेकिन असली जिंदगी में डॉन ही बिल्डर बन गए. वीर सांघवी लिखते हैं, “मस्तान और यूसुफ पटेल जब ये कहते थे कि रियल स्टेट का धंधा। सस्करी के धंधे से ज्यादा लाभकारी है तो वो मजाक नहीं कर रहे होते थे. इसकी वजह थी बॉम्बे रेंट एक्ट का कानून जिसमें निजी संपत्ति का मजाक बनाते हुए मालिक और किराएदार को एक ही पटल पर खड़ा कर दिया गया था.” “मान लीजिए आपके पास एक फ्लैट है, आपने उसे किराए पर उठा रखा है अगर आप चाहते हैं कि किरायेदार आपका फ्लैट खाली कर दे तो आपको अदालत में सिद्ध करना होगा कि आप की जरूरत आपके किरायेदार की जरूरत से अधिक है. किरायेदार हमेशा तर्क देगा कि उसके पास दूसरी जगह जाने के साधन नहीं हैं.”
पुलिस के दबाव में विदेश पलायन
नतीजा ये हुआ कि मध्य मुंबई का पतन होना शुरु हो गया. मकानमालिकों ने अपने घरों की देखभाल करनी छोड़ दी. चतुर किरायेदार अपने फ्लैटों के टुकड़े कर उन्हें फिर से किराए पर चढ़ाने लगे. यहाँ पर अंडरवल्लई ने इस तख के मकानने को मकानमालिकों से कम कीमत पर खरीदना शुरु कर दिया. इसके बाद वो किराएदारों से फ्लैट छोड़ने के लिए कहते, जो इससे इनकार करता, उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ता, इन हॉन के डर से किराएदार फ्लैट बाली करते और फिर हॉन वहाँ पर नए मकान बनाकर उसे ऊंचे दामों पर बेचते. नतीजा ये हुआ कि इस तरह के रियल स्टेट के धंधे में अंडरवर्ल्ड के सरगना तस्करी से कहीं अधिक पैसा कमाने लगे. ४० के दशक में जब इन लोगों पर पुलिस का दबाव बढ़ना शुरु हुआ तो इनमें से बहुतों ने विदेशों का स्सा करना शुरु किया,