(भाग-6)
प्रोफेसर राजकुमार जैन
‘ए वतन मेरे वतन’ फिल्म की पृष्ठभूमि।
1939 में जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेज हुकूमत ने सभी प्राइवेट, शौकिया रेडियो के लाइसेंस निलंबित कर दिए। ऑपरेटर को रेडियो चलाने के सभी उपकरणों को भी सरकार के पास जमा करवाने की हिदायत भी दे दी। हालांकि सरकारी रेडियो “ऑल इंडिया रेडियो” जो 1923 में ही शुरू हो गया था, उसका काम केवल बरतानिया सरकार की तारीफ और तरफदारी करना था। ऐसे हालत में “कांग्रेस रेडियो” जिसका मकसद हिंदुस्तानी जनता की आवाज, आजादी की जंग की प्रगति की खबर देना, तथा बरतानिया शासन के खिलाफ मुसलसल मुखालफत की हौसलाअफजाई करते हुए मनोबल को बढ़ाना था।
9 नवंबर की सुबह की बुलेटिन में घोषणा की गई कि “याद रखें कांग्रेस रेडियो मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि आजादी की लड़ाई में हिंदुस्तानियों को सही सलाह देने के लिए बना है। रेडियो स्टेशन में प्रसारण करने के लिए गांधी व अन्य नेताओं के भाषण, संदेशों को रिकॉर्ड किया जाता था। राष्ट्रीय गीतों आजादी और एकता की वकालत करने वाले भाषणों का मिला-जुला प्रसारण होता था। भारतीय जनता के बीच मनोबल को बनाए रखना भी था। रात को 8:45 पर हिंदुस्तानी आवाम आजादी के आंदोलन की खबरों को सुनने के लिए कांग्रेस रेडियो का बेक़रारी से इंतजार करते थे। खास ध्यान देने की बात यह है कि हालांकि यह गुप्त गैर सरकारी रेडियो था, परंतु उसका अपना ट्रांसमीटर था, एक प्रसारण स्थल और रिकॉर्डिंग स्टेशन था और और साथ ही एक काल लाइन और इसकी रेडियो तरंग की लंबाई भी थी।
कार्यक्रम की शुरुआत ” हिंदुस्तान हमारा” तथा समापन “वंदे मातरम” से होता। इसके बीच खबरों, भाषणों, तथा अपील और इस संघर्ष में जुटे आंदोलनकारी को निर्देश भी दिए जाते। रेडियो हिंदुस्तानी और अंग्रेजी दोनों जबानों में पेश किया जाता था। शुरुआत में रोजाना एक ही प्रसारण होता था परंतु बाद में इसे दो बार शुरू कर दिया गया। पूरे हिंदुस्तान से विभिन्न सूत्रों की मार्फत सूचनाएं मिल जाती थी। मुंबई स्थित “ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी” के दफ्तर जिसकी इंचार्ज सुचेता कृपलानी थी, उनके साथ रेडियो संचालकों का बहुत ही सौहार्दपूर्ण संबंध था। उससे राष्ट्रीय महत्व की जानकारी मिलती थी। खबरें प्रसारित करना रेडियो प्रोग्राम की नियमित प्रक्रिया थी। कांग्रेस रेडियो से ही सर्वप्रथम चिटगांव बम हमले, जमशेदपुर हड़ताल, बलिया में हो रही घटनाओं की खबरें, बिहार और महाराष्ट्र में समानांतर सरकारों के संचालन की जानकारी कांग्रेस रेडियो द्वारा ही प्रसारित की गई।
अष्टी और चिमूर नामक जगहो पर बेकसूर महिलाओं का कत्लेआम अब तक के सबसे जघन्य अपराधों में से एक था। उषा मेहता ने लिखा है कि उसकी भयावह खबरों को सुनकर *शेर *लोहिया ने गरजते हुए कहा: “आपको किसी भी अन्य अहिंसक विरोधी के रूप में बलात्कार के कृत्यो को रोकने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन यदि आप आजाद हैं और अभी भी जिंदा है ,तो बलात्कार के प्रतिरोध में मरो या मार डालो*”
अंग्रेजी राज के खौफ के कारण जब समाचार पत्र उस वक्त के हालात पर कुछ भी लिखने से कतराते थे, तब केवल कांग्रेस रेडियो ही सरकारी हुक्म की परवाह
न करते हुए उस वक्त के हालात की असली खबर देता था। समाज के विभिन्न तबको, जैसे छात्रों वकीलों कामगारों पुलिस और महिलाओं तथा विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के लिए अपील होती थी। कांग्रेस रेडियो की मार्फत आंदोलन की नीति और संघर्ष की प्रकृति पर भी प्रकाश डाला जाता था।
डॉक्टर लोहिया ने कांग्रेस रेडियो पर अपने एक भाषण मे पिछले स्वतंत्रता संघर्षों और वर्तमान ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के अंतर को समझाते हुए कहा था,
……”यह कोई आंदोलन नहीं है, यह एक क्रांति है। आंदोलन में जीत या हार होती है, पर क्रांति में जीत या मौत होती है, क्योंकि इसमें कोई पीछे नहीं हटता है।“
“यह क्रांति किसी एक दल या समुदाय की नहीं है, बल्कि पूरे मुल्क की है।”
डॉ लोहिया न केवल हिंदुस्तानियों के लिए बल्कि सभी गुलाम मुल्कों के लिए आजादी चाहते थे। उनका राष्ट्रवाद, देश तक ही सीमित न होकर अंतर्राष्ट्रीय था। यह बताते हुए कि आजादी के लिए भारत की लड़ाई द्वेष से नहीं, बल्कि न्याय पाने की इच्छा से प्रेरित थी। एक रेडियो संदेश में उन्होंने कहा:,
” भारत की अंग्रेजों या किसी अन्य लोगों से कोई दुश्मनी नहीं है। हम भारतीय, जो कष्टों और पीड़ा की एक लंबी विरासत के बोझ लिए हैं, युद्धग्रस्त इंग्लैंड के लोगों, रूस और जर्मनी के बम पीड़ित शहरों के बाशिंदो की पीड़ा के प्रति सहानुभूति रखते हैं। हमारी लड़ाई उस व्यवस्था के खिलाफ है जो मानव जाति के दो तिहाई लोगों के वजूद के हक से वंचित करती है। हमारी नफरत एक ऐसे प्रशासन से है जो मानवीय अन्याय को बढ़ावा देना चाहता है।“
कांग्रेस रेडियो से, 2 अक्टूबर 1942 को गांधी जयंती का उत्सव मनाने के लिए विशेष निर्देश दिए गए थे कि यह दिन उत्साह तथा क्रांतिकारी जज्बे के साथ मनाया जाए। कांग्रेस रेडियो से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों पर आम जनता द्वारा मिल रही प्रतिक्रिया, बहुत उत्साहवर्धक होती थी। जनता बेकरारी से बुलेटिन और बातचीत सुनने का इंतजार करती थी। न केवल सुनने बल्कि उसको आगे उन लोगों को भी बताते थे, जो प्रोग्राम को नहीं सुन पाते थे।
… . .(जारी है-–)