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यह आदमी वो भारतीय तो नही, जिसके सपने देखे गये थे 

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,मुनेश त्यागी 

       भारतीय समाज के वर्तमान हालात देखकर मन परेशान हो जाता है। चारों तरफ गरीबी, बेरोजगारी, अभावों, हिंसा और अपराधों की बाढ़ आई हुई है। सरकार अपने जनकल्याणकारी मुद्दों से भटक गई है। औरतों के खिलाफ तो जैसे अपराधों की सुनामी आई हुई है। किसान और मजदूरों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जनता से कोसों दूर होते चले जा रहे हैं, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय मिलने के कोई आसार नज़र नही आ रहें हैं। आजादी के 77 साल बाद भी हमारा देश एक भयंकर विभीषिका से गुजर रहा है जहां इस लुटेरी व्यवस्था ने अधिकांश लोगों को हद दर्जे का खुदगर्ज, आत्म केंद्रित, शोषक, अन्यायी, धर्मांध, कर्मकांडी और पूरी तरह से अंधविश्वासी बना दिया है। उन्हें देश की समस्याओं से कोई मतलब नहीं है। बस वे किसी भी तरह से अपनी हित पूर्ति चाहते हैं और वे इस लुटेरी और खुदगर्ज व्यवस्था को बनाए रखने में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं।

       आजादी के आंदोलन के दौरान हमारे देश के शहीदों,,, शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, खुदीराम बोस, उधम सिंह और हिंदुस्तानी समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के सैकड़ों सदस्यों ने, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज के सैंकड़ों शहीदों ने और हमारे देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों,,,, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, मौलाना हसरत मोहानी, बाल गंगाधर तिलक, अब्दुल गफ्फार खान, मौलाना अबुल कलाम आजाद और आजाद हिंद फौज के हजारों सिपाहियों ने एक सपना देखा था जिसमें उन्होंने कामना की थी कि आजादी मिलने के बाद हमारे देश का आदमी अन्यायी नहीं होगा, शोषणकारी नहीं होगा, छोटे-बड़े की सोच और मानसिकता में विश्वास नहीं करेगा, ऊंच-नीच की भावना में विश्वास नहीं रखेगा, भ्रष्टाचारी नहीं होगा, सबके कल्याण के लिए काम करेगा और आपसी भाईचारे को धरती पर उतरेगा और इसे आगे बढ़ाएगा।

       और इसी के साथ-साथ यह भी सोचा गया था की आजादी मिलने के बाद हमारे देश का हर आदमी समतावादी, समानतावादी, भाईचारे की भावना से परिपूर्ण, समाजवादी, जनतांत्रिक, गणतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से परिपूर्ण होगा। मगर आज आजादी की 77 साल बाद हम देख रहे हैं कि आजादी के दौरान हमारे लाखों शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा देखे गए सपने चकनाचूर कर दिए गए हैं, सारे सपने मटिया मेट कर दिए गए हैं और आज अधिकांश नौजवान और आदमी हद दर्जे के स्वार्थी, भ्रष्टाचारी, दंगाई, उग्र, क्रोधित और हिंसक हो गये हैं।

    वे हद दर्जे के अंधविश्वासी, धर्मांध और अज्ञानी भी हो गये हैं। आज हम देख रहे हैं कि हमारे बहुत सारे नौजवान और लोग, कानून के शासन में विश्वास नहीं करते, वे आदमियत और इंसानियत में विश्वास नहीं करते, एक अच्छा भारतीय बनने में विश्वास नहीं करते, वे हद दर्जे के स्वार्थी हो गए हैं। बस वे हर क्षण अपना ही स्वार्थ पूरा करने और अपना ही भला करने की सोच में लगे रहते हैं। इस देश के एक अरब से ज्यादा गरीब, पीड़ित, अभावग्रस्त, शोषित और अन्याय के शिकार लोगों के कल्याण के लिए, उनकी भलाई के लिए, सोचने का उनके पास समय नहीं है, कोई नजरिया और नीति नहीं है।

     आज अधिकांश लोग गुस्से में हैं, वे अपनी व्यक्तिगत स्वार्थी भावनाओं से भरे हुए हैं, जातिवादी हो गए हैं, सांप्रदायिक हो गए हैं, भ्रष्टाचारी हो गए हैं। उन्होंने हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और हमारे शहीदों द्वारा देखे गए सबके कल्याण के सपनों को अपनी नजरों से ओझल कर दिया है। अब उन सैकड़ों शहीदों और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के सपने, इनके सपने नहीं रह गए हैं। अब इनका एक ही संसार है, जिसमें इनकी जाति का भला हो, उनके धर्म का भला हो, इनके स्वार्थों की पूर्ति हो, बस इनका पेट भरता रहे।

    इन अधिकांश लोगों और नौजवानों ने संविधान के सिद्धांतों और कानून के शासन को तिलांजलि दे दी है। ये कुछ भी करके, कोई भी रास्ता अख्तियार करके, किसी को भी रौंदकर, आगे बढ़ना चाहते हैं। उसमें किसी भी अच्छाई बुराई का ख्याल इन्होंने छोड़ दिया है। बस इनकी एक ही ख्वाहिश है कि इनकी इच्छा पूर्ति होनी चाहिए, इनकी पद, प्रतिष्ठा और प्रभुत्व बना रहना चाहिए। अब तो हालत इतने खराब हो गये हैं कि इनकी इच्छा पूर्ति में जो भी, इनके रास्ते में आडे आता है, वहीं इनका सबसे बड़ा दुश्मन है। उसे ये लोग कतई भी पसंद नहीं करते।

