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जिन्हें दवा करनी है, वो सिर्फ दर्द गिना रहे

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नवीन कुमार पाण्डेय

तू इधर-उधर की ना बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी पर सवाल है।’ शहाब जाफरी ने नई सदी के आते ही दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनका यह शेर पता नहीं कितनी सदियों तक जिंदा रहेगा। जब-जब दोस्त होने का दावा करने वालों के किए विपरीत परिणाम देंगे, जब उनकी मंशा संदेह के घेरे में होगी तो यह शेर बरबस जुबां पर आएगा और आता भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की बेतहाशा घुसपैठ का मुद्दा उठाया तो दिल से यही शेर निकल पड़ा।

देशभर में घुसपैठियों की बाढ़, सिर्फ झारखंड में नहीं
प्रधानमंत्री ने कहा कि जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के त्रिदलीय गठबंधन को वोट बैंक की चिंता है, इसलिए यह घुसपैठिये मुसलमानों के साथ खड़ा है। उन्होंने झारखंडवासियों से कहा कि यह गठबंधन आपके प्रदेश का दुश्मन है, इसलिए अपनी रक्षा के लिए बीजेपी की सरकार बनाइए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के आदिवासी इलाकों में जनसंख्या में तेजी से हो रहे परिवर्तन (डेमोग्राफी चेंज) को लेकर सवाल उठाए और कहा कि यह तभी रुक सकता है जब बीजेपी झारखंड की सरकार में आए। सवाल है कि बीजेपी तो पिछले तीन टर्म से देश की सरकार में है और चेतावनी देने वाले खुद प्रधानमंत्री हैं तो फिर झारखंड ही नहीं, देशभर में मुस्लिम घुसपैठियों की बाढ़ कैसे आ गई?

बेंगलुरु का हाल देख लीजिए
वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने 10 सितंबर को बेंगलुरु में घुसपैठिये मुसलमानों की बढ़ती तादाद को लेकर चिंता जता रहे एक वैज्ञानिक की फेसबुक पोस्ट अपने एक्स हैंडल पर शेयर की। उन्होंने लिखा, ‘प्रतिष्ठित वैज्ञानिक अमिताभ प्रमाणिक ने इसे फेसबुक पर पोस्ट किया है। बांग्ला और बांग्ला बोली की समझ रखने वाला कोई भी भारतीय बंगाली, भारतीय बंगालियों और बांग्लादेशियों का अंतर पहचान लेगा। जब भी मैं मछली खरीदने के लिए सीआर पार्क बाजार जाता हूं, तो मैं बांग्लादेशियों की तेजी से बढ़ती संख्या को देखकर हैरान रह जाता हूं, जो अपनी पहचान छिपाने की भी परवाह नहीं करते। वे पश्चिम बंगाल के रास्ते आते हैं और संभवतः चंद सिक्कों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले दलालों से नकली वोटर कार्ड और आधार कार्ड बनवा लेते हैं। पश्चिम बंगाल के रास्ते यह अनियंत्रित और अबाध अवैध घुसपैठ, सुप्रीम कोर्ट के शब्दों में कहें तो भारत पर आक्रमण है।’

घुसपैठियों के आधार कार्ड कैसे बन रहे मोदी जी?
इसी पोस्ट के नीचे पद्मजा लिखती हैं, ‘मैंने बेंगलुरु में अपना आधार कार्ड बनवाया और आसपास के इलाकों में बहुत से बांग्लादेशियों को एक दलाल के साथ देखा जो उनके आधार की औपचारिकता धड़ाधड़ पूरा कर रहा था। मैंने कार्यालय प्रभारी से बात की और उनसे पूछा कि वे बांग्लादेशियों को आधार कार्ड कैसे जारी कर सकते हैं? उन्होंने मुझे बताया कि अगर वे (घुसपैठिये) उचित दस्तावेज पेश करते हैं तो मुझे उनके आवेदन को अस्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है, मैं तो केवल अपना काम कर रहा हूं। मैं इससे ज्यादा बहस नहीं कर सकती थी।’

UIDAI तो केंद्रीय एजेंसी है, फिर इतना भ्रष्टाचार कैसे?
मजे की बात है कि आधार कार्ड बनाने वाली संस्था यूआईडीएआई ने भी झारखंड में मुस्लिम घुसपैठियों की बाढ़ की पुष्टि की है। इस संस्था ने झारखंड हाई कोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि प्रदेश में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ बहुत ज्यादा बढ़ गई है। गृह मंत्रालय ने भी हाई कोर्ट से यही कहा है। तो सवाल है कि आखिर यूआईडीएआई तो केंद्र सरकार के अधीन है, फिर इसमें इतनी धांधली कैसे हो रही है? घुसपैठियों के वोटर कार्ड कैसे बन जा रहे हैं? क्या मोदी सरकार ने कभी यूआईडीएआई में बजबजाते भ्रष्टाचार पर गौर किया? क्या कभी मोदी सरकार ने यह विचार करने की जहमत उठाई कि यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, इस भ्रष्टाचार से दुश्मनों को भारत पर परोक्ष आक्रमण का मौका मिल रहा है? वैसे भी प्रधानमंत्री जब-तब सीना तानकर भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने का ऐलान करते रहते हैं, तो वो देश के खतरे में डालने वाले भ्रष्टाचारियों से आंखें क्यों फेर रहे हैं?

