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देश के सर्वोच्च न्यायालय को आज लोगों द्वारा यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि..

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जम्मू-कश्मीर के एक युवक अफजल गुरु को इसलिए फांसी दे दी गई क्योंकि सुप्रीम कोर्ट देश के लोगों की भावनाओं को शांत करने को लेकर चिंतित हो गया  था। हालांकि, चंद सांप्रदायिक तत्वों की चीख के बिना ,किसी भी देशवासी ने अफजल गुरु को फांसी पर लटकते देखने की भावना  को प्रकट  नहीं किया  ।लेकिन ऐसी भावनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने ही गौर किया।
आज पूरा विश्व कृषि कानूनों के खिलाफ देश के करोड़ों किसानों की भावनाओं को देख रहा है। ये भावनाएं इतनी मजबूत हैं कि 650 से ज़्यादा किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर अपने प्राणों का  बलिदान दे  दिया है। । अब यूपी में बहाए गए खून से लाखों – करोड़ों लोगों के दिल आहत हुए हैं । आरोपी मंत्री और उनके बेटे के खिलाफ लोगों के गुस्से का एक दरिया बह रहा है। क्या भावनाओं का यह बहता दरिया  सर्वोच्च न्यायालय को दिखाई नहीं देता ।सुप्रीम कोर्ट इन भावनाओं को लेकर चिंतित क्यों नहीं है?
सुप्रीम कोर्ट भावनाओं को कब देखेगा और कब नही ,क्या इसकी कोई जवाबदेही है? क्या देश का संविधान भावनाओं को महसूस करते समय हृदय परिवर्तन की सुविधा प्रदान करता है ?
अफजल गुरु के समय आपने भावनाओं को सबूतों से ज्यादा महत्व दिया गया , लेकिन देश के किसान और सारे इंसाफ़ पसंद लोग कह रहें हैं कि 
सबूत आप के सामने है और भावनाओं का दरिया भी !क्या देश का सर्वोच्च न्यायालय भावनाओं में बहेगा या सबूतों पर ग़ौर करेगा! !-

पावेल कुस्सा ( सम्पादक सुरख़ लीह)
Today the whole world is watching the feelings of crores of farmers of the country against agricultural laws. These sentiments are so strong that more than 650 farmers have sacrificed their lives on the Delhi borders. Now millions of people have been hurt by the blood shed in UP. There is a river of anger of people against

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