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बंद कमरों में योजनाएं बनाने वालों को एक बार ज़मीन पर उतरना होगा

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प्लानिंग की एक चूक कितनी भारी पड़ती है, इसका उदाहरण नोएडा के एक्वा लाइन मेट्रो एक्सटेंशन के लटके पड़े प्रोजेक्ट में देखने को मिल रहा है, जिसका खमियाज़ा हज़ारों दैनिक यात्री भुगत रहे हैं। नोएडा मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (NMRC) इस लाइन को सेक्टर 51 से आगे ग्रेटर नोएडा वेस्ट तक ले जाने का प्रयास कई साल से कर रहा है लेकिन ब्लू लाइन के सेक्टर 52 मेट्रो स्टेशन से इंटरचेंज कनेक्टिविटी ठीक से न होने की वजह से केंद्र सरकार प्रोजेक्ट को मंज़ूरी नहीं दे रही है। दरअसल, नोएडा में ब्लू लाइन के सेक्टर 52 और एक्वा लाइन के सेक्टर 51 स्टेशन इतनी दूर बना दिए गए हैं कि लोगों को एक स्टेशन से उतरकर दूसरी लाइन तक पहुंचने के लिए सड़क के रास्ते करीब आधा किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। और यही एक्वा लाइन के एक्सटेंशन में सबसे बड़ी बाधा बन रहा है। ऐसा नहीं है कि जगह की कमी की वजह से ये दोनों स्टेशन इतनी दूर बना दिए गए।

नोएडा मेट्रो: प्‍लानिंग में चूक

दस साल पहले जब ये प्रोजेक्ट प्लान किए गए, तब इस इलाके में ज़मीन की कोई कमी नहीं थी। आसानी से दोनों स्टेशन अगल-बगल बनाए जा सकते थे। लेकिन योजनाकारों का दिमाग देखिए कि स्टेशन तो दूर प्लान किए ही, इनके बीच की बड़ी सी ज़मीन भी किसी तीसरी कंपनी को दे दी गई। जब स्टेशनों की कनेक्टिविटी के सवाल उठे तो कह दिया गया कि बीच वाली ज़मीन जिस कंपनी को दी गई है, वही अपनी बिल्डिंग के अंदर से एक सीधा स्काईवॉक बना देगी। लेकिन दस साल बीत गए, बीच की वह ज़मीन अब तक खाली पड़ी है। न उस पर कोई निर्माण हुआ, न स्काईवॉक बन पाया। मुसाफिर भारी ट्रैफिक के बीच पैदल ही इन स्टेशनों की लंबी दूरी तय करने को मजबूर हैं।

सवाल उठे तो अब 400 मीटर लंबा एक घुमावदार स्काईवॉक बनाने का ज़िम्मा खुद अथॉरिटी ने उठाया है। NMRC इस तर्क के साथ केंद्र सरकार के सामने फिर पहुंची कि अगले साल मार्च तक स्काईवॉक तैयार हो जाने के बाद दोनों स्टेशनों की कनेक्टिविटी आसान हो जाएगी। लेकिन सरकार इस तर्क को मानने को तैयार नहीं हो रही, उसका कहना है कि दोनों लाइनों की कनेक्टिविटी ऐसे स्टेशन से करें, जिसमें अंदर ही अंदर लोग आसानी से ट्रेन बदल सकें। लगातार प्रपोजल रिजेक्ट होने के बाद NMRC एक्वा लाइन का रास्ता ही बदलने पर विचार कर रही है।

एक प्लान इसे ब्लू लाइन के सेक्टर 61 स्टेशन से जोड़ने का बनाया जा रहा है, जहां कॉमन प्लैटफॉर्म के ज़रिए यात्री आसानी से ट्रेन बदल सकें, जैसा ब्लू और मजेंटा लाइन के बोटैनिकल गार्डन स्टेशन पर है। हालांकि इस प्लान से एक्वा लाइन की न सिर्फ लंबाई बढ़ेगी, बल्कि दो अतिरिक्त स्टेशन भी बनाने पड़ेंगे, जिससे खर्च बढ़ेगा। नए सिरे से ज़मीन की तलाश एक अलग सिरदर्द हो सकता है, जो प्रोजेक्ट को और डिले करेगा।

समझ नहीं आता कि एक गलती को दुरुस्त करने के लिए एक और गलती क्यों की जा रही है। अगर सेक्टर 51 और 52 स्टेशनों से नीचे उतरे बिना ही स्काईवॉक के ज़रिए कनेक्टिविटी मिल जाए तो इसमें बहुत दिक्कत नहीं होनी चाहिए। दिल्ली मेट्रो की कई लाइनों पर इंटरचेंज के लिए काफी लंबे वॉकवे बने ही हैं, जैसे कालकाजी में मजेंटा-वॉयलेट लाइन के बीच, हौज़ खास में यलो-मजेंटा लाइन, मयूर विहार में ब्लू-पिंक लाइन और धौला कुआं के पिंक व एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन के बीच ट्रेनें बदलने के लिए लोगों को काफी लंबा पैदल चलना पड़ता है।

एक्वा और ब्लू लाइन के स्काईवॉक पर ट्रेवलेटर यानी स्वचालित रैंप लगें तो यात्रियों के लिए भारी सामान के साथ एक से दूसरे स्टेशन तक जाना आसान भी हो जाएगा। इस प्रोजेक्ट को अब और लटकाना ग्रेटर नोएडा वेस्ट में रहने वाले उन हज़ारों लोगों के साथ बड़ा अन्याय होगा, जो ढेर सारी मुसीबतें झेल लंबी दूरी तय कर मेट्रो पकड़ने यहां पहुंचते हैं। इनकी पीड़ा महसूस करनी है तो बंद कमरों में योजनाएं बनाने वालों को एक बार ज़मीन पर उतरना होगा।

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