सीमा की चौकसी तो केंद्र की जिम्मेदारी
इन सबसे भी बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल है कि आखिर बांग्लादेश और म्यांमार से मुसलमान आखिर इतनी बड़ी संख्या में भारत की सीमा में घुस कैसे रहे हैं? क्या सीमा की सुरक्षा राज्यों के हाथों में है? अगर नहीं तो घुसपैठ के लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार कैसे हुईं? क्या घुसपैठियों की बाढ़ यह नहीं बताती है कि बीएसएफ सीमा की सुरक्षा की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है और वह घुसखोरी के दलदल में आकंठ डूब गया है? माना कि सीमा पर मजबूत बाड़ नहीं होने के कारण घुसपैठियों पर कड़ी नजर रख पाना बहुत चुनौतीपूर्ण है।

बाड़ और बीएसएफ के सवाल
ऐसे में दो सवाल उठते हैं- पहला ये कि देश को आक्रमण से बचाने से ज्यादा बड़ी प्राथमिकता भला और क्या हो सकती है? मोदी सरकार एक दशक से घुसपैठ वाले इलाकों में बाड़ेबंदी की क्यों नहीं सोच पाई और आज भी इस पर विचार क्यों नहीं कर रही है? दूसरा सवाल ये कि ठीक है खुली सीमा से घुसपैठ पूरी तरह रोकना मुश्किल है, लेकिन क्या यह बात गले से उतर सकती है कि बिना सुरक्षा प्रहरियों की मिलीभगत के इतनी बड़ी तादाद में घुसपैठ हो सके? इन दोनों सवालों के कटघरे में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी अथवा किसी अन्य विरोधी दलों को तो नहीं खड़ा किया जा सकता है। इनके जवाब तो मोदी सरकार को ही देने होंगे।

झारखंड को छोड़िए, उत्तराखंड का जवाब दीजिए
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि झारखंड के संथाल परगना और कोल्हान में आदिवासी आबादी घट रही है जबकि मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। क्या ऐसा सिर्फ झारखंड या विपक्ष शासित राज्यों में ही हो रहा है? उत्तराखंड में तो लगातार दूसरी बार बीजेपी की ही सरकार बनी है तो वहां अचानक विदेशी मुसलमानों की बाढ़ कैसे आ गई? हिमाचल प्रदेश में भी तो कुछ महीने पहले बीजेपी की ही सरकार थी, वहां घुसपैठिये कैसे आ गए? मणिपुर में महीनों से हिंदू मैतेई को कुकी आतंकवादियों से सुरक्षा क्यों नहीं दी जा सकी जबकि वहां तो बीजेपी की ही सरकार है? फिर केंद्र सरकार ने मणिपुर का प्रशासन अपने नियंत्रण में ले रखा है, फिर भी हमले क्यों हो रहे हैं? क्यों स्थानीय लोगों को कहना पड़ रहा है कि हमले होते रहते हैं और सीआरपीएफ मूकदर्शक बनी रहती है?

डॉक्टर की निगरानी में बीमारी पनपी कैसे?
प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड में कहा कि घुसपैठिये पंचायती राज संस्थाओं में पद पा रहे हैं। कितनी हैरतअंगेज बात है कि देश के प्रधानमंत्री को यह पता है कि संविधान द्वारा तय पंचायती राज व्यवस्था पर घुसपैठियों का कब्जा हो रहा है और वो अपना दायित्व सिर्फ लोगों को सतर्क करने तक ही सीमित मानते हैं। अगर जनसांख्यिकी ही बदल रही है तो पंचायत हो या विधानसभा या संसद, चुने तो वही जाएंगे जिनकी आबादी ज्यादा है। फिर प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार सिर्फ बदली डेमोग्राफी के प्रभावों को टुकड़ों-टुकड़ों में बताकर अपनी असफलता का ठीकरा दूसरों पर नहीं फोड़ सकते हैं।

बीजेपी शासित राज्यों में कैसे आ रहे घुसपैठिए?
पीएम कहते हैं कि घुसपैठिये भारत में आकर यहां की महिलाओं के खिलाफ अपराध कर रहे हैं। तो क्या ऐसा सिर्फ विपक्ष शासित राज्यों में हो रहा है? क्या मुसलमान बीजेपी शासित राज्यों में अपराध नहीं कर रहे हैं? पहला सवाल तो है कि बीजेपी शासित राज्यों में मुस्लिम घुसपैठिए पहुंचे तो कैसे और दूसरा सवाल है कि अगर वो वहां पहुंच भी गए तो उनके रहन-सहन की व्यवस्था कैसे बन गई और तीसरा कि वो अपराध कर रहे हैं तो उन पर बीजेपी सरकारें कैसे अंकुश लगा रही हैं?

