विजय दलाल
*1 आजादी के बाद यह पहला चुनाव है जिसमें चुनाव आयोग ने ऊपरी दिखाने जैसी निष्पक्षता भी नहीं और मोदी सत्ता के लिए आचार संहिता को पुरी तरह ताक में रखकर संविधानेत्तर चुनाव करवाए।*
*इसका सबसे चिंताजनक और भयानक पक्ष यह है कि पिछले 10 से जो कार्पोरेट नियंत्रित इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया और नतमस्तक नौकरशाही की भी निहायत नंगाई के साथ जनविरोधी भूमिका से तो कोई उम्मीद नहीं की जा सकती थी लेकिन उच्च और सर्वोच्च न्यायालय जिसे इस लोकतंत्र को तानाशाही में परिवर्तित करने वाली सरकार, चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई, इन्कमटैक्स, राज्यपालों का दुरूपयोग , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकार, पीएमएलए और यूएपीए का दुरूपयोग, केंद्रीय सत्ता द्वारा संविधानेत्तर हर तरह की सत्ता का केंद्रीय करण, सत्ताधारी दल द्वारा जबरदस्त धन संग्रह और पुरी व्यवस्था को धन और सरकारी बाहुबल में परिवर्तित करने वाली किसी भी निरंकुशता और कारगुजारियों को कोई भी प्रभावकारी अंकुश नहीं लगा सका बल्कि बहुत चतुराई से वह इन सब कारगुजारियों में सहायक ही रहा।*
*चुनावी बांड पर इतने स्पष्ट फैसले को क्या नहीं लगता पहले तो फैसला 2024 के चुनाव के पास क्यों आया उसके बाद फैसले को 115 दिन तक सुरक्षित क्यों रखा?*
*इसका परिणाम यह है कि संसद के सत्र के चलते हुए यदि फैसला आ जाता तो मोदी सरकार देश सामने कटघरे में खड़ी होती मोदी जी को 400 तो क्या 40 सीट के लाले पड़ जाते।*
*ईवीएम की याचिकाओं को देख लो बहुत बड़ी जनता को यदि आशंका ईवीएम और चुनाव आयोग की भूमिका पर भी विश्वास नहीं है तो संदेहों को दूर करने का कितना आसान तरीका था। पुरे लोकसभा क्षेत्र में 100% वीवीपीएटी पर्ची की गणना और मिलान नहीं भी करवाना है तो हर प्रदेश की सीटों के अनुपात में किसी में 7 से लेकर किसी में 1 की पर्ची की 100% गणना और मिलान के आदेश दे देता।*
*दोनों ही महत्वपूर्ण है याचिकाओं पर जिस तरह का फैसला आया वहीं लोकतंत्र की बुनियाद पर हमला है। न चुनाव आयोग के लिए और न ही सर्वोच्च न्यायालय में जनता जो की सबसे बड़ी स्टेक होल्डर है पुरी तरह उपेक्षित है।* *आप सुप्रीम कोर्ट के फैसले का यह हिस्सा देखिए कि यदि काउंटिंग के दौरान अगर कोई आपत्ति है तो आपत्ति केवल दूसरा या तीसरा उम्मीदवार ही ले सकता है मतलब बाकी* *उम्मीदवारों से उनका संविधान प्रदत्त उनकी भी आपत्ति लेने का नागरिक अधिकार ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा छीन लिया गया है।*
*उस निर्णय के बाकी हिस्से भी जनता को मूर्ख समझ कर दिए गए हैं कम्प्यूटर विशेषज्ञों द्वारा यह राय है कि उससे क्या हासिल हो सकता है? और वो भी उन इंजिनियरों द्वारा जिन्होंने उसका निर्माण किया है? कोई स्वतंत्र विशेषज्ञों की संस्था के द्वारा नहीं?*
*पूरी तरह आशंका है कि सारे एग्जिट पोल जो चुनाव आयोग द्वारा जैसा कि वोट प्रतिशत बढ़ाया गया है समायोजित कर वहीं मोदीजी जीत के आंकड़े दे रहा हो।*
*या समायोजन के बाद भी मोदी विरोध लहर हो पश्चिमी बंगाल के विधानसभा के चुनाव की नतीजे इंडिया गठबंधन के पक्ष में आ जाए कहना मुश्किल है।*
*हां इतना जरूर पक्का है कि अब तक तो डेमोक्रेसी का एग्जिट पोल हो चुका है।*