   पिछले दिनों जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ है, वह यह है कि ये अधिकांश नौजवान और बहुत सारे लोग हद दर्जे के अंधविश्वासी, धर्मांध, पाखंडी और अज्ञानी हो गए हैं। इन्होंने ज्ञान, विज्ञान, लौजिक और विवेक के नियमों और सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है। इन्होंने वैज्ञानिक संस्कृति से नाता तोड़ लिया है। इन्होंने सब कुछ देवी देवताओं और भगवानों के भरोसे छोड़ दिया है। इनका मानना है कि यहां कण-कण में भगवान और राम मौजूद है। यहां जो कुछ भी हो रहा है, भगवान और देवी देवताओं की मर्जी के अनुसार हो रहा है और जो कुछ भी होगा वह भगवान और देवी देवताओं की मर्जी से ही होगा। भगवान ही सब कुछ करेंगे, भगवान और देवी देवताओं की मर्जी के बिना कुछ नहीं होगा। जनहित में ये लोग कुछ भी करने या समझने को तैयार नहीं हैं।

     अब ये लोग हमारे देश में लागू अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, दर्शनशास्त्र और कानून शास्त्र के बारे में सोचने समझने को या कुछ कहने करने को तैयार नहीं है। जो कुछ हो रहा है वह होता रहे। बस इनकी मानसिकता और सोच है कि किसी भी तरीके से इनकी इच्छा पूर्ति होनी चाहिए, इनके व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ण होना चाहिए और इन्हें पाने के लिए इन्हें चाहे कोई भी रास्ता अख्तियार करना पड़े, कुछ भी करना पड़े, उसे अख्तियार करने में ये कोई गुरेज नहीं करते हैं। 

    इन लोगों की यह स्वार्थी मन:स्थिति तैयार करने के लिए किसानों, मजदूरों और मेहनतकशों की मेहनत और श्रम को लूटने वाली, यह वर्तमान लुटेरी पूंजीवादी, सामंती, साम्प्रदायिक और फासीवादी व्यवस्था का गठजोड़ है जिसने आदमी से उसकी आदमियत छीन कर, उसे पूर्ण रुप से अमानवतावादी, स्वार्थी, आत्म-केंद्रित और खुदगर्ज बना दिया है।

     इस मानसिकता के लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए दूसरों को रौंदकर, दूसरों के सिर पर चढ़कर, बस अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति करना चाहते हैं। इनका मुख्य काम जैसे तैसे, किसी भी प्रकार पैसा कमाना, पद हासिल करना और जिंदगी में प्रतिष्ठा और प्रभुत्व का इस्तेमाल कर, ऐशोआराम का सामान जुटाना और अपनी स्वार्थ पूर्ति करना ही रह गया है। ऐसा करने में इन्हें कोई पछतावा नहीं है, बस जैसे भी हो इनकी स्वार्थ पूर्ति होनी चाहिए। इसके अलावा इनकी जिंदगी में इनका कोई मकसद नहीं रह गया है। देश, दुनिया, समाज, व्यक्ति, न्याय, समता, समानता, समाजवाद, भाईचारा, आदमियत, इंसानियत और सुचिता उनके सपनों में नहीं रह गये हैं।

       उपरोक्त हकीकत के आधार पर, हम पक्के विश्वास के साथ और पूर्ण रूप से मुतमईन होकर कह सकते हैं कि ये लोग किसी भी हालत में, किसी भी दशा में, भारतीय और हिंदुस्तानी नहीं हैं। ये हद दर्जे के स्वार्थी, प्रभुत्ववादी, आत्मकेंद्रित और खुदगर्ज लोग हैं। आज समय की सबसे बड़ी मांग और जरूरत है कि इन सब लोगों को मानवतावादी, जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, समतावादी, समानतावादी और समाजवादी और आपसी सामंजस्य और आपसी भाईचारे की भावना और सोच से, सराबोर किया जाए और इनके अंदर साझी संस्कृति, गंगा जमुनी तहजीब, आपसी भाईचारे, आपसी प्यार मुहब्बत, एक दूसरे का ख्याल और वैज्ञानिक संस्कृति की भावना और सोच कूट-कूट कर भरी जाए, केवल तभी ये लोग सच्चे भारतीय और बेहतर इंसान बन सकते हैं।

     यह भी सच है कि वर्तमान पूंजीवादी, सामंती सांप्रदायिक, फासीवादी और धर्मांध सोच की सरकार और ताकतों का यह गठजोड़ इस काम को नहीं कर सकता, क्योंकि इन तत्वों का एजेंडा सिर्फ और सिर्फ धन्नासेठों, पूंजीपतियों, सामंतों और धर्मांध ताकतों के हितों की रक्षा करना और इन्हीं ताकतों को सत्ता में बनाए रखना है, उनकी हित पूर्ति करना है। इनका जनकल्याण करने में कोई विश्वास नहीं है। इस मानवतावादी अभियान को पूरा करने के लिए इस देश की तमाम जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, मानवतावादी, समाजवादी, साम्यवादी और ज्ञान विज्ञान से परिपूर्ण ताकतों को एकजुट होकर आगे आना होगा और जन कल्याणकारी और जन मुक्ति का कार्यक्रम बनाकर जनता के बीच जाना होगा, उन्हें संगठित करना होगा और किसानों मजदूरों की जनहितकारी सरकार बनाकर, सारी जनता को एकजुट कर, मानव मुक्ति और जनकल्याण के मार्ग पर आगे ले जाना होगा, यही आज की सबसे बड़ी मांग और जरूरत है।

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