घुसपैठियों पर पीएम का दावा कितना सही?
प्रधानमंत्री ने कहा कि बीजेपी की सरकार आ गई तो झारखंड दुश्मनों से बच जाएगा। सवाल है- कैसे? राजस्थान में तो बीजेपी की सरकार है। वहां नूपुर शर्मा से जुड़े विवाद के वक्त कन्हैयालाल की सरेआम गर्दन काटी गई जिसका वीडियो आज भी सर्वसुलभ है। फिर मामले से जुड़े पहले फरहाद उर्फ बबला और अब जावेद को हाई कोर्ट से जमानत क्यों मिल गई? एनआईए तो केंद्र सरकार की एजेंसी है तो फिर दोनों मामलों में वो हाई कोर्ट के सामने पुख्ता सबूत क्यों नहीं सौंप पाई? क्या इतने जघन्य हत्याकांड की अदालती कार्यवाही को प्राथमिकता से निपटाने की राजस्थान की बीजेपी सरकार ने कोई पहल की? अगर नहीं तो फिर प्रधानमंत्री के इस दावे पर कैसे भरोसा किया जाए कि झारखंड में बीजेपी की सरकार बनेगी तो वह घुसपैठियों से मुक्त हो जाएगा?

कैसे ये बातें भूल जाए देश?
आखिर कोई कैसे भूल सकता है कि नूपुर शर्मा विवाद के वक्त लंबे समय तक देश का एक-एक हिंदू असुरक्षित महसूस कर रहा था क्योंकि मुसलमान उन सबको अंजाम भुगतने की धमकी दे रहे थे जो नूपुर के समर्थन में एक पोस्ट भी कर रहा हो। तब आठ हिंदुओं की गर्दनें काट ली गईं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने आज तक एक बयान तक नहीं दिया। आखिर जब-जब बीजेपी का देश में प्रत्यक्ष या परोक्ष शासन होता है, हिंदू खतरे में क्यों आ जाते हैं और मुसलमानों का आतंक क्यों बढ़ जाता है?

बीजेपी शासन में हिंदुओं की बदहाली की गारंटी क्यों?
क्या देश यह कभी भूल सकता है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत और हिंदूओं के साथ रेप, लूट, मार-काट जैसी नृशंसताएं बरती गईं तो वीपी सिंह की केंद्र सरकार बीजेपी के समर्थन से चल रही थी? आज जब बीजेपी 10 वर्ष तक देश पर राज कर चुकी है तो देश में घुसपैठिये मुसलमानों की बाढ़ आ गई है। आज वो इलाके भी खूंखार घुसपैठिये मुसलमानों से भरते जा रहे हैं जहां 10 वर्ष पहले या तो छिटपुट देशी मुसलमान होते थे या फिर एक भी नहीं थे। आखिर आपकी ही सरकार के शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने दिल्ली में घुसपैठियों के लिए आवास योजना लाने का ऐलान किया था, वो तो फजीहत के बाद कदम वापस लिए थे। इसलिए, माफ कीजिएगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, आपका दावा जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाता बल्कि उलटा जान पड़ता है। देश में मुस्लिम घुसपैठियों की आवक तो आपकी सरकार की बड़ी ‘उपलब्धियों’ में एक है।

आस टूटी तो…
प्रधानमंत्री मोदी या उनकी सरकार चाहें तो आंकड़ेबाजी की आड़ में मुझे जेल की सलाखों के पीछे डाल सकते हैं। कांग्रेस इस मामले में अव्वल रही है। मैं इसलिए लिख सका हूं कि मोदी सरकार कम से कम विरोध के स्वर को दबाने की जिद्द पालती नहीं दिखती। ऐसा हुआ तो कोढ़ में खुजली की कहावत सिद्ध हो जाएगी। फिर वही होगा जो बीते लोकसभा चुनाव में हुआ। संवाद के रास्ते बंद होंगे और सुनिश्चित परिणाम आने से कोई रोक नहीं पाएगा। बीजेपी से ‘पार्टी विद डिफरेंस’ की आस आज भी बंधी हुई है, इसलिए प्रश्न, आक्रोश, आशंका, आरोप का सिलसिला कायम है। आस टूटते ही ये सिलसिला भी बंद हो जाएगा